नई दिल्ली, 27 दिसंबर 2024
भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का आज निधन हो गया। एक कुशल अर्थशास्त्री और भारत की आर्थिक नीतियों को नई दिशा देने वाले नेता के रूप में उन्होंने देश की सेवा की। लेकिन उनके कार्यकाल को एक परिवार की कृपा और राजनीतिक विवशताओं के कारण विवादों और आलोचनाओं का सामना करना पड़ा।
डॉ. मनमोहन सिंह, जिन्हें भारत के पहले अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री के रूप में जाना जाता है, ने अपने कार्यकाल में कई ऐतिहासिक फैसले लिए। उन्होंने देश की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने, मनरेगा जैसी योजनाओं को लागू करने और आर्थिक सुधारों के माध्यम से भारत को वैश्विक मंच पर मजबूत स्थिति में लाने का प्रयास किया। परंतु उनके कार्यकाल को नेहरू-गांधी परिवार की कृपादृष्टि और राजनीतिक दबावों के कारण कई बार आलोचना झेलनी पड़ी।
गरिमा पर सवाल और विवशताएँ
उनके प्रधानमंत्री रहते हुए कई ऐसे घटनाक्रम हुए, जिन्होंने उनके पद की गरिमा को ठेस पहुँचाई।
1. संसद में बिल फाड़ने की घटना: कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा संसद में प्रधानमंत्री के सामने ही एक जनहित बिल को फाड़ दिया गया। इस पर डॉ. मनमोहन सिंह चुपचाप देखते रहे, जिससे उनकी मजबूरी और विवशता उजागर हुई।
2. आतंकी यासीन मलिक से मुलाकात: एक दुर्दांत आतंकी से प्रधानमंत्री कार्यालय में मुलाकात करना उनके गरिमा को ठेस पहुँचाने वाली घटना मानी गई।
3. मुंबई आतंकी हमले पर निर्णय में देरी: 26/11 के मुंबई हमलों के दौरान सेना की कार्रवाई के लिए तत्काल निर्णय लेने के बजाय उन्होंने "सोनिया गांधी से पूछने" की बात कही, जो उनके विवशता भरे नेतृत्व को दर्शाता है।
एक महान अर्थशास्त्री, पर विवश प्रधानमंत्री
डॉ. मनमोहन सिंह ने संसद में अपनी खामोशी के माध्यम से अपनी स्थिति को कई बार बयां किया। उनके द्वारा कहा गया शेर, "हजारों जवाबों से अच्छी है मेरी खामोशी, कहीं विवादों में ना घसीटा जाऊँ," उनके भीतर छिपे दर्द और विवशता को दर्शाता है।
राष्ट्र के लिए अपूर्णीय क्षति
डॉ. मनमोहन सिंह के निधन से भारत ने एक कुशल अर्थशास्त्री और विनम्र नेता को खो दिया है। भले ही उनके कार्यकाल में गरिमा पर सवाल उठे हों, लेकिन उनके द्वारा किए गए कई फैसले देशहित में मील का पत्थर साबित हुए।
ईश्वर से प्रार्थना है कि उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें।
- लेखक: जे. पी. सिंह गुर्जर
"जय श्री राम, राम ही सत्य है।"
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