-->

उत्तर प्रदेश में पहला मामलाः क्रोनिक एसिड रीफल्क्स से पीड़ित 45-वर्षीय महिला का फोर्टिस हॉस्पीटल नोएडा में मिनीमॅली इन्वेसिव सर्जरी से सफल इलाज ।


मनोज तोमर दैनिक फ्यूचर लाइन टाइम ब्यूरो चीफ गौतमबुद्धनगर 
नोएडा, ।फोर्टिस हॉस्पीटल नोएडा के डॉक्टरों ने उत्तर प्रदेश में एंडोस्कोपिक फंडोप्लिकेशन से पहली बार सफल उपचार किया है। यह पेट के वाल्व की मरम्मत करने की मिनीमॅली इन्वेसिव प्रक्रिया है। इसे पिछले 2 साल से गैस्ट्रोइसोफेगल रिफ्लक्स रोग GERD से पीड़ित 45-वर्षीय महिला के उपचार के लिए इस्तेमाल किया गया। गैस्ट्रोइसोफेगल रिफ्लक्स रोग GERD एक सामान्य कंडीशन है जिसमें पेट का एसिड लगातार पीछे की ओर लौटता रिफ्लक्स है और भोजन नली में पहुंचकर जलन तथा इंफ्लेमेशन का कारण बनता है। डॉ सुश्रुत सिंह, एडिशनल डायरेक्टर – गैस्ट्रोएंटेरोलॉजी, फोर्टिस नोएडा के नेतृत्व में डॉक्टरों की टीम ने एडवांस टेक्नोलॉजी की सहायता से इस प्रक्रिया को केवल 45 मिनट में पूरा किया। महिला को एक ही दिन में स्थिर अवस्था में अस्पताल से छुट्टी भी दे दी गई। 
मरीज हाइटस हर्निया के कारण काफी गंभीर किस्म के एसिड रिफ्लक्स जो कि भोजन नली और पेट के बीच मौजूद वाल्व के ठीक तरीके से काम नहीं करने के कारण पैदा होता है।से पीड़ित थीं। हाइटस हर्निया उस स्थिति में होता है जब पेट का एक हिस्सा डायफ्राम के बाहर छाती तक चला जाता है। लाइफस्टाइल में बदलाव और अन्य कई तौर-तरीकों को अपनाने के बावजूद मरीज के लक्षण लगातार गंभीर बने हुए थे। इस प्रकार की रिफ्रेक्टरी GERD का आमतौर से लैपरोस्कोपिक सर्जरी से इलाज किया जाता है, जिसमें सर्जन मामूली चीरा लगाकर वाल्व की मरम्मत कर उसे कसता है। लेकिन इस मामले में मरीज की जांच और उनके परिजनों के साथ मामले की पूरी चर्चा करने के बाद डॉक्टरों ने इस नई प्रक्रिया - एंडोस्कोपिक फंडोप्लिकेशन से इलाज का विकल्प चुना। इस गैर-सर्जिकल प्रक्रिया में मुंह के रास्ते छोटे आकार की क्लिपों को मरीज के शरीर में डाला गया और इनसे पेट के वाल्व को कसा गया। मरीज की तुरंत रिकवरी के बाद उसी दिन अस्पताल से छुट्टी भी दे दी गई, जबकि लैपरोस्कोपिक सर्जिकल रिपेयर के मामलों में 2 से 3 दिनों तक अस्पताल में ही रुकना पड़ता है। 
इस मामले की पूरी जानकारी देते हुए, डॉ सुश्रुत सिंह, एडिशनल डायरेक्टर – गैस्ट्राएंटेरोलॉजी, फोर्टिस हॉस्पीटल, नोएडा ने कहा, “मरीज के पेट और इसोफेगस के बीच मौजूद वाल्व को कसने के लिए मिनीमॅली इन्वेसिव सर्जरी का सहारा लिया गया। ऐसा इसलिए किया गया ताकि पेट का एसिड लौटकर भोजन नली में न जाए। इस मामले में पारंपरिक सर्जरी की तरह बड़े आकार का चीरा लगाने की जरूरत नहीं होती, इसकी बजाय मुंह के रास्ते छोटे आकार के टूल्स को शरीर के अंदर भेजकर रिपेयर की जाती है। इस प्रक्रिया में, न कोई चीरा लगाया जाता है और न ही त्वचा पर कोई घाव होता है, इसे एक ही दिन में पूरा कर मरीज को उसी दिन अस्पताल से छुट्टी मिल जाती है, तथा मरीज की रिकवरी भी तत्काल हो जाती है। यह नई प्रक्रिया काफी सुरक्षित, सरल, कारगर और जोखिम-मुक्त है, और क्रोनिक रिफ्लक्स रोग से पीड़ित मरीजों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है।”मोहित सिंह, ज़ोनल डायरेक्टर, फोर्टिस हॉस्पीटल, नोएडा ने कहा, “यह उत्तर प्रदेश में किसी मरीज के उपचार के लिए एंडोस्कोपिक फंडोप्लिकेशन प्रक्रिया इस्तेमाल करने का पहला मामला है। यह काफी चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया थी, लेकिन डॉ सुश्रुत सिंह के नेतृत्व में डॉक्टरों की टीम ने इस पूरे मामले में सर्जरी को काफी सावधानीपूर्वक और सटीक तरीके से अंजाम दिया। ऐसे मामलों में सही डायग्नॉस्टिक और मैनेजमेंट रणनीतियों की जरूरत होती है, और फोर्टिस हॉस्पीटल नोएडा इस प्रकार के चुनौतीपूर्ण मामलों में उपचार के लिए पूर्ण रूप से सुसज्जित है।”

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ