आखिर दुर्घटनाओं में कब तक बुझते रहेंगे चिराग और उजड़ते रहेंगे परिवार! कर्मवीर नागर प्रमुख

राजेंद्र चौधरी संवाददाता दैनिक फ्यूचर लाइन टाईम्स गाजियाबाद।
 लालचवश सरकारी मानकों की अनदेखी दुर्घटनाओं की असल वजह।
देश में महंगी शिक्षा, चिकित्सा और कमरतोड़ महंगाई भ्रष्टाचार का मूल कारण।
गाजियाबाद। कर्मवीर नागर पूर्व प्रमुख एवं वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता ने भ्रष्टाचार और देश की वर्तमान स्थिति पर अपना विचार व्यक्त करते हुए कहा कि आमतौर पर देखा गया है कि जब कोई बड़ी दुर्घटना घट जाती है तब सरकार और अधिकारियों की नींद कुछ दिन के लिए खुलती है लेकिन हालात सामान्य होने के बाद फिर उसी ढर्रे पर चलना शुरू हो जाते हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि प्राकृतिक आपदाओं को छोड़कर अधिकांशतः ऐसी दुर्घटनाओं के मूल में कहीं ना कहीं भ्रष्टाचार ही पूर्ण रूप से जिम्मेदार है जो कार्य सरकार के तय मानकों और नियमों की अनदेखी करके किए जाते हैं। ऐसी दुर्घटनाओं के लिए भाग्य और भगवान की दुहाई देना मानसिक संतुष्टि के लिए तो ठीक है लेकिन जहां नियमों की अनदेखी के कारण दुर्घटना घटी हो वहां भ्रष्ट तंत्र को क्लीन चिट देना कतई उचित नहीं। 
अगर दिल्ली के राजेंद्र नगर स्थित कोचिंग सेंटर की ताजातरीन दुर्घटना को ही उदाहरण के तौर पर देखें, जिसमें कई परिवारों के चिराग बुझ गए, तो ऐसी दिल दहला देने वाली घटनाओं में भाग्य और भगवान के भरोसे दोषियों का बचाव करना कतई उचित नहीं। भ्रष्टतंत्र की वजह से घटित दुर्घटनाओं के बाद सरकार द्वारा दी गई सहायता धनराशि से पीड़ितों के उस गहरे घाव को कभी नहीं भरा जा सकता जो उन्हें आजीवन झेलना पड़ता है। ऐसी दुर्घटनाओं की पीड़ा को वही भली-भांति जान सकता है जिसके ऊपर बीतती है। कहावत है कि "जिसके पांव न फटी बिवाई, वह क्या जाने पीर पराई। मतलब बिल्कुल साफ है कि दुर्घटनाओं में जिनकी दुनिया उजड़ गई हो उनको मीडिया की सुर्खियां बनी दुर्घटना की खबरों और सदनों में राजनीतिक दलों के बीच छिड़ी लंबी लंबी बहस का कोई खास मायने नहीं रह जाता।  
इसलिए इस विषय में हमें गंभीरता से विचार करना होगा कि आखिर कब तक दुर्घटनाओं का रोना रोकर राजनीतिक रोटियां सेंकी जाती रहेंगी। इसके लिए सरकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार पर रोक के लिए कोई ठोस कदम उठाकर ही दुर्घटनाओं को रोकने का कारगर प्रयास किया जा सकता है। 
अगर हम आए दिन हो रही दुर्घटनाओं के मूल कारण पर विचार करें तो आज के भौतिक युग में प्रायः देखा जा रहा है कि पैसा इकट्ठा करने की होड़ ने ईमानदार दायित्वों का गला घोंट कर रख दिया है। जिसकी वजह से राजनीतिक मूल्यों और नैतिकता में गिरावट आई है। गौर करें तो आज इससे कोई भी अछूता नहीं है। जहां पहले यह कहा जाता था कि मीडिया की नजरों से कोई नहीं बच सकता वहीं अब मीडिया की वह लेखनी कुंद नजर आती है जिसके विषय में कहा जाता था कि कलम से निकले हुए शब्दों की मार बंदूक की गोली से भी तीव्र होती है। मीडिया पर चरितार्थ होने वाली यह कहावत कि "जहां न जाए रवि, वहां जाए मीडिया" भी अब खरी उतरती नजर नहीं आ रही है। यह कहना कतई गलत नहीं होगा कि लोकतंत्र का प्रहरी और चौथा स्तंभ कहा जाने वाला मीडिया भी भ्रष्टाचारी कारनामों की खबरें प्रचारित प्रसारित करने से कतराता नजर आता है। इसीलिए सरकारी योजनाओं में भ्रष्टाचारियों के हौसले बुलंद होते नजर आ रहे हैं। आज के भौतिक युग में रुपया इकट्ठा करने की मची होड़ ने ईमानदारी को ताक पर रखकर इंसानियत को तार-तार कर दिया है। अगर गंभीरता से नजर डालें तो इस होड़ के पीछे कहीं ना कहीं लोगों में भविष्य के प्रति उस असुरक्षा का भाव नजर आता है जिसमें महंगी शिक्षा और महंगी चिकित्सा के अतिरिक्त महंगी होती खान पान और रोजमर्रा की वस्तुएं लोगों के ईमान को डगमगाने के लिए मजबूर कर रही हैं। दिल्ली के राजेंद्र नगर की घटना भी इसका जीवन्त उदाहरण है जिसमें दायित्वों का निर्वहन ईमानदारी से नहीं किया गया। यह कोई अकेली घटना नहीं बल्कि आए दिन ऐसी घटनाओं का घटित होना आम बात सी हो गई है। बिहार में हाल ही में दर्जनों पुल ढहने की ताजा तरीन घटना आपके सामने है। इसलिए मेरी निजी राय में जब तक देश में महंगी होती शिक्षा और चिकित्सा की जिम्मेदारी पूर्ण रूप से सरकार  वहन नहीं करेगी या फिर महंगी होती शिक्षा और चिकित्सा पर अंकुश नहीं लगाएगी तब तक  धन अभाव की असुरक्षा के कारण भ्रष्टाचार बंद नहीं होगा। लेकिन यह भी ध्यान रखना अनिवार्य होगा कि सरकार के लिए चिकित्सा क्षेत्र में आयुष्मान जैसी उन योजनाओं से जनता का कतई भला होने वाला नहीं जिस योजना में भ्रष्टाचार की बहुत बड़ी गुंजाइश हो और जिसके  तहत इलाज कराने में लोगों को जहमत उठानी पड़े। इसलिए सरकार को जनता के सिर से महंगी शिक्षा और चिकित्सा का बोझ हटाने के लिए उन देशों की पारदर्शी और कारगर प्रणाली आत्मसात करनी होगी जहां भ्रष्टाचार की कोई गुंजाइश न हो।
आखिरकार इस सब का लब्बोलुआब यही नजर आता है कि राजनीतिक दलों और मीडिया को अनावश्यक बहस छोड़कर ऐसी व्यवस्थाएं कायम करने के लिए बहस पर जोर देना चाहिए जिससे महंगी शिक्षा और चिकित्सा की जिम्मेदारी सरकार वहन कर सके और महंगाई पर लगाम लगा सके। इसके अतिरिक्त सरकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार के लिए कोई गुंजाइश न हो तभी दुर्घटनाओं पर अंकुश लगाना मुमकिन हो सकेगा।

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