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प्राइवेट विद्यालयों की लूट: शिक्षा के नाम पर शोषण। ओमवीर सिंह आर्य

राष्ट्रीय दैनिक फ्यूचर लाइन टाईम्स हिंदी राष्ट्रवादी समाचार पत्र।
नोएडा। शिक्षा किसी भी समाज के विकास की आधारशिला है। यह हर नागरिक का मूल अधिकार है और इसका उद्देश्य बच्चों को एक उज्ज्वल भविष्य के लिए तैयार करना है। लेकिन गौतमबुद्धनगर जैसे क्षेत्रों में शिक्षा का यह पवित्र उद्देश्य अब मुनाफाखोरी और शोषण का अड्डा बन गया है। नोएडा, ग्रेटर नोएडा और ग्रेटर नोएडा वेस्ट के प्राइवेट विद्यालयों ने शिक्षा को सेवा नहीं, बल्कि व्यवसाय का साधन बना दिया है।
इन विद्यालयों ने ट्यूशन फीस, ऐडमिशन फीस, किताबों और यूनिफॉर्म की अनावश्यक खरीददारी जैसे माध्यमों से आम आदमी की जेबें खाली कर दी हैं। शिक्षा की गुणवत्ता के नाम पर हर साल फीस में मनमानी वृद्धि की जाती है। ऊपर से "अनिवार्य सुविधाओं" के नाम पर पेरेंट्स से जबरन पैसा वसूला जाता है। हालत यह हो गई है कि मध्यमवर्गीय और निम्नवर्गीय परिवारों के लिए बच्चों को पढ़ाना एक बोझ बन गया है।
बढ़ती फीस और घटती उम्मीदें
इन प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाई के खर्चे इतने ज्यादा हो गए हैं कि आम आदमी की जिंदगी दोहरी मार झेल रही है। एक तरफ ट्यूशन और कोचिंग की महंगी फीस, और दूसरी तरफ घर का खर्चा चलाने की जद्दोजहद। फीस के नाम पर जबरन वसूली और मनमानी नियमों ने माता-पिता को कर्ज लेने पर मजबूर कर दिया है।
सरकारी नियंत्रण की कमी‌
ऐसा प्रतीत होता है कि इन प्राइवेट विद्यालयों पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है। शिक्षा विभाग और अन्य संस्थाओं की अनदेखी ने इन स्कूलों को बेलगाम बना दिया है। ऐसा शक भी गहराता है कि इन संस्थानों में सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत हो सकती है।
न्यायिक और सरकारी हस्तक्षेप की आवश्यकता
शिक्षा को केवल मुनाफा कमाने का माध्यम नहीं बनने देना चाहिए। सरकार और न्यायालय को इन प्राइवेट स्कूलों की लूट पर कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए। स्कूलों को मनमानी फीस बढ़ाने से रोकने के लिए सख्त कानून बनाए जाने चाहिए। साथ ही, ऐसी नीति होनी चाहिए जो शिक्षा को सुलभ और सस्ता बनाए।
समाज की भूमिका।
सिर्फ सरकार ही नहीं, समाज और माता-पिता को भी एकजुट होकर आवाज उठानी होगी। संगठित प्रयास और आंदोलनों से ही इन प्राइवेट विद्यालयों की मनमानी पर रोक लगाई जा सकती है। शिक्षा का उद्देश्य बच्चों के भविष्य का निर्माण करना है, न कि माता-पिता को कर्ज में डुबोना।
निष्कर्षतः, प्राइवेट स्कूलों की यह लूट केवल माता-पिता का आर्थिक शोषण नहीं है, बल्कि यह हमारे समाज और देश के विकास पर एक बड़ा धब्बा है। शिक्षा एक अधिकार है, विलासिता नहीं। सरकार, न्यायालय और समाज को मिलकर इसे सुलभ और निष्पक्ष बनाना होगा।
 
लेखक:ओमवीर सिंह आर्य एडवोकेट राष्ट्रीय अध्यक्ष जन आंदोलन भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज।

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