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स्वामी चक्रपाणि महाराज का बयान: 'फारुकी की रामलीला और कावड़ यात्रा पर प्रतिबंध लगाने की मांग निंदनीय'

रामानन्द तिवारी संवाददाता दैनिक फ्यूचर लाइन टाईम्स नई दिल्ली।
नई दिल्ली। स्वामी चक्रपाणि महाराज, राष्ट्रीय अध्यक्ष, अखिल भारत हिंदू महासभा और संत महासभा, ने एक बयान में फारुकी द्वारा रामलीला और कावड़ यात्रा पर प्रतिबंध लगाने की मांग को कठोर शब्दों में निंदा की है। उन्होंने कहा कि फारुकी जैसे लोग, जिन्हें हिंदू त्योहारों और परंपराओं से नफरत है, उन्हें भारत छोड़कर पाकिस्तान या किसी अन्य मुस्लिम देश में चले जाना चाहिए।
चक्रपाणि महाराज ने कहा, "अगर भारत में रहना है तो यहां के संविधान और सरकार द्वारा निर्धारित नियमों का पालन करना होगा। हिंदू धर्म और उसकी परंपराओं के प्रति घृणा और नफरत दिखाने का कोई स्थान नहीं है। अगर फारुकी को हिंदू त्योहारों से इतनी परेशानी है, तो उन्हें 56 मुस्लिम देशों में से किसी एक में जाकर बस जाना चाहिए।"
उन्होंने आगे कहा कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है जहां सभी धर्मों और समुदायों का समान अधिकार है। "यहां किसी भी धर्म को नीचा दिखाने या उसकी परंपराओं पर उंगली उठाने की कोई जगह नहीं है," चक्रपाणि महाराज ने जोड़ा।
स्वामी चक्रपाणि महाराज ने यह भी कहा कि रामलीला और कावड़ यात्रा जैसी हिंदू धार्मिक गतिविधियां सदियों से भारतीय समाज का अभिन्न हिस्सा रही हैं और इन्हें प्रतिबंधित करने की मांग करना भारतीय संस्कृति और परंपराओं का अपमान है।
हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए रामलीला और कावड़ यात्रा का विशेष महत्व है। ये धार्मिक कार्यक्रम केवल धार्मिक आस्था ही नहीं, बल्कि सामाजिक एकता और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक भी हैं। ऐसे कार्यक्रमों पर प्रतिबंध लगाना न केवल धार्मिक स्वतंत्रता का हनन है, बल्कि यह भारत की प्राचीन सांस्कृतिक विरासत का अपमान भी है।
स्वामी चक्रपाणि महाराज ने देशवासियों से अपील की कि वे ऐसे बयानों का विरोध करें और धार्मिक स्वतंत्रता और सांस्कृतिक धरोहर की रक्षा करें। "हमें अपने धर्म और परंपराओं पर गर्व होना चाहिए और उन्हें किसी भी प्रकार के हमलों से बचाने के लिए सदैव तैयार रहना चाहिए," उन्होंने कहा।
चक्रपाणि महाराज का यह बयान भारतीय समाज में चल रहे धार्मिक और सांस्कृतिक विवादों के बीच आया है, जहां कई बार धार्मिक सहिष्णुता और स्वतंत्रता के मुद्दे उठाए जाते रहे हैं। उनके इस बयान ने एक बार फिर से धार्मिक सहिष्णुता और सांस्कृतिक धरोहर की रक्षा के महत्व को रेखांकित किया है।

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