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फ्री योजनाओं की राजनीति: लोकतंत्र और विकास के लिए खतरा ! ओमवीर आर्य

मनोज कुमार तोमर ब्यूरो चीफ दैनिक फ्यूचर लाइन टाईम्स गौतमबुद्ध नगर ‌।

ग्रेटर नोएडा। भारत के लोकतांत्रिक ढांचे में चुनावों के दौरान मुफ्त सुविधाओं और सेवाओं का वादा करना एक आम चलन बन गया है। विशेष रूप से दिल्ली विधानसभा चुनावों में कांग्रेस, आम आदमी पार्टी (आप), और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बीच इस 'रेवड़ी संस्कृति' को बढ़ावा देने की होड़ देखी गई है। हालांकि यह अल्पकालिक लाभ पहुंचाने का साधन हो सकता है, परंतु लंबे समय में यह व्यवस्था लोकतंत्र, अर्थव्यवस्था और नागरिक समाज के लिए गंभीर चुनौतियां पैदा कर रही है।

फ्री योजनाओं का उद्देश्य आम जनता को राहत प्रदान करना है, लेकिन इनका दीर्घकालिक प्रभाव अत्यंत हानिकारक है। आंकड़े दर्शाते हैं कि कई राज्य सरकारें बजट का बड़ा हिस्सा फ्री योजनाओं पर खर्च कर रही हैं, जिससे विकास कार्यों के लिए धन की कमी हो रही है। 2022-23 के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, देश की कुल GDP का लगभग 2-3% हिस्सा ऐसी योजनाओं में खर्च किया गया। उदाहरण के लिए। दिल्ली सरकार द्वारा फ्री बिजली और पानी योजनाओं में 4,500 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया गया। तमिलनाडु में मुफ्त राशन और स्कूटी योजनाओं पर 7,000 करोड़ रुपये खर्च किए गए। इस प्रकार की नीतियां अल्पकालिक लाभ पहुंचाकर वोट बैंक तो सुनिश्चित करती हैं, लेकिन जनता को आलसी और निर्भर बनाती हैं।

फ्री योजनाएं राज्य सरकारों के वित्तीय स्वास्थ्य को कमजोर करती हैं। इन खर्चों के कारण: बुनियादी ढांचे के विकास, जैसे कि शिक्षा, स्वास्थ्य और परिवहन, पर निवेश कम हो रहा है।ऋण लेने की प्रवृत्ति बढ़ रही है, जिससे राज्यों पर आर्थिक दबाव बढ़ता है। उदाहरण के लिए, पंजाब और राजस्थान जैसे राज्यों पर कर्ज का अनुपात GDP के 40% तक पहुंच गया है।रोजगार सृजन की प्रक्रिया धीमी हो रही है, क्योंकि फ्री सुविधाओं के कारण श्रम की मांग कम हो रही है।

फ्री योजनाएं वोटरों को लुभाने का साधन बन चुकी हैं। यह प्रवृत्ति लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को कमजोर करती है, क्योंकि यह नीतिगत चर्चाओं और दीर्घकालिक विकास की योजना को हाशिये पर डालती है। साथ ही, यह समाज में असमानता को भी बढ़ावा देती है, क्योंकि केवल एक वर्ग को लाभ पहुंचाया जाता है।

यदि इस प्रवृत्ति को समय रहते नहीं रोका गया, तो देश आर्थिक और सामाजिक संकटों का सामना करेगा। इसे रोकने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जाने चाहिए। वित्तीय अनुशासन: फ्री योजनाओं पर खर्च की सीमा तय होनी चाहिए। जनता को जागरूक करना: मतदाताओं को इस बात का एहसास कराया जाए कि मुफ्त योजनाओं का दीर्घकालिक नुकसान होता है। न्यायिक हस्तक्षेप: सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग को इस विषय पर सख्त नियम बनाने चाहिए ताकि फ्री योजनाओं के नाम पर अनावश्यक वादों पर रोक लग सके।

फ्री योजनाओं की राजनीति देश के लोकतंत्र और विकास दोनों के लिए हानिकारक है। यह प्रवृत्ति न केवल आर्थिक संसाधनों का दुरुपयोग करती है, बल्कि समाज में आलस्य और निर्भरता की भावना को बढ़ावा देती है। इसे रोकने के लिए जनता, सरकार और न्यायपालिका को मिलकर प्रयास करने की आवश्यकता है। अन्यथा, यह प्रवृत्ति भविष्य में देश को एक गंभीर संकट की ओर धकेल सकती है।

लेखक:- ओमवीर सिंह आर्य 

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