नई दिल्ली – अखिल भारत हिन्दू महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वामी चक्रपाणि महाराज ने एक महत्वपूर्ण बयान जारी करते हुए मंदिरों में VIP व्यवस्था समाप्त करने की पुरजोर मांग की है। उन्होंने जोर देकर कहा कि भगवान की नज़रों में सभी भक्त समान हैं, और किसी भी प्रकार का विशेषाधिकार या विभेद मंदिरों में नहीं होना चाहिए। स्वामी चक्रपाणि महाराज के इस बयान ने धार्मिक और सामाजिक क्षेत्र में एक नई चर्चा को जन्म दिया है।
स्वामी चक्रपाणि महाराज ने अपने वक्तव्य में स्पष्ट किया कि मंदिरों में VIP संस्कृति ने भक्तों के बीच असमानता और भेदभाव की भावना को जन्म दिया है। उन्होंने कहा, ईश्वर की नजरो में सब बराबर हैं फिर हमें VIP कल्चर क्यों पैदा कर दी? मंदिरों में सभी को समान अधिकार और सम्मान मिलना चाहिए। किसी भी भक्त को केवल उसकी सामाजिक स्थिति के आधार पर विशेष व्यवहार नहीं मिलना चाहिए।
उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि मंदिरों के प्रबंधक व्यवहार कुशल और निष्पक्ष होने चाहिए। मंदिरों के प्रबंधन को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उनका व्यवहार सभी भक्तों के साथ समान हो। उन्हें इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि मंदिर में आने वाला हर व्यक्ति सम्मानित और स्वागतयोग्य महसूस करे, उन्होंने कहा।
स्वामी चक्रपाणि महाराज ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि मंदिरों में VIP व्यवस्था न केवल धार्मिक सिद्धांतों के खिलाफ है, बल्कि यह समाज में असमानता को बढ़ावा देती है। "हमारा धर्म हमें सभी के साथ समानता और सम्मान के साथ व्यवहार करने की शिक्षा देता है। मंदिरों में VIP व्यवस्था समाज में वर्ग भेद को और गहरा करती है, जिसे हमें तुरंत समाप्त करना चाहिए," उन्होंने जोड़ा।
इस संदर्भ में, स्वामी चक्रपाणि महाराज ने एक विशेष उदाहरण देते हुए कहा कि कई मंदिरों में VIP भक्तों के लिए विशेष प्रवेश, प्राथमिकता वाली पूजा, और विशेष सुविधाओं का प्रावधान होता है, जो सामान्य भक्तों के लिए उपलब्ध नहीं है। "ऐसी व्यवस्था न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से गलत है, बल्कि यह हमारे समाज के मूलभूत मूल्यों के खिलाफ भी है," उन्होंने कहा।
स्वामी चक्रपाणि महाराज का यह बयान मंदिर प्रशासन और समाज के विभिन्न वर्गों में व्यापक चर्चा का विषय बन गया है। कई धार्मिक और सामाजिक संगठनों ने इस विचार का समर्थन करते हुए कहा कि मंदिरों को VIP संस्कृति से मुक्त कर देना चाहिए और सभी भक्तों के लिए समान अधिकार सुनिश्चित करना चाहिए।
उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि मंदिर प्रबंधन को अपने कर्मचारियों और स्वयंसेवकों को उचित प्रशिक्षण प्रदान करना चाहिए ताकि वे सभी भक्तों के साथ समान और सम्मानपूर्ण व्यवहार कर सकें। मंदिर प्रबंधकों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उनका हर कदम भक्तों की सेवा और सम्मान के लिए हो।
स्वामी चक्रपाणि महाराज के इस बयान ने न केवल मंदिरों की व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह खड़ा किया है, बल्कि इसने समाज को धार्मिक स्थलों में समानता और न्याय की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित भी किया है। उनकी इस मांग ने समाज के विभिन्न वर्गों में जागरूकता फैलाने और बदलाव लाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है।
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