लेखिका डॉ. रेशा, जीवविज्ञान विभाग, श्री द्रोणाचार्य स्नातकोत्तर महाविद्यालय दनकौर
ग्रेटर नोएडा। हर साल 8 मार्च को हम अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाते हैं, लेकिन क्या वास्तव में एक दिन महिलाओं के योगदान और संघर्षों को सराहने के लिए काफी है? शायद नहीं। महिलाएँ न सिर्फ परिवार और समाज की रीढ़ होती हैं, बल्कि अपने मेहनत, लगन और साहस से दुनिया को एक बेहतर जगह बनाती हैं। नारी: प्रेम, समर्पण और संघर्ष का प्रतीक: एक बेटी के रूप में, वह अपने माता-पिता की मुस्कान होती है। एक बहन के रूप में, वह अपने भाई की हिम्मत होती है। एक पत्नी के रूप में, वह अपने जीवनसाथी का संबल होती है। और एक माँ के रूप में, वह पूरे संसार का आधार बनती है। लेकिन यह भी सच है कि एक महिला को हर कदम पर संघर्ष करना पड़ता है। कभी उसे समाज की पुरानी सोच से लड़ना पड़ता है, तो कभी अपने ही सपनों को पूरा करने के लिए हजारों बलिदान देने पड़ते हैं। फिर भी वह हर परिस्थिति में अपनी राह बनाती है, बिना किसी शिकायत के। हर महिला की अपनी एक कहानी होती है किसी ने गरीबी से लड़कर शिक्षा हासिल की, किसी ने सामाजिक बंधनों को तोड़कर अपने सपनों को उड़ान दी, तो किसी ने अकेले अपने बच्चों को पालकर उन्हें सफल बनाया। हर महिला की अपनी एक संघर्ष यात्रा होती है, जिसे जानकर दिल भर आता है। महिला दिवस सिर्फ एक दिन नहीं, एक सोच है महिला दिवस सिर्फ एक दिन की औपचारिकता नहीं होनी चाहिए। यह एक सोच होनी चाहिए कि हर दिन महिलाओं का सम्मान किया जाए, उन्हें बराबरी का हक दिया जाए, और उनकी उपलब्धियों को सराहा जाए। आज के दौर में महिलाएँ हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं, फिर चाहे वह तकनीक (Technology) हो या जूलॉजी (Zoology)। जहाँ पहले इन क्षेत्रों को पुरुष-प्रधान माना जाता था, वहीं अब महिलाएँ अपनी काबिलियत से नई ऊँचाइयाँ छू रही हैं। आज नई ऊँचाइयों की ओर तकनीक का क्षेत्र तेजी से बढ़ रहा है, और महिलाएँ इसमें महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं। कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), मशीन लर्निंग, साइबर सुरक्षा, सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट, और रोबोटिक्स जैसी फील्ड में महिलाएँ अपनी पहचान बना रही हैं।
हमारे पास ऐसे कई उदाहरण मौजूद हैं जैसे - कल्पना चावला भारत की पहली महिला अंतरिक्ष यात्री, जिन्होंने विज्ञान और अंतरिक्ष अन्वेषण में अपनी छाप छोड़ी। राधिका कुलकर्णी: एनालिटिक्स और ऑपरेशंस रिसर्च के क्षेत्र में प्रसिद्ध भारतीय वैज्ञानिक। तनुजा घोष: भारत की प्रमुख डेटा साइंटिस्ट, जिन्होंने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग में काम किया। महिलाओं को इस क्षेत्र में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जैसे लैंगिक भेदभाव, करियर में स्थिरता की कमी, और कार्य-जीवन संतुलन। लेकिन इन सभी बाधाओं को पार कर वे सफलता की नई कहानियाँ लिख रही हैं। प्रकृति को समझने की नई परिभाषा, जूलॉजी (पशु विज्ञान) एक ऐसा क्षेत्र है, जहाँ महिलाएँ जीवों, पर्यावरण और जैव विविधता को समझने के लिए महत्वपूर्ण कार्य कर रही हैं। यह क्षेत्र न केवल अनुसंधान और प्रयोगशाला कार्यों से जुड़ा है, बल्कि वाइल्डलाइफ कंजर्वेशन, इकोलॉजी और बायोटेक्नोलॉजी जैसी शाखाओं से भी संबंध रखता है। जूलॉजी में महिलाओं की उपलब्धियों पर नजर डाले तो डॉ. सलिमा इकराम: विश्व प्रसिद्ध जूलॉजिस्ट और पुरातत्वविद्, जिन्होंने जीवाश्म विज्ञान और प्राचीन जीवों पर काम किया। डॉ. सरला दास: भारत की पहली महिला वेटरनरी डॉक्टर, जिन्होंने पशु चिकित्सा में महत्वपूर्ण योगदान दिया। डॉ. प्रिया अय्यर: जूलॉजी और पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में अग्रणी भारतीय वैज्ञानिक। महिलाएँ अब वाइल्डलाइफ संरक्षण, जैव तकनीक, जलीय जीव विज्ञान (Marine Biology) और अन्य क्षेत्रों में अपना योगदान दे रही हैं। सरकार और गैर-सरकारी संस्थाएँ भी महिलाओं को विज्ञान और अनुसंधान में आगे बढ़ाने के लिए कई योजनाएँ चला रही हैं। तकनीक और जूलॉजी, दोनों ही क्षेत्रों में महिलाएँ अपनी मेहनत, लगन और बुद्धिमत्ता से एक नया मुकाम हासिल कर रही हैं। हालाँकि चुनौतियाँ हैं, लेकिन वे हर बाधा को पार कर सफलता की कहानियाँ लिख रही हैं। जरूरत है कि हम उन्हें और अधिक समर्थन दें, ताकि वे अपनी प्रतिभा को और अधिक निखार सकें।
"अगर एक महिला ठान ले, तो कोई भी क्षेत्र उसके लिए असंभव नहीं!" इस महिला दिवस पर हम सभी को यह संकल्प लेना चाहिए कि हम अपने घर, समाज और कार्यस्थल पर महिलाओं को सम्मान देंगे, उनके सपनों का समर्थन करेंगे, और एक ऐसा माहौल बनाएंगे जहाँ वे बिना किसी डर के आगे बढ़ सकें। क्योंकि जब एक महिला आगे बढ़ती है, तो सिर्फ वह नहीं, बल्कि पूरा समाज आगे बढ़ता है। "नारी ही शक्ति है, नारी ही जीवन है। नारी के बिना यह सृष्टि अधूरी है।"।
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