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दीपावली: प्रकाश पर्व के आदर्शों की ओर लौटने का संकल्प

ओमवीर सिंह आर्य मुख्य संपादक दैनिक फ्यूचर लाइन टाईम्स भारत।
भारत टाईम्स। दीपावली केवल दीपों का पर्व नहीं है; यह अंधकार पर प्रकाश, बुराई पर अच्छाई, और नकारात्मकता पर सकारात्मकता की विजय का प्रतीक है। यह पर्व भारतीय संस्कृति, परंपराओं और मूल्यों की अमिट छाप को संजोए हुए है। दीपावली पर हर घर में दीप जलाए जाते हैं, रंगोली बनाई जाती है, और उत्सव का माहौल होता है, जो समृद्धि और सुख-शांति की कामना के साथ सभी के जीवन में आनंद भर देता है। परंतु, आज के समय में यह पर्व क्या केवल एक औपचारिकता बनकर रह गया है, या फिर इसके मूल आदर्शों को आत्मसात करना भी हमारी जिम्मेदारी है? यह विचारणीय है कि भगवान श्रीराम के आदर्शों को हम वास्तव में अपने जीवन में कितनी गहराई से उतारते हैं।
दीपावली का उत्सव भगवान श्रीराम के वनवास से अयोध्या लौटने पर नगरवासियों द्वारा उनके स्वागत में दीप जलाने की परंपरा से जुड़ा हुआ है। यह दिन केवल उल्लास और आस्था का नहीं, बल्कि भगवान राम के आदर्शों और उनके बलिदान की स्मृति का दिन भी है। उन्होंने अपने जीवन में मर्यादा, कर्तव्य और प्रेम का पालन किया, जो हर व्यक्ति के लिए प्रेरणादायक है। आज हम उनके उपासक तो हैं, लेकिन उनके आदर्शों को अपने जीवन में कितना अपनाते हैं, यह सवाल महत्वपूर्ण है। एक प्रसंग हमारे लिए आज भी विचारणीय है, जब श्रीराम ने वनवास के दौरान वन देवी से प्रार्थना की थी कि जब उनके भाई भरत उन्हें ढूंढने आएं तो कांटे और कंकड़ उनकी राह से हट जाएं। तब वन देवी ने श्रीराम से सवाल किया क्या तुम्हारे भाई के पैर इतने कोमल है कि वह इन रास्तों पर नहीं चल सकते। वन देवी के सवाल पर श्रीराम का उत्तर था कि उनके पैर तो वज्र जेसे मजबूत है लेकिन भाई भरत का प्रेम इतना कोमल है कि वो उनके कारण इस कंटीली राह पर आएंगे। इस प्रसंग से हमें यह संदेश मिलता है कि अपने परिजनों के प्रति हमें किस हद तक प्रेम और त्याग की भावना रखनी चाहिए। परंतु आज के समाज में हम इस भावना से कहीं दूर होते जा रहे हैं। अधिकांश दीवानी केसों में देखा जाता है कि भाई-भाई के बीच संपत्ति विवाद के कारण मतभेद हो रहे हैं। आज दीपावली के पर्व पर हमें आत्ममंथन करना चाहिए कि हम श्रीराम को पूजते हैं, लेकिन क्या हम उनके आदर्शों को अपने आचरण में उतार रहे हैं? केवल पूजा और व्रत करने से हमारे आदर्शों का पालन नहीं होता, हमें अपने कर्मों में भी उन्हें दिखाना होता है। यह समय की आवश्यकता है कि हम भगवान राम के मूल्यों को फिर से अपनाएं और उन्हें अपने बच्चों के जीवन में भी स्थान दें। दीपावली का यह पर्व हमें भाईचारे, प्रेम और सद्भावना का मार्ग दिखाता है, जिसे हमें अपने सामाजिक जीवन में भी प्रकट करना चाहिए।‌ आज दीपावली की पूजा तभी सफल होगी जब हम अपने परिजनों के प्रति प्रेम, सम्मान और त्याग की भावना को जागृत करेंगे। केवल बाहरी आडंबर या संपत्ति पर ध्यान देने के बजाय, हमें अपने आंतरिक गुणों को भी संवारना होगा। भाई-भाई के बीच संपत्ति विवाद को समाप्त कर हमें आदर्श समाज की स्थापना में योगदान देना चाहिए। यह पर्व केवल हमारी व्यक्तिगत खुशी का नहीं, बल्कि समाज की उन्नति और सामाजिक एकता का भी प्रतीक है।
दीपावली हमें हर साल अपने भीतर के अंधकार को दूर कर जीवन में प्रकाश लाने का अवसर प्रदान करती है। हमें यह समझना होगा कि श्रीराम के आदर्शों का पालन केवल एक दिन या त्योहार तक सीमित नहीं है। यह एक सतत प्रक्रिया है, जो हमारे परिवार और समाज को मजबूत बनाती है। इस दीपावली पर हम संकल्प लें कि अपने पूर्वजों, इष्ट देवताओं और आदर्शों को न केवल सम्मान देंगे बल्कि उनके बताए रास्तों पर चलने का प्रयास भी करेंगे। यही हमारी दीपावली की सच्ची पूजा होगी और इससे ही यह पर्व अपने मूल उद्देश्य को प्राप्त करेगा।
जैसे दीपों की जगमगाहट हमारे चारों ओर उजाला फैलाती है, वैसे ही हमारे दिलों में प्रेम, सहानुभूति और सहयोग की भावना हमें सही मायनों में दीपावली मनाने का अनुभव देगी। हमें चाहिए कि हम एकता के इस संदेश को हर दिल तक पहुंचाएं और परिवार में परस्पर प्रेम व सामंजस्य को पुनः स्थापित करें। तभी हम सच्चे अर्थों में दीपावली का पर्व मना पाएंगे और अपने जीवन को आनंद, शांति और समृद्धि से भर पाएंगे। इस दीपावली, हम सबके जीवन में प्रकाश, शांति और खुशियों का संचार हो। आइए, हम भगवान श्रीराम के आदर्शों को अपने जीवन में उतारकर अपने परिवार और समाज को एक नई दिशा दें, ताकि दीपावली का यह पर्व वास्तव में हमारे जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि लाए।

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