भारत। विकास के इस युग में जहां आधुनिक तकनीक और निर्माण विधियां उन्नति के शिखर पर हैं, वहीं एक चिंताजनक सत्य भी हमारे सामने है—हम किस दिशा में बढ़ रहे हैं? क्या यह विकास हमें स्थायित्व की ओर ले जा रहा है, या हम विनाश की ओर अग्रसर हैं? इस सवाल का उत्तर तलाशने के लिए हमें ऐतिहासिक और आधुनिक इमारतों की तुलना पर ध्यान देना होगा।
रामेश्वर मंदिर की इमारत अपनी अद्वितीय मजबूती और प्राचीन वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है। यह दक्षिण भारतीय द्रविड़ शैली में निर्मित है, जिसमें विशाल पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है। मंदिर की दीवारें और स्तंभ सदियों से मौसम की मार झेलते हुए भी मजबूती से खड़े हैं। इसका गोपुरम (मुख्य द्वार) और मंडप नक्काशीदार पत्थरों से बने हैं, जो शिल्पकला का अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। भारी पत्थरों और उत्कृष्ट शिल्पकला के साथ निर्मित यह मंदिर आज भी अपनी स्थायित्व और सुदृढ़ संरचना के कारण स्थापत्य चमत्कार माना जाता है।
एक जीवंत उदाहरण मेरठ कॉलेज का है, जहां मेरा भी अध्ययन हुआ है। यह कॉलेज 1892 में स्थापित किया गया था और आज 50 एकड़ में फैला हुआ है। इसका स्थापत्य और वास्तुकला अद्वितीय है, विशेषकर इसके पुराने कमरे, जो लगभग 130 वर्षों के बाद भी अपनी मजबूती से खड़े हैं। इन कमरों की मोटी और ठंडी दीवारें, चौड़ी खिड़कियां, और हवादार वातावरण न केवल उस समय की उत्कृष्ट इंजीनियरिंग को दर्शाते हैं, बल्कि यह भी प्रमाणित करते हैं कि पुराने समय की इमारतें सिर्फ ईंट-पत्थर की संरचनाएं नहीं थीं, बल्कि सोच-समझकर बनाई गई थीं।
इसके विपरीत, हाल के वर्षों में बने कॉलेज के कई भवनों की स्थिति बेहद दयनीय है। इन इमारतों को बार-बार मरम्मत की आवश्यकता पड़ रही है, और कुछ तो दो-तीन बार पूरी तरह से बन चुकी हैं। इन आधुनिक इमारतों का जीवनकाल केवल 10-20 साल होता है, जिसके बाद उनकी मजबूती पर सवाल उठने लगते हैं। यह सिर्फ मेरठ कॉलेज तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे देश में ऐसी इमारतों की भरमार है।
हमारे पास हजारों साल पुराने महल और किले आज भी खड़े हैं, जैसे वे अपने समय में थे। ताजमहल, लाल किला, और राजस्थान के किले—इनका वास्तुशिल्प, सामग्री और निर्माण की शैली ने इन्हें समय की मार से बचाए रखा है। दूसरी ओर, आज की इमारतें, जो अत्याधुनिक तकनीक और उपकरणों का उपयोग करके बनाई जाती हैं, इतने कम समय में खराब हो जाती हैं कि उनकी मरम्मत और पुनर्निर्माण एक निरंतर प्रक्रिया बन जाती है।
इस संदर्भ में, हमें यह समझने की जरूरत है कि विकास केवल नई इमारतें खड़ी करने का नाम नहीं है। वास्तविक विकास वह है, जिसमें स्थायित्व, पर्यावरणीय सामंजस्य, और दीर्घकालिक सोच शामिल हो। हम अगर आधुनिक तकनीक का उपयोग करते हुए भी भवन निर्माण में स्थायित्व और पारंपरिक ज्ञान को नजरअंदाज करते हैं, तो हम विनाश की ओर बढ़ रहे हैं।
ऐतिहासिक इमारतों से हमें यह सीखने की आवश्यकता है कि किस प्रकार के निर्माण टिकाऊ होते हैं। आज हमें अपनी प्राथमिकताएं दोबारा तय करनी होंगी और यह सुनिश्चित करना होगा कि जो हम निर्माण कर रहे हैं, वह सिर्फ आज के लिए नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी हो। अन्यथा, हमारे विकास की दिशा विनाश की ओर ही होगी।
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