भारत। देश और समाज में आज वैचारिक युद्ध के बीच गुर्जर समाज एक महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा है। मुख्यधारा की दो प्रमुख विचारधाराओं—ब्राह्मणवाद और अम्बेडकरवाद—के बीच देश की संसाधनों, सेवाओं, और संस्थानों में अपनी-अपनी वर्गीय चेतना और कल्याण की बात की जाती है। ये विचारधाराएँ अपने समर्थकों के लिए कुछ हद तक जगह बना चुकी हैं, लेकिन इनके बीच गुर्जर समाज, जो वंचित और देशभक्त वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है, खुद को विचारधाराओं के इस घमासान में उलझा हुआ पाता है।
इस वर्ग के पास न तो कोई प्रतिक पुरुष है, न ही अपनी परिस्थितियों के अनुसार कोई मौलिक विचारधारा, लेखक, कवि, साहित्य, नेतृत्व या कोई रचनात्मक शोध। आज के परिप्रेक्ष्य में गुर्जर समाज तीन विचारधाराओं में विभाजित हो चुका है—ब्राह्मणवादी, अम्बेडकरवादी और जातिवादी।
गुर्जर समाज को एक नई, मौलिक, और मानवतावादी दृष्टिकोण की जरूरत है जो समाज को एकजुट कर सके और इन विभाजनों को समाप्त कर सके। आवश्यकता है कि गुर्जर समाज के लोग मिलकर एक राष्ट्रीय स्तर पर राजनीतिक पार्टी का गठन करें, जिससे कि यह समाज भी देश की राजनैतिक, आर्थिक, और सामाजिक मुख्यधारा में शामिल हो सके।
यह समय है कि गुर्जर समाज अपने विकास और उन्नति के लिए एक ठोस विचारधारा और नेतृत्व का निर्माण करे, जो उसकी विशेष जरूरतों और मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करे। यह कदम न केवल समाज की वैचारिक दिशा को स्पष्ट करेगा, बल्कि इसे देश की मुख्यधारा में भी मजबूती से स्थापित करेगा।
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कृष्णपाल चपराणा गुर्जर :- 9720185608
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