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कश्मीर की अनदेखी: क्यों देश मौन है?

ओमवीर सिंह आर्य मुख्य संपादक दैनिक फ्यूचर लाइन टाईम्स भारत।
भारत टाईम्स। हमारे देश के कुछ राजनीतिक दलों को इजराइल-हमास युद्ध की चिंता, परंतु अपने देश की अनदेखी: कश्मीर में आतंकी हमले में सात निर्दोषों की मौत। आज पूरा विश्व इजराइल और फिलिस्तीन के बीच चल रहे युद्ध पर ध्यान केंद्रित किए हुए है। भारत में भी यह संघर्ष चर्चा का केंद्र बना हुआ है। हमास और इजराइल के बीच चल रही हिंसा ने दुनियाभर में चिंता की लहरें पैदा की हैं, जिसके चलते हमारे देश के कई हिस्सों में भी धरने-प्रदर्शन और विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। कई लोग यह मानते हैं कि हमास के साथ समर्थन जताना महत्वपूर्ण है। लेकिन इस सबके बीच, क्या हम अपने देश में घटित हो रही त्रासदियों पर पर्याप्त ध्यान दे रहे हैं? रविवार की रात जम्मू कश्मीर के गांदरबल जिले के सोनमर्ग क्षेत्र में एक निर्माणाधीन सुरंग की साइट पर आतंकियों द्वारा हमला किया गया, जिसमें 7 निर्दोष लोग मारे गए। मरने वालों में एक डॉक्टर और तीन गैर-कश्मीरी मजदूर शामिल थे, साथ ही पांच अन्य लोग गंभीर रूप से घायल हो गए। यह आतंकी हमला हमें फिर से याद दिलाता है कि आतंकवाद की जड़ें केवल धर्म, जाति या क्षेत्र तक सीमित नहीं होतीं; इसका प्रभाव हर समुदाय पर होता है।
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि ऐसे संवेदनशील समय में जब देश के भीतर आतंकवादी घटनाएं घट रही हैं, हमारा ध्यान कहीं और बंटा हुआ है। फिलिस्तीन के समर्थन में हमारे देश के लोग सड़कों पर उतर रहे हैं, उसी प्रकार कश्मीर में हुए इस आतंकी हमले पर भी एक समान प्रतिक्रिया होनी चाहिए। आखिरकार, इस हमले में मरने वाले न केवल हिंदू थे, बल्कि सिख और मुस्लिम भी थे। आतंकियों ने यह नहीं देखा कि कौन किस धर्म का है, वे बस निर्दोष लोगों की जान लेने आए थे।‌ इस हमले ने न केवल सात निर्दोष लोगों की जान ली, बल्कि सात परिवारों के सपनों को भी चकनाचूर कर दिया। मरने वालों के परिवार आज शोक में डूबे हुए हैं, उनके घरों के रोशन दीये हमेशा के लिए बुझ गए हैं। इन परिवारों के दर्द को कौन सुनेगा? कौन उनके लिए आवाज उठाएगा? क्या उनके जीवन की कीमत इजराइल-फिलिस्तीन संघर्ष से कम है?
जब देश के एक हिस्से में आतंकी हमला होता है, तो यह केवल उस क्षेत्र का मुद्दा नहीं रह जाता, बल्कि पूरे देश का सवाल बन जाता है। आज हमें जरूरत है कि हम इजराइल-हमास के युद्ध की चिंता के साथ-साथ अपने देश की सीमाओं में हो रहे आतंकवादी हमलों पर भी ध्यान दें। यह वक्त है कि हम इस हमले पर भी उतनी ही संवेदनशीलता और गंभीरता दिखाएं जितनी अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर दिखाते हैं। यह घटना हमें फिर से यह सोचने पर मजबूर करती है कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता। आतंकवादी केवल विनाश की भाषा समझते हैं। इस हमले में मारे गए लोग किसी एक धर्म या जाति से नहीं थे, वे हिंदू, सिख और मुस्लिम समुदाय से थे। यह दर्शाता है कि आतंकवाद का निशाना कोई विशेष समूह नहीं है, बल्कि इसका शिकार हर कोई हो सकता है। आतंकवादी संगठन का उद्देश्य केवल हिंसा और अराजकता फैलाना होता है, और इस बार भी उन्होंने सात परिवारों को अंधेरे में धकेल दिया। हमारे देश के सामने आज सबसे बड़ी चुनौती यह है कि हम आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होकर खड़े हों। जब तक हम अपनी आंतरिक समस्याओं को नजरअंदाज करेंगे, तब तक आतंकवादी हमारे समाज को नुकसान पहुंचाने से पीछे नहीं हटेंगे। हमें यह समझना होगा कि कश्मीर में मारे गए इन सात निर्दोषों का जीवन उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि किसी भी अन्य वैश्विक मुद्दे पर चर्चा की जा रही है। आज समय है कि हम अपनी सरकार से, अपने समाज से और खुद से सवाल करें कि कश्मीर के निर्दोष नागरिकों के लिए कौन खड़ा होगा? उनकी सुरक्षा के लिए कौन आवाज उठाएगा? आतंकवाद से पीड़ित इन परिवारों के लिए हमें मिलकर एक सशक्त और संवेदनशील समाज का निर्माण करना होगा, ताकि कोई और निर्दोष व्यक्ति इस बर्बरता का शिकार न हो। इस हमले के पीड़ितों को न्याय दिलाना हमारा कर्तव्य है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि उनकी शहादत व्यर्थ न जाए। आतंकवाद के खिलाफ हमारी लड़ाई न केवल सुरक्षा के लिहाज से, बल्कि मानवता के दृष्टिकोण से भी होनी चाहिए।

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