भारत टाईम्स। भारत में खेती-किसानी हमारे ग्रामीण जीवन और अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। खेती से न केवल किसान का घर चलता है, बल्कि इससे देश की खाद्य सुरक्षा भी सुनिश्चित होती है। परंतु आज किसानों के खेतों की भूमि का मुआवजा कई सवालों को जन्म दे रहा है – क्या यह मुआवजा उनके लिए लाभकारी साबित हो रहा है, या फिर यह उनके लिए एक विनाशकारी सौदा बन रहा है? जब किसी किसान की जमीन का अधिग्रहण होता है, तो उसे मुआवजा तो मिलता है, लेकिन जमीन एक बार हाथ से निकल जाए तो उसका वापस मिलना लगभग असंभव हो जाता है। जिस भूमि पर पीढ़ियों से किसान खेती कर रहे थे, वह एक झटके में उनसे दूर हो जाती है। इससे उनके जीवन का आधार समाप्त हो जाता है। हालांकि उन्हें मुआवजा राशि मिलती है, लेकिन यह भी देखा गया है कि इस राशि का अधिकतर हिस्सा बड़े मकान बनाने, महंगे वाहनों, और शादियों पर खर्च कर दिया जाता है। परिणामस्वरूप, कुछ समय बाद किसानों के पास जीवनयापन के लिए कोई स्थिर साधन नहीं बचता।
एक समय था जब किसान की आय का स्थायी स्रोत उसकी उपज थी। हर साल वह अपनी फसल बेचकर पूरे वर्ष के लिए योजना बनाता था। इस आय से न केवल उसका परिवार चलता था, बल्कि पशुओं का पालन भी होता था, और दूध-व्यवसाय के जरिए अतिरिक्त आय भी होती थी। मगर, भूमि अधिग्रहण के बाद यह सारा चक्र टूट जाता है। मुआवजा पाने के बाद किसान एक बंद कमरे की चारदीवारी में सिमट जाता है, और उसकी पारंपरिक जीवनशैली समाप्त हो जाती है।
यह भी देखा गया है कि मुआवजा पाने वाले किसानों में से केवल 10% ही इसे सही ढंग से उपयोग में ला पाते हैं। बाकी 90% किसान अपनी प्राप्त धनराशि को उचित निवेश में लगाने के बजाय विलासिता में खर्च कर देते हैं। परिणामस्वरूप, कुछ समय बाद उन्हें पुनः आजीविका के संकट का सामना करना पड़ता है। जो संपत्ति हमारे बुजुर्गों ने मेहनत से हमारे लिए बनाई थी, उसे हम महज पैसे के रूप में खो देते हैं, लेकिन सवाल यह उठता है कि भविष्य में हम अपनी संतानों के लिए क्या छोड़ेंगे? क्या उन्हें संपत्ति के रूप में ऐसी ही असुरक्षा देनी है?
किसानों की यह स्थिति अत्यंत गंभीर है और इस विषय पर विचार करना आवश्यक है। भूमि अधिग्रहण से मिले मुआवजे का दीर्घकालिक उपयोग कैसे हो, इस पर नीति बननी चाहिए। इसके साथ ही सरकार और समाज को यह सोचना होगा कि कैसे किसानों की जमीन का उचित उपयोग हो और उनके आजीविका के साधनों को सुरक्षित रखा जा सके।
किसान और उनकी भूमि दोनों ही हमारे समाज की अमूल्य संपदा हैं। यह अत्यंत आवश्यक है कि भूमि अधिग्रहण के समय किसानों के भविष्य की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए ताकि उन्हें इस कठिन परिस्थिति में अपने जीवन को स्थिर बनाए रखने में मदद मिल सके।
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