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40 वर्षों से आखिर क्यों गोसेवा कर रही हैं 'जर्मन दीदी' फ्रेडरिक इरीन ब्रूनिंग?

दैनिक फ्यूचर लाइन टाईम्स विशेष संवाददाता मथुरा।
कृष्ण की नगरी में गायें बेसहारा रहें, यह कैसे हो सकता है?
मथुरा: जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर गोवर्धन कस्बा परिक्रमा मार्ग में स्थित सुरभि गौशाला सेवा धाम, जहां जर्मनी से आई एक फ्रेडरिक इरिन ब्रूनिंग हजारों बेसहारा गोवंशों को सेवा दे रही हैं. गोसेवा के लिए फ्रेडरिक इरिन ब्रूनिंग को 2019 में पद्मश्री अवार्ड से भी नवाजा जा चुका है. फ्रेडरिक कहती हैं कि बेसहारा गोवंशों में उन्हें भगवान श्री कृष्ण के दर्शन होते हैं और मन को संतुष्टि प्राप्त होती है।

कृष्ण की नगरी में गायें बेसहारा रहें, यह कैसे हो सकता है? जब आज के इस ब्रजधाम में गायें बेसहारा घूम रही थीं, तो उन्हें 'जर्मन दीदी' का सहारा मिल गया. जर्मन दीदी यानी फ्रेडरिक इरिन ब्रूनिंग, जो मूलरूप से जर्मनी की रहने वाली हैं. 40 साल पहले वह मथुरा आईं, तो उन्हें यहां की संस्कृति रास आ गई. मगर गायों की दुर्दशा उन्हें परेशान करने लगीं. तब से फ्रेडरिक इरिन ब्रूनिंग ने गायों की सेवा शुरू कर दी. सेवा भाव देखकर संत समाज ने उनका नाम 'सुदेवी' रख दिया।

जर्मनी से पहुंची कान्हा की नगरी।
जर्मनी की रहने वाली फ्रेडरिक इरीन ब्रूनिंग 40 वर्ष पूर्व भारत घूमने के लिए आई थी. दिल्ली, मुंबई, श्रीनगर, हिमाचल प्रदेश, गुजरात सभी जगह घूमने के बाद वह कान्हा की नगरी मथुरा पहुंची. मंदिरों के दर्शन करने के बाद फ्रेडरिक का मन कान्हा की नगरी में लग गया और उन्हें इस जगह से काफी लगाव हो गया. इसके बाद उन्होंने बेसहारा गायों की दुर्दशा देखकर उनकी सेवा करने की प्रतिज्ञा ली।

किराये पर जमीन लेकर बनाई गौशाला।
फ्रेडरिक इरीन ने गोवर्धन परिक्रमा मार्ग के पास किराये पर जमीन लेकर गौशाला बनाई. उन्होंने सबसे पहले एक घायल गाय का सेवा की थी, जिसका नाम सुरभि रखा था और बाद में उसी नाम पर ही सुरभि गौशाला का नाम रखा गया. फ्रेडरिक इरीन के माता-पिता जर्मनी में रहते थे. फ्रेडरिक के पिता जर्मनी दूतावास में एक उच्च अधिकारी के पद पर तैनात थे, जब फ्रेडरिक वापस देश नहीं पहुंची, तो फ्रेडरिक को लेने के लिए उनके पिता भारत आए।

माता-पिता से दूर हुई फ्रेडरिक।
बात करने के बाद पिता ने उनसे जर्मनी लौटने की सलाह दी. उनके पिता का कहना था कि फ्रेडरिक परिवार में इकलौती हैं, भारत में उनका देखभाल करने वाला कोई नहीं है. लेकिन फ्रेडरिक ने गायों की सेवा करने का मन बना चुकी थी, जिसके बाद मायूस पिता वापस जर्मनी चले गए. फ्रेडरिक इरीन ने वर्ष 1980 में एक बीमार गाय की सेवा शुरू की. फिर उनकी नजर जब भी किसी बेसहारा गाय या गोवंश पर पड़ती, वह तुरंत उसकी सेवा में जुट जातीं. वक्त बीतता गया. आज उनकी गौशाला में करीब 3100 गोवंश जिंदगी जी रहे हैं

फ्रेडरिक बताती हैं कि प्रतिदिन गायों की सेवा करने में करीब 70 से 80 हजार रुपये का खर्च आता है. समाजसेवियों की मदद द्वारा और भगवान कृष्ण के आशीर्वाद से इतनी रकम मिल जाती है कि गायों की सेवा में किसी प्रकार की कोई दिक्कत नहीं होती।

सुरभि गौशाला ट्रस्ट सेवा धाम।
सुरभि गौशाला ट्रस्ट सेवा धाम पांच बीघा क्षेत्र में फैला हुआ है. यहीं पर फ्रेडरिक गायों की सेवा करती हैं. आस-पास के क्षेत्रों से सड़कों पर आवारा पशु घूमते हैं और अज्ञात वाहन द्वारा वे दुर्घटनाग्रस्त भी होते हैं, उन गोवंशों का इलाज भी गौशाला में ही किया जाता है. गोवर्धन में रहकर जर्मन महिला फ्रेडरिक इरीन ब्रूनिंग, सुदेवी के नाम से विख्यात हैं. केंद्र सरकार द्वारा गाय के प्रति सेवा भाव को देखकर 2019 में उन्हें पद्म श्री अवार्ड से सम्मानित किया गया था.

गायों की सेवा करने की जिज्ञासा।
फ्रेडरिक इरीन ब्रूनिंग उर्फ सुदेवी ने बताया चालीस वर्ष पहले जब भारत घूमने के लिए आई थी, तभी गोवर्धन में आकर परिक्रमा की गोवंशों की दुर्दशा देखकर उनके मन में एक जिज्ञासा हुई कि गाय की सेवा करनी चाहिए. और उस जिज्ञासा के साथ शुरू हुआ यह सफर आज इस मुकाम तक पहुंच गया है।

ऐसे होता है घायल गोवंशों का इलाज।
फ्रेडरिक ने बताया कि घायल गोवंशों के इलाज के लिए सुरभि गौशाला ट्रस्ट में तीन एंबुलेंस और एक मेडिकल टीम है, जिसके द्वारा घायल गायों का इलाज किया जाता है।

वहीं गौशाला में बतौर मेडिकल टीम के सदस्य अफसर बताते हैं कि जिले में हर रोज 8 से 10 गोवंश घायल होते हैं, जिन्हें गौशाला लाया जाता है और उनका इलाज किया जाता है. डॉक्टर की टीम में 20 सदस्य हैं, जो गाय का इलाज करते हैं. स्थानीय लोगों द्वारा सूचना दी जाती है, तो दीदी एंबुलेंस भेजकर उन गोवंशों को मंगवा लेती हैं और उनका इलाज कराया जाता है।

लेखक 
रविंद्र आर्य 
9953510133

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