भारत टाईम्स। दिल्ली और उसके आस-पास के महानगर, जैसे नोएडा और ग्रेटर नोएडा, तेजी से विकसित हो रहे हैं, लेकिन इस विकास के बीच गरीब और निम्न आय वर्ग के लोगों के लिए स्थान सिमटता जा रहा है। अवैध अतिक्रमण और निर्माण कार्यों को बढ़ावा देने वाले प्राधिकरणों की लापरवाही के कारण शहर के विभिन्न हिस्से स्लम बस्तियों में तब्दील होते जा रहे हैं। वहीं, दिल्ली और उसके आस-पास के पॉश इलाकों में केवल अमीर वर्ग के लोग ही बसते जा रहे हैं, जबकि गरीबों के लिए शहर में कोई स्थायी स्थान नहीं बचता दिख रहा है। दिल्ली-एनसीआर में विकास योजनाओं का लाभ केवल संपन्न और अमीर वर्ग को मिलता दिखाई दे रहा है। सेक्टरों में रहने वाले लोग, जो बड़ी-बड़ी कोठियों और अपार्टमेंट्स में रहते हैं, उन्हें अपनी रोजमर्रा की जरूरतों के लिए ड्राइवर, घरेलू कामगार, गार्ड, और सफाईकर्मी चाहिए होते हैं। लेकिन सवाल यह है कि इन आवश्यक सेवाएं प्रदान करने वाले गरीब और मध्यम वर्ग के लोग कहां रहेंगे? प्राधिकरण और योजनाकारों ने कभी इस पर ध्यान दिया है? यदि ध्यान दिया भी गया है, तो क्या कोई ठोस योजना क्रियान्वित हुई है? दिल्ली-एनसीआर के अधिकांश सेक्टरों में एक छोटा सा मकान भी करोड़ों का है। यह स्थिति उन लोगों के लिए असंभव बना देती है, जो दस से पंद्रह हजार रुपये मासिक कमाते हैं। क्या यह वर्ग इन महंगे इलाकों में रहने का खर्च उठा सकता है? उनके लिए सस्ती और सुविधाजनक आवासीय योजनाओं की भारी कमी है, जिससे उन्हें स्लम बस्तियों में या अवैध अतिक्रमण में रहने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
नोएडा और ग्रेटर नोएडा जैसे क्षेत्रों में प्राधिकरणों की लापरवाही से अवैध अतिक्रमण की समस्या विकराल होती जा रही है। यहां के गांवों में, जो कभी प्राधिकरण की सीमा में शामिल नहीं थे, अब स्लम बस्तियों में तब्दील हो रहे हैं। प्राधिकरण की सीमाओं में आने वाले गांवों में योजनाओं की कमी और निगरानी के अभाव के कारण यह बस्तियां तेजी से बढ़ रही हैं। इन क्षेत्रों में रहने वाले लोग सस्ते आवास की तलाश में अवैध रूप से भूमि पर कब्जा कर लेते हैं और धीरे-धीरे ये क्षेत्र स्लम में बदल जाते हैं।
यह समस्या केवल दिल्ली-एनसीआर तक सीमित नहीं है, बल्कि देश के अन्य महानगरों में भी यही स्थिति देखी जा रही है। गरीब और निम्न आय वर्ग के लोग शहरों के किनारों पर बसने को मजबूर हो रहे हैं, जहां बुनियादी सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं हैं।
प्राधिकरणों और सरकार की जिम्मेदारी है कि वे विकास योजनाओं में समाज के हर वर्ग को ध्यान में रखें। विकास का असमान वितरण केवल सामाजिक असंतुलन को बढ़ावा देगा और शहरों में अमीर-गरीब के बीच की खाई और गहरी होगी। प्राधिकरणों को उन लोगों के लिए सस्ती और सुलभ आवासीय योजनाएं लानी चाहिए जो शहरों में सेवाएं प्रदान करते हैं, लेकिन महंगे इलाकों में रहने का खर्च नहीं उठा सकते।
इसके साथ ही, अवैध अतिक्रमण पर सख्ती से कार्रवाई की जानी चाहिए, लेकिन इसे रोकने के लिए आवश्यक है कि लोगों को वैकल्पिक आवास की सुविधा प्रदान की जाए। यदि गरीब और निम्न आय वर्ग के लोगों के लिए सस्ती आवासीय योजनाएं लागू नहीं की जातीं, तो उन्हें अवैध रूप से रहने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।
दिल्ली-एनसीआर में निम्न और मध्यम आय वर्ग के लोगों के लिए सस्ती आवासीय योजनाएं लाना समय की मांग है। सरकार को विशेष रूप से इस वर्ग के लिए योजनाएं बनानी चाहिए, ताकि वे भी शहर के विकास में सहभागी बन सकें।
सस्ते आवास के साथ-साथ इन लोगों के जीवन स्तर को बेहतर बनाने के लिए बुनियादी सुविधाएं जैसे स्वच्छ पानी, बिजली, और स्वास्थ्य सेवाओं की भी उपलब्धता सुनिश्चित की जानी चाहिए। इससे न केवल गरीब वर्ग को राहत मिलेगी, बल्कि शहर में सेवाएं प्रदान करने वाले कामगार भी बेहतर जीवन जी सकेंगे।
दिल्ली-एनसीआर जैसे महानगरों का विकास समावेशी होना चाहिए, जहां अमीर और गरीब दोनों के लिए जगह हो। यदि प्राधिकरण और सरकार इस दिशा में सार्थक कदम नहीं उठाते, तो भविष्य में शहर केवल अमीरों के लिए आरक्षित होकर रह जाएगा, जबकि गरीब और मध्यम वर्ग के लोग शहर के किनारों पर जीवन यापन करने को मजबूर होंगे।
दिल्ली-एनसीआर का विकास तब तक अधूरा है, जब तक उसमें हर वर्ग के लिए समान अवसर और स्थान न हो। प्राधिकरणों को इस असमानता को दूर करने के लिए शीघ्र ही ठोस कदम उठाने होंगे।
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