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पंचायत पुनर्गठन से वंचित गौतमबुद्ध नगर के गांव बन रहे स्लम बस्ती!

मनोज तोमर ब्यूरो चीफ दैनिक फ्यूचर लाइन टाईम्स गौतमबुद्ध नगर।
सांकेतिक फोटो 
दादरी। पंचायत पदों से राजनीतिक सफर शुरू करने वाले दादरी और जेवर विधानसभा क्षेत्र के जनप्रतिनिधि पंचायत पुनर्गठन के लिए सरकार पर बनाएं दबाव।
पंचायत पुनर्गठन से युवा पीढ़ी को मिल सकेगा राजनीति में आने का मौका।
देश के प्रधानमंत्री भी युवाओं को राजनीति में आने के लिए करते रहे हैं प्रेरित
-कर्मवीर नागर प्रमुख 
जब सन् 2015 में औद्योगिक नगरीय क्षेत्र घोषित नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना प्राधिकरण के गांवों में पंचायत पुनर्गठन बंद हुआ था तो उस समय अधिकतर लोगों ने इस उम्मीद में राहत की सांस ली थी कि औद्योगिक नगरीय क्षेत्र घोषित गांवों का विकास शहरी सेक्टर की तर्ज पर होगा और पंचायत चुनाव की वजह से आपसी चुनावी रंजिश भी गांवों में समाप्त हो जाएगी। लेकिन प्राधिकरण द्वारा गांवों की विकास की अनदेखी के कारण लोगों की इस सोच और उम्मीद को काफूर होने में ज्यादा वक्त नहीं लगा । यही वजह है कि अब गौतम बुद्ध नगर के औद्योगिक नगरीय क्षेत्र घोषित 288 गांवों में चौतरफा पंचायत पुनर्गठन की आवाज उठने लगी है। क्योंकि औद्योगिक नगरीय क्षेत्र गांवों के विकास की उचित रूप से सुध न लेने से सभी गांव स्लम बस्ती में तब्दील होते नजर आ रहे हैं। इस बार की बरसात ने तो प्राधिकरण के विकास की पोल खोल कर रख दी। 
पंचायत पुनर्गठन को लेकर चौतरफा उठ रही आवाज का कारण केवल विकास कार्यों तक ही सीमित नहीं है बल्कि इन गांवों के जरूरतमंद और पात्र लोगों को केंद्र एवं राज्य सरकार की कल्याणकारी योजनाओं से वंचित रहना पड़ रहा है। यहां तक कि इन गांवों में परिवार रजिस्टर को अपडेट करने के लिए, स्वरोजगार योजनाओं का मार्गदर्शन करने के लिए कोई सरकारी अधिकारी या कर्मचारी तक तैनात नहीं है। ग्राम पंचायत न होने की वजह से इन गांवों के पात्र लोग आयुष्मान योजना से अभी तक वंचित हैं। इसी तरह की तमाम सरकारी योजनाओं का लाभ पात्र लोगों को मिलना तो दूर रहा इन कल्याणकारी योजनाओं के विषय में ग्रामीणों को जानकारी तक देने वाला कोई नोडल अधिकारी तक नहीं है। एक्ट की धारा 243- क्यू के अनुसार औद्योगिक नगरीय क्षेत्र घोषित गांवों में म्युनिसिपल सेवाओं के लिए जिम्मेदार नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना प्राधिकरण में पहले ही अधिकारियों एवं कर्मचारी की कमी के लाले पड़ रहे हैं ऐसी भी इन प्राधिकरणों से गांवों में म्यूनिसिपल सेवाएं मुहैया कराने की उम्मीद रखना गांव के लोगों की कोरी कल्पना के सिवा कुछ नहीं, इन औद्योगिक प्राधिकरणों की कार्यशैली और हालात जग जाहिर हैं।जो प्राधिकरण उन किसानों के भूखंड आवंटन, बैकलीज और मुआवजा जैसे वाजिब हक देने में भी रुचिकर नजर नहीं आते जिनकी जमीनों को दशकों पूर्व अधिग्रहण कर लिया गया तो उन प्राधिकरणों से केंद्र एवं राज्य सरकार की कल्याणकारी योजनाओं को इन गांवों में अम्ल की उम्मीद करना बेमानी नजर आती है। 
गांवों के विकास की दृष्टि के अलावा अगर राजनैतिक दृष्टि कोण से भी देखा जाए तो पंचायती राजव्यवस्था राजनीति की प्रथम सीढ़ी है।लेकिन गौतम बुद्ध नगर की 288 गांवों में पंचायत पुनर्गठन न होने के कारण गौतम बुद्ध नगर की युवा पीढ़ी के लिए धरातल की राजनीति सीखने के दरवाजे बंद कर दिए गए हैं और युवा पीढ़ी को राजनीति की नई पौध के रूप में विकसित होने से वंचित कर दिया गया है। जबकि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी युवाओं को देश की राजनीति में आगे आने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। ऐसे में गौतम बुद्ध नगर की दादरी और जेवर विधानसभा क्षेत्र के उन जन प्रतिनिधियों को प्रधानमंत्री जी की बातों का अनुसरण करते हुए पंचायत पुनर्गठन के लिए सरकार पर दबाव बनाना चाहिए जिनके राजनीतिक कैरियर की शुरुआत पंचायत चुनावों के जरिए ही हुई है ताकि गांवों का समुचित विकास हो सके, केंद्र और राज्य सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का पात्रों को उचित लाभ मिल सके और युवा पीढ़ी को राजनीति में आने का मौका मिल सके।

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