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वीर सावरकर पर बनी फिल्म इतनी स्पीड से चलती है कि आप आंख नहीं झपका सकते, 3 घंटे में सब कुछ बटोरने की कोशिश कि गई है लेकिन जीवन इतना विशाल है कि फिर भी ऐसा लगता है कि कितना कुछ और दिखाया जा सकता है... उन्हें तीन तीन यूनिवर्सिटी से डि.लिट की उपाधि मिली थी . लेकिन फिर भी उनके लिखे साहित्य और कविताओं को नहीं छुआ गया। हिन्दू संगठन का जो विचार उन्होंने दिया.. संघ की शुरूआत पर उनके विचारों का प्रभाव उनके तर्कवादी सिद्धांत सहभोज और दलित उद्धार के लिए किया गया कार्य गोमान्तक किताब में सबसे पहले गोवा की आजादी की बात करना.. अली बंधु और वीर सावरकर की ऐतिहासिक बहस..ऐसे अनेक विषय है जो समय की कमी के कारण नहीं छूए गए। लेकिन जिस गंभीरता से फिल्म बनाई है जो छोटे अप्रत्यक्ष मैसेज दिए गए हैं जैसे सब सावरकर का परिवार एक एक पाई का मोहताज है तब गांधीजी बड़ी गाड़ी में घूम रहे हैं.. कई लोगों को फिल्म कई बार देखने के बाद ही समझ आएगी.. पर्दे पर पहली बार चाफेकर बंधुओं, खुदीराम बोस, विष्णु अनंत कान्हेरे, खुदी राम बोस, और मदन लाल ढींगरा को देखना बहुत सुखद है.. फिल्म सिर्फ सावरकर की जीवनी नहीं है... फिल्म भारत के सशस्त्र क्रांतिकारियों को सच्ची श्रद्धांजलि है. लेकिन फिल्म देखने के बाद आपको क्या समझ आता है... 100 साल पहले काला पानी के नर्क में पठान वार्डन अंग्रेजों के साथ मिलकर हिन्दू सिख क्रांतिकारियों का उत्पीडन कर रहे हैं। धर्मांतरण करा रहे थे, 100 साल बाद आज कांग्रेसी हिन्दुओं के साथ मिलकर सावरकर और काला पानी के अमानवीय अत्याचार का मजाक उड़ा रहे हैं..100 करोड़ हिन्दुओं यह तुम्हारी क्या नियति है तुम इतने आत्महीन और निर्बल क्यो हो?
#SwatantryaVeerSavarkar
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