ग्रेटर नोएडा।'जल पुरुष, वाटरमैन ऑफ इंडिया' के नाम से मशहूर, डॉ. राजेंद्र सिंह एक प्रसिद्ध नदी पुनर्जीवक और पर्यावरणविद हैं। 6 अगस्त 1959 को उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के डोला गांव में जन्मे डॉ. राजेंद्र सिंह ने आयुर्वेद में स्नातक और हिंदी साहित्य में स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की है। उनके कार्य के लिए उन्हें 2014 में कर्नाटक के धारवाड़ में कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय, 2016 में जयपुर में पूर्णिमा विश्वविद्यालय, और 2019 में एपीजे अब्दुल कलाम तकनीकी विश्वविद्यालय, लखनऊ से मानद डॉक्टरेट डिग्री से सम्मानित किया गया है। 2022 में, डॉ. सिंह को हिंदी साहित्य में मानद डॉक्टरेट आर. एन. बी. ग्लोबल विश्वविद्यालय, बीकानेर और समाज कार्य में स्वामी विवेकानंद ग्लोबल विश्वविद्यालय, जयपुर से मानद डॉक्टरेट से सम्मानित किया गया है।उन्हें उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में यू.पी. राजर्षि टंडन ओपन यूनिवर्सिटी से विज्ञान में मानद डॉक्टरेट और 2023 में जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय, उदयपुर से विज्ञान में मानद डॉक्टरेट और 2023 में काजीरंगा विश्वविद्यालय कोरैकहोवा, जोरहाट, असम से दर्शनशास्त्र में मानद डॉक्टरेट से सम्मानित किया गया।डॉ. सिंह को कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है: भारत सरकार के पर्यावरण और वन मंत्रालय द्वारा 1994 के लिए इंदिरा गांधी पर्यावरण पुरस्कर। और मुख्य रूप से 2001 में सामुदायिक नेतृत्व के लिए "रमन मैग्सेसे पुरस्कार", 2015 में जल के नोबेल पुरस्कार "स्टॉकहोम वाटर पुरस्कार" से सम्मानित किया गया। 2008 में, द गार्जियन ने उन्हें "दुनिया के 50 लोगों की सूची में शामिल किया जो पृथ्वी को बचा सकते हैं। उन्हें 2018 में यूनाइटेड किंगडम के हाउस ऑफ कॉमन्स से "अहिंसा" पुरस्कार, 2019 में यूएस सिएटल से "अर्थ रिपेयर" पुरस्कार और 2019 में नई दिल्ली से पृथ्वी भूषण पुरस्कार मिला है। एक महान विभूति के रूप में आज वो हमारे गलगोटिया विश्वविद्यालय में मुख्य अतिथि के रूप में पहुँचे। उन्होंने देश के युवाओं को सम्बोधित करते हुए कहा कि आज की इस आधुनिक विज्ञान की दुनिया में जल संरक्षण करना और जल संसाधन का सही सदुपयोग करना हम सभी की सबसे पहली ज़िम्मेदारी है। वरना आगे आने वाले भविष्य के संकेत बहुत ही भयावह हैं। यदि हमने मिलकर समय रहते इस बेहद जटिल समस्या का कोई निदान नहीं किया तो आगे आने वाली पीढ़ियाँ हमें कभी माफ़ नहीं करेंगी। क्योंकि उनका अस्तित्व पूरी तरह से ख़तरे में पड़ जायेगा और धीरे-धीरे नष्ट होने कगार पर भी पहुँच जायेगा। इसलिए आज हम सबका दायित्व है कि हम वर्षा के जल का संरक्षण करे और जल का सदुपयोग बहुत ही सदाचार और सावधानी के साथ करें। उसे अकारण ही नष्ट ना करें। नहीं तो हम अगले पाँच से सात वर्ष के अन्तराल में ही नष्ट होने के कगार पर पहुँच जायेंगे। उन्होंने आगे कहा कि मैं देश के युवाओं से कहना चाहता हूँ कि वो सदैव अन्याय का विरोध करें। और वो जल की समस्या का समाधान करने के लिये आगे आये। उन्होंने मैकाले की शिक्षा नीति पर कड़ा प्रहार करते हुए कहा कि अंग्रेजों ने हमें जो शिक्षा दी थी वो विद्या नहीं थी वो मात्र हमें गुलाम बनाकर रखने की एक साज़िश के तहत उनकी शिक्षा नीति थी।उससे पहले भारत सोने की चिड़िया कहलाता था। उस समय भारत इसलिये विश्व गुरू था क्योंकि वो पूर्णरूपेण प्रकृति से जुड़ा हुआ था। वो पंच भूतों को ही अपना ईश्वर मानता था। वो नीर , नारी और नदी को ही पूरी प्रकृति के रूप में देखता था। वह सम्पूर्ण रूप पूरे ब्रह्माण्ड को अपना ईश्वर समझता था। इसलिए समस्त विश्व उसका परिवार था और वो सभी के प्रति अपनी उदार भावनाएँ रखता था इसलिए ही भारत उस समय विश्व गुरू था। गलगोटियास विश्वविद्यालय के सीईओ डा० ध्रुव गलगोटियास ने प्रकृति के संरक्षण और संवर्धन के लिये युवाओं का आह्वान करते कहा कि देश के युवा इस महान यज्ञ अपनी महत्ती भूमिका निभाने लिये आगे आयें। जिससे “धरती के अस्तित्व” को बचाया जा सके। ये हम सबकी पहली ज़िम्मेदारी है। आज फिर से इस बात की महती आवश्यकता आन पड़ी है कि समस्त मानव जाति को प्रकृति के साथ मिलकर चलना होगा। नहीं तो अब वो दिन दूर नहीं है जब हम सब का अस्तित्व ही ख़तरे में पड़ जायेगा। और पश्चात्ताप के अलावा हमारे पास कुछ भी नहीं होगा। 3 अगस्त-2024 को गलगोटियास विश्वविद्यालय में आयोजित इस “विक्रम साराभाई अंतरिक्ष प्रदर्शनी” अंतिम दिन है। और कल निलेश एम. देसाई, विशिष्ट वैज्ञानिक, निदेशक, स्पेस एप्लीकेशंस सेंटर SAC/ISRO, अहमदाबाद कल के कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में पहुँच रहे हैं। कल भी अनेक विद्यालयों के विद्यार्थी इस एग्जीबीशन में काफ़ी बड़ी संख्या में पहुँच रहे हैं। और आज भी काफी विद्यार्थियों ने गलगोटियास विश्वविद्यालय में आयोजित इस “विक्रम साराभाई अंतरिक्ष प्रदर्शनी” में हिस्सा लिया।
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