अपराजिता रोज हारती रही । नरेंद्र राठी कवि गाजियाबादी

नरेंद्र राठी कवि गाजियाबादी फोटो 
बेटी के जन्म होने पर,
नाम  रखा अपराजिता,
कभी वो पराजित नहीं होगी,
जन्म हो गया बच गई,
वरना कोख में मार दी गई होती,
पता न चला कब फ्रॉक छूट गया,
जवान हुई,बचपन कब रूठ गया,
जैसे उसको लूटती नजरे,
वो घूरती नजरे,
बंदिशों का पिंजरा जकड़ता गया,
यहाँ नहीं जाना,
वहाँ नहीं जाना,
गुस्सा इस पर ही उतरता गया,
मन को अपने मारती रही,
अपराजिता रोज हारती रही,/
लड़के वालों के सामने,
मूर्ति बैठी हो जैसे सज धज के,
पसंद कर ली गई,
जैसे जानवर कोई,
सौंप दी किसी के  हाथ, 
हो गई वो पराई,
उतरती गई मेहंदी,
उतर गये कजरे,
फिर वो घूरती नजरे,
पति,सास,ससुर,
देवर, नंनद,
वो सबकी मानती रही,
पूरी करूँ बच्चों की मांगे,
इच्छायें अपनी टालती रही,
अपराजिता रोज हारती रही,,//
रोज शारीरिक, मानसिक बलात्कार,
जैसे लूट गया हो सारा संसार,
सब बुरी नजरो को,
अपने तन,मन से उतारती रही,
अपराजिता रोज  हारती रही,,///
तन निर्बल, मन निर्बल,
हो गई नजरे दुर्बल,
मरती रही वो पल पल,
सूख गया दूध का आंचल,
कभी खुद को देखें,
कभी प्रभु को निहारती रही, 
अपराजिता रोज  हारती रही,,///
खाली होगी कब खटिया,
कब जाएगी ये बुढ़िया,
जीवन भर प्यार को ढूंढती नजरे,
फिर वो घूरती नजरे,
सब ही तो है मेरे,
गलतफहमी दिल मे पालती रही,
सबको वो दुलारती रही,
अपराजिता रोज हारती
रही...////
रचनाकार नरेंद्र राठी 
कवि  गाजियाबादी

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