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एमिटी विश्वविद्यालय में सिज़ोफ्रेनिया पर परिचर्चा सत्र का आयोजन ।



मनोज तोमर दैनिक फ्यूचर लाइन टाईम्स ब्यूरो चीफ गौतमबुद्धनगर ‌ 
गौतमबुद्धनगर।एमिटी विश्वविद्यालय के एमिटी इंस्टीटयूट ऑफ साइकोलॉजी एंड एलाइड सांइसेस द्वारा ‘‘ सिज़ोफ्रेनिया में यात्रा - जीवन रक्षा से पुनर्वास तक और उसके आगे’’ विषय पर परिचर्चा सत्र का आयोजन किया गया। इस परिचर्चा सत्र में एम्स दिल्ली के प्रोफेसर डा राजेश सागर, चेन्नई के एससीएआरएफ के सहायक निदेशक डा कोटेश्वर राव, दिल्ली के मैक्स अस्पताल के मनोचिकित्सक डा संदीप गोविल, वडर््स ऑफ ए साइकोलॉजिस्ट की संस्थापक सुश्री सृष्टि अस्थाना, एमिटी इंस्टीटयूट ऑफ साइकोलॉजी एंड एलाइड सांइसेस की प्रमुख डा रंजना भाटिया और प्रोफेसर रजत कांति मित्रा ने अपने विचार रखे।एम्स दिल्ली के प्रोफेसर डा राजेश सागर ने छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि मानसिक विकार एक व्यापक शब्द है जिसके अंतर्गत सामान्य मानसिक विकार और गंभीर मानसिक विकार शामिल है। सामान्य मानसिक विकार में तनाव, निराशा, उदासी आदि शामिल है जबकी गंभीर मानसिक विकार दीर्घकालिक रोग जैसे सिज़ोफ्रेनिया, अवसादग्रस्तता अािद शामिल है। सिज़ोफ्रेनिया के लक्षण को पहचानकर और रोगी के बदलते व्यवहार पर नजर रखकर मनोचिकित्सक रोगी की पहचान कर सकते है। डा सागर ने लक्षणों को बताते हुए कहा कि विचारों की कमजोरी, मतिभ्रम, अव्यवस्थित बोलचाल, अव्यवस्थित व्यवहार नकारात्मकता, इन पांच लक्षणों से किसी भी दो लक्षणों का एक माह तक दिखना सिज़ोफ्रेनिया हो सकता है। इस रोग से ग्रसित व्यक्ति स्वंय की देखभाल नही कर पाता और लोगो से मिलना कम कर देता है। डा सागर ने कहा कि वर्तमान में आमतौर पर कई युवाओ का 20 से 30 वर्ष की आयु में सिज़ोफ्रेनिया के लक्षण मिल रहे है जो उनके कैरियर और प्रगति को क्षति पहुंचाता है। चिकित्सा, दवाई के साथ परिवार का सहयोग और रोगी की देखभाल ही सिज़ोफ्रेनिया के केस में सबसे कारगर उपाय है।
चेन्नई के एससीएआरएफ के सहायक निदेशक डा कोटेश्वर राव ने कहा कि हमारा संगठन एससीएआरएफ सिज़ोफ्रेनिया से पीड़ित लोगों की मदद के लिए विभिन्न कार्यक्रमों का संचालन कर रहा है जैसे पारिवारिक शिक्षा कार्यक्रम, साइको सोशल पुर्नवास कार्यक्रम आदि जो सामाजिक और व्यवसायिक में सकारात्मक बदलाव लाने में सहायक है। संगठन सिज़ोफ्रेनिया से पीड़ित लोगों को विकलंागता प्रमाणपत्र भी प्रदान करता है जो बीमारी के बेहतर इलाज में मदद करता है।दिल्ली के मैक्स अस्पताल के मनोचिकित्सक डा संदीप गोविल ने कहा कि सिज़ोफ्रेनिया के लक्षणों को प्रारंभिक स्तर पर पहचानकर उसका शीघ्र इलाज अच्छे परिणाम प्रदान करता है। चिकित्सा का महत्व है किंतु हमें मनोविज्ञान के महत्व की भूमिका को समझना होगा जो रोगी को नकारात्मकता के लक्षणों से उभरने में सहायता प्रदान करती है। प्रेरणा और भावनात्मकता की कमी को दूर करके, परिवार का सहयोग रोगी को सबल प्राप्त होता है। कई बार लोगों को लगता है कि व्यक्ति अपनी जिम्मेदारियों से दूर भागने के लिए इस प्रकार का नाटक कर रहा है इसलिए ऐसे में मनोचिकित्सक होने के नाते आपको ना केवल रोगी को बल्कि उनके परिवार के व्यक्तियों को रोग के बारे में जानकारी प्रदान करना आवश्यक है। डा गोविल ने कहा कि भारतीय पारिवारिक पंरपरा के कारण सिज़ोफ्रेनिया के मरीज को समाज में अपनाया गया है।वडर््स ऑफ ए साइकोलॉजिस्ट की संस्थापक सुश्री सृष्टि अस्थाना ने कहा कि रोगी की देखभाल करना बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य है इसलिए सदैव रोगी के लिए स्थान बनाये क्योकी वह मुक्त स्थान चाहता है। आप छात्रों की जिम्मेदारी बनती है अपने आस पास लोगों में सिज़ोफ्रेनिया मरीजों की देखभाल के प्रति जागरूकता फैलाये और उन्हें स्थानिय भाषा में जानकारी प्रदान करे। रोगी की देखभाल एक व्यक्ति कार्य नही है यह समूह कार्य है जिसमें आपके परिवार के लोग, रिश्तेदार और पड़ोसी आदि शामिल होते है आपको सभी को जागरूक करना होगा।एमिटी इंस्टीटयूट ऑफ साइकोलॉजी एंड एलाइड सांइसेस की प्रमुख डा रंजना भाटिया ने अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि सिज़ोफ्रेनिया एक मानसिक विकार है इसमें व्यक्ति वास्तविकता से अलग रहकर भ्रम का शिकार होता है। डा भाटिया ने कहा कि वर्तमान में एक बड़ी संख्या में लोग इस मनोविकार के रोगी बन रहे है इसलिए मनोविज्ञान के छात्रों को इसके इलाज मे रहे नवीनतम प्रगति की जानकारी प्रदान करने के लिए इस परिचर्चा सत्र का आयोजन किया गया है।

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