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छत्रपति शाहू महराज की पुण्यतिथि पर विशेष लेख

छत्रपति शाहू महराज की पुण्यतिथि 6 मई 2024 पर विशेष : -शाहू जी महराज ने कहा है कि “जनता की सभी समस्याओं का निराकरण मात्र शिक्षा से ही संभव है, बिना शिक्षा के कोई भी मुल्क उन्नति नहीं कर सकता” उनका मानना था कि मेरे जीवन का सर्वाधिक सुखद दिन वह होगा जब लोगों को जन्म के आधार पर नीच नहीं समझा जाएगा और समाज में धार्मिक पाखंड, मानसिक गुलामी नहीं होगी। महात्मा ज्योति राव फूले के बाद सामाजिक, शैक्षणिक, सांस्कृतिक  और आर्थिक क्रांति की मसाल जिस महा मानव ने जलायी वह नाम इतिहास के पन्नों में स्वर्णाक्षरों में अंकित है, आरक्षण के जनक छत्रपति शाहू जी महराज का जिनका जन्म कोल्हापुर महाराष्ट्र के कुर्मी जाति में 26 जून 1874 को हुआ था, वे सामाजिक न्याय के प्रणेता, समानता, मानवता के प्रबल पक्षधर रहे| 2 अप्रैल 1894 को छत्रपति शाहू जी महराज कोल्हापुर की राजगद्दी पर विराजमान हुए, यद्यपि वह महाराजा रहे लेकिन उनके मन में दलितों, उपेक्षितों, पिछड़ों, प्रताड़ितों, समाज के कमजोर वर्गों की पीड़ा रही, वह उनके दुख को दूर करने के लिए जीवन भर काम करते रहे, समाज में जो ऊंच-नीच की भावना, असमानता की खाईं पेशवाओं, पुरोहितों द्वारा कमजोर वर्गों पर अनाचार, अत्याचार हो रहा था, वह द्रवित हो उठते थे| जातिवाद, धार्मिक पाखंड के कारण बहुसंख्यक वर्ग पीस रहा है, वह लगातार अज्ञानता के कारण शोषण का शिकार हो रहा है, उन्होने इस व्यवस्था को जड़ से समाप्त करने के लिए जोरदार अभियान चला बहुसंख्यक समाज को मुख्य धारा में लाने का सतत प्रयास किया| छत्रपति शाहू जी महराज को यह बात समझने में देर नहीं लगी कि इनके दुख का कारण अशिक्षा और अज्ञान है, उन्होने बहुजन समाज की शिक्षा के लिए अपने राज्य में अनेकों शिक्षा केन्द्र, छात्रावासों की स्थापना की| बहुजन समाज में नव जागरण की बेल पुष्पित और पल्लवित होने लगी, शाहु जी महराज अपने उद्देश्य में सफल हो मन ही मन प्रसन्न रहने लगे, लेकिन एक धार्मिक पाखंड की घटना ने उन्हे झकझोर कर रख दिया|
       कोल्हापुर की परंपरा के अनुसार शाहु जी प्रतिदिन प्रात: पास की नदी में स्नान करने के लिए जाते थे, प्रचलित प्रथा थी कि उस समय पुरोहित मंत्रोच्चार करते थे, एक दिन उनके साथ समाज सुधारक राजाराम शास्त्री भी स्नान करने चले गए, वह बंबई से वहाँ आए हुए थे, वह पुरोहितों द्वारा मंत्रोच्चार को सुनकर अचंभित हो उन्होने सवाल कर दिया कि राजा के स्नान के समय वैदिक मंत्रोच्चार होना चाहिए, आप पौराणिक मंत्रोच्चार कर रहे है, यह सरासर भ्रामक है| पुरोहित का जबाब सुनकर कि मै धर्मानुसार सही कर रहा हूँ, राजा शूद्र है, इसलिए वैदिक मंत्रोच्चार नहीं किया जा सकता| यह घटना राजा को अपमान जनक लगी, उन्होने इस प्रकरण को गंभीरता से ले अंग्रेजों द्वारा कराई गयी जनगणना के अनुसार वर्चस्ववादी ताकतों के पास 96 प्रतिशत नौकरी है, 26 जुलाई 1902 को शाहु जी महराज ने एक आदेश पारित कर कोल्हापुर के अंतर्गत शासन-प्रशासन की नौकरियों में पिछड़ों, दलितों को 50 प्रतिशत पद आरक्षित कर दिए, इस क्रांतिकारी कदम से 1902 में कैम्ब्रिज विश्व विद्यालय से एलएलडी की मानद उपाधि से उन्हे सम्मानित किया, वह भारत के पहले व्यक्ति थे, जिन्हे यह उपाधि प्राप्त हुई| उन्होने शंकराचार्य के मठ की संपत्ति जब्त करने, बलूतदरी प्रथा, वतनदारी प्रथा का अंतकर महारों को भूस्वामी बनने का हक दिलवाया, ड़ा0 अंबेडकर को उन्होने लंदन में पढ़ाई के लिए 200 पाउंड की मदद की, मूकनायक अखबार के लिए 2500 रुपए की आर्थिक सहायता की| शाहु जी महराज ने अपने शासन में सार्वजनिक स्थानों पर किसी भी तरह के छुवाछूत पर कानूनी रोक लगा दी, शाहु जी महराज का कहना था कि “समाज आदेशों से नहीं बल्कि संदेशों और ठोस पहल से बदलता है, दलित गंगा राम की दुकान पर खुद चाय पीते और अपने सभी कर्मचारियों को पिलवाते, उच्चजातियों के लोग इसका विरोध नहीं कर पाये| लोकमान्य तिलक, वर्चस्ववादी ताक़तें इसका विरोध कर रही थी, इससे पेशवाई अपमानित हो रही है| उन्होने विरोध करने के लिए वकील भेजा। विख्यात अधिवक्ता अम्यंकर ने शाहु से कहा कि छात्रवृति और नौकरी में आरक्षण सरासर अन्याय है, व्यक्ति को योग्यता के अनुसार नौकरी मिलनी चाहिए, उस वकील के प्रश्न को सुनकर मुस्कराते हुए वह उन्हे घुड़साल की ओर रथ द्वारा ले गए, उन्होने एक प्रत्यक्ष दृश्य के माध्यम से वकील को निरुत्तर कर दिया, घुड़साल के कर्मचारियों को शाहु जी ने चने और घास लाने को कहा, सभी घोड़ों के सामने डलवा दिया, जो मजबूत घोड़े थे वह चने और घास पर टूट पड़े, और सारा चारा चट कर गए, लेकिन कमजोर घोड़ों को न चना मिला न घास, वकील शाहु जी की काबिलियत का लोहा माना और कहा कि पिछड़ो, दलितों, शोषितों, कमजोर वर्गों को आरक्षण देना आपका सराहनीय और सही कदम है| 1919 में भी एक आदेश पारित कर आछूतों को अस्पतालों में प्रवेश तथा सज्जनता पूर्वक व्यवहार करने की व्यवस्था किया| ड़ा0 अंबेडकर ने शाहु जी की प्रशंसा करते हुए लिखा है कि “महाराजा शाहु जी जैसा मित्र आछूतों को न पहले मिला है और न आगे मिलेगा”| जनता में भी उनकी प्रशंसा की, जोरदार चर्चा होने लगी, शाहु जी महराज का परिनिर्वाण 6 मई 1922 को हो गया, उनके कार्यों को आगे बढ़ाते हुए ड़ा0 अंबेडकर ने पूरे देश में आरक्षण लागू किया, शाहु जी के क्रांतिकारी, सामाजिक, शैक्षणिक, आर्थिक योगदान को कमजोर वर्ग भूला नही सकता है।
लेखक राम दुलार यादव शिक्षाविद समाजवादी चिंतक

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