भारत टाईम्स। गौतमबुद्ध नगर और गाजियाबाद जिलों की उपजाऊ भूमि एक समय हरियाली और खुशहाली का प्रतीक थी, जहाँ किसानों की मेहनत से फसलें लहलहाती थीं। लेकिन पिछले दो दशकों में इस भूमि की कहानी एक दर्दनाक बदलाव का शिकार हो गई है। हाई-टेक सिटी के सपने का झांसा देकर, प्राइवेट बिल्डर 'वेव बिल्डर' ने किसानों की जमीन पर कब्जा जमाना शुरू किया, और इस पूरी प्रक्रिया में किसानों को आर्थिक रूप से कमजोर और बर्बाद कर दिया गया।
हाई-टेक सिटी का सपना, किसानों की बर्बादी का बहाना।
वेव बिल्डर को प्रदेश सरकार से हाई-टेक सिटी बसाने के नाम पर 20 साल पहले अनुमति दी गई थी। इस नीति का दावा था कि इससे विकास होगा, रोजगार के अवसर बढ़ेंगे, और क्षेत्र का चहुंमुखी विकास होगा। लेकिन हकीकत इससे बहुत अलग थी। इस बिल्डर ने हाई-टेक सिटी के नाम पर किसानों से उनकी बेशकीमती जमीनों को मामूली दामों पर खरीदना शुरू किया। सरकार की नीतियों और प्राइवेट बिल्डर्स की मिलीभगत ने किसानों के जीवन को संघर्षमय बना दिया।
किसानों की जमीन कोडियों में, बिक्री करोड़ों में।
वेव बिल्डर ने गाजियाबाद और गौतमबुद्ध नगर की उपजाऊ कृषि भूमि को पहले 350 रुपए प्रति गज के भाव से खरीदा। किसानों को आश्वासन दिया गया था कि उनकी जमीन के बदले उन्हें समुचित मुआवजा मिलेगा, लेकिन जमीनी हकीकत इससे कोसों दूर रही। आज वही जमीन करोड़ों रुपए प्रति गज में बेची जा रही है। किसानों से सस्ते दाम पर जमीन खरीदकर, इस बिल्डर ने कई कंपनियाँ बनाईं और उनकी आड़ में कृषि भूमि को विकसित करके महंगे प्लॉट और अपार्टमेंट के रूप में बेचना शुरू कर दिया।
किसान से मजदूर बनने को मजबूर।
कृषि भूमि बेचने के बाद, आज वही किसान अपनी ही जमीन पर मजदूर बन कर जीने को मजबूर हैं। जिन किसानों ने अपनी जमीन खोई थी, उनके लिए जीवन एक कठिन संघर्ष बन गया है। अधिकांश किसानों को कोई वैकल्पिक रोजगार या पुनर्वास योजना नहीं दी गई। उन्हें मुआवजे के नाम पर सिर्फ मामूली रकम दी गई, जो उनकी जिंदगी की जरूरतों के लिए पर्याप्त नहीं थी। नतीजतन, ये किसान अब छोटे-मोटे मजदूरी का काम करने को मजबूर हो गए हैं।
समानता और विकास के नाम पर शोषण।
वेव बिल्डर जैसे कई बड़े बिल्डर्स ने समाज में समानता और विकास का झूठा सपना दिखाकर किसानों को छलने का काम किया है। वे लोग जो किसानों के अधिकारों की बात करते हैं, उन्होंने ही उन्हें बर्बादी के कगार पर धकेल दिया। किसानों की जमीन को इस तरह से खरीदना और फिर उसे महंगे रेट पर बेचना न केवल आर्थिक असमानता को बढ़ावा देता है, बल्कि समाज के कमजोर वर्ग को और कमजोर बनाता है।
वेव बिल्डर की काली करतूतें और अनदेखा मुनाफा।
वेव बिल्डर द्वारा लूटी गई जमीन का मूल्य आज कई गुना बढ़ चुका है। जिस जमीन को किसानों से कोड़ियों के भाव खरीदा गया, आज उसे करोड़ों में बेचा जा रहा है। इस बिल्डर ने तथाकथित 'विकास' के नाम पर उन किसानों की मेहनत का मजाक उड़ाया है जिन्होंने वर्षों तक इस भूमि पर पसीना बहाया था। यह मुनाफा इतना अधिक है कि आम आदमी की सोच के परे है, और इसमें आम जनता का हिस्सा कहीं दिखाई नहीं देता।
क्या सरकार किसानों की सुध लेगी?
अब समय आ गया है कि सरकार इस गंभीर मुद्दे पर ध्यान दे। किसानों की जमीन और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए सख्त कदम उठाए जाने चाहिए। यह आवश्यक है कि किसानों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक किया जाए और उन्हें उनकी जमीन का उचित मूल्य मिले। इसके अलावा, सरकार को ऐसे नियम बनाने चाहिए जिससे प्राइवेट बिल्डर्स के मुनाफे की भूख पर अंकुश लगे, और किसानों को उनका हक मिले। कृषि प्रधान देश कहे जाने वाले भारत में किसानों की दशा चिंताजनक है। यदि सरकार ने इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाए तो भविष्य में किसानों का जीवन और कठिन हो जाएगा। किसान आत्महत्या और भूखमरी की ओर बढ़ सकते हैं, जिसका प्रभाव हमारी पूरी अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है। अतः सरकार को चाहिए कि वह वेव बिल्डर जैसे बिल्डर्स पर कार्रवाई करे और किसानों को उनके हक और सम्मान के साथ जीवन यापन करने का मौका दे।
0 टिप्पणियाँ