भारत टाईम्स, 11 नवंबर 2024 – देश की प्रगति में पारदर्शिता और शिक्षा का महत्वपूर्ण स्थान है, जिसके लिए सूचना का अधिकार (आरटीआई) और शिक्षा का अधिकार (आरटीई) अधिनियमों की सुदृढ़ता आवश्यक है। दोनों कानूनों के मूल उद्देश्यों को पूरा करने और जनता के लिए अधिक प्रभावी बनाने के लिए केंद्र सरकार से इन पर सुधार की माँग की जा रही है। आरटीआई और आरटीई का सही क्रियान्वयन आम नागरिक को सशक्त बनाने और भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने का एक मजबूत माध्यम है।
आरटीआई अधिनियम का उद्देश्य नागरिकों को सरकार की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता और जवाबदेही की दिशा में आगे बढ़ाना है। यह कानून सरकार की गतिविधियों पर जनता की निगरानी को सक्षम बनाता है, जिससे सरकारी अधिकारियों पर जवाबदेही बढ़ती है और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगता है। इसके तहत नागरिक सरकारी दस्तावेजों, योजनाओं और परियोजनाओं से संबंधित जानकारी प्राप्त कर सकते हैं, जो लोकतंत्र को सही मायनों में जनता के लिए कार्य करने वाला बनाता है।
आरटीआई की चुनौतियाँ और आवश्यक सुधार
हालांकि, आरटीआई का उद्देश्य व्यापक जनसाधारण को जानकारी के अधिकार से सशक्त करना है, परंतु इस कानून के कार्यान्वयन में कई चुनौतियाँ सामने आई हैं। कई बार अधिकारियों द्वारा जानकारी देने में देरी या टालमटोल की जाती है, जिससे आम नागरिक के लिए जानकारी प्राप्त करना कठिन हो जाता है। विशेषज्ञों का मानना है कि आरटीआई अधिकारियों पर निगरानी और कानून के नियमों का कड़ाई से पालन सुनिश्चित करने के लिए सुधार की आवश्यकता है। इसके अलावा, सूचना आयोगों में लंबित मामलों की संख्या भी कम करने की दिशा में कदम उठाने की जरूरत है, जिससे जनता की मांगों का त्वरित समाधान हो सके। शिक्षा का अधिकार अधिनियम, जिसे आरटीई के नाम से जाना जाता है, 2009 में संसद द्वारा पारित किया गया था और यह 1 अप्रैल 2010 से लागू हुआ। इसके तहत 6 से 14 वर्ष के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार प्रदान किया गया है। आरटीई का उद्देश्य उन बच्चों को शिक्षा के अवसर प्रदान करना है जो गरीबी या अन्य कारणों से स्कूल जाने में असमर्थ हैं। यह अधिनियम शिक्षा को सभी बच्चों के लिए समान रूप से सुलभ बनाने का एक महत्वपूर्ण प्रयास है, परंतु इसके कार्यान्वयन में भी कई चुनौतियाँ विद्यमान हैं। शिक्षा का अधिकार कानून की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि यह ग्रामीण और वंचित समुदायों के बच्चों तक कितना प्रभावी रूप से पहुँचता है। हालांकि इस अधिनियम के लागू होने से देश में शिक्षा का स्तर बढ़ा है, फिर भी कई स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं का अभाव और शिक्षकों की कमी के कारण इस अधिनियम का पूर्ण लाभ बच्चों तक नहीं पहुँच पाता। इसके अलावा, निजी स्कूलों में गरीब वर्ग के बच्चों के लिए आरक्षित सीटों पर भी सही तरीके से ध्यान देने की आवश्यकता है ताकि वे भी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त कर सकें। विशेषज्ञों का मानना है कि आरटीई को और अधिक कारगर बनाने के लिए इसे मजबूत करने और इसके बजट में वृद्धि करने की आवश्यकता है, ताकि शिक्षण संस्थानों और विद्यालयों को आवश्यक संसाधन और बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर मिल सके।
सामाजिक कार्यकर्ता और विशेषज्ञ मानते हैं कि वर्तमान समय में आरटीआई और आरटीई अधिनियमों को मजबूत करने की आवश्यकता है। देश में बढ़ते भ्रष्टाचार, शिक्षा की कमी और जानकारी के अभाव को देखते हुए सरकार को इन कानूनों में आवश्यक सुधार करने चाहिए। आरटीआई और आरटीई के क्रियान्वयन में हो रही कठिनाइयों को दूर करने के लिए यह जरूरी है कि अधिकारियों की जवाबदेही तय की जाए, मामलों के निपटारे की प्रक्रिया को तेज किया जाए और जनता को इन कानूनों का अधिक से अधिक लाभ मिले। आरटीआई में पारदर्शिता और त्वरित जवाबदेही - अधिकारियों को आरटीआई आवेदनों का त्वरित निपटारा करने की सख्त हिदायत दी जाए और सूचना आयोगों की कार्यप्रणाली में सुधार किया जाए। आरटीई में बजट और संसाधनों की वृद्धि - शिक्षा के बजट में वृद्धि कर स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं का विकास किया जाए। जन-जागरूकता अभियान - ग्रामीण और वंचित समुदायों में आरटीई और आरटीआई के लाभों के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए अभियान चलाए जाएं, जिससे अधिक लोग इसका लाभ उठा सकें।
आरटीआई और आरटीई जैसे कानून नागरिकों के सशक्तिकरण और विकास का मार्ग प्रशस्त करते हैं। आरटीआई के माध्यम से लोग सरकार से सवाल पूछने और जवाबदेही सुनिश्चित करने में सक्षम होते हैं, वहीं आरटीई के तहत बच्चों को शिक्षा का मौलिक अधिकार प्राप्त होता है। सरकार को इन कानूनों की प्रभावशीलता बढ़ाने के लिए आवश्यक सुधार करने चाहिए, जिससे इनका लाभ सही मायनों में समाज के हर वर्ग तक पहुँच सके।
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