नोएडा:1952 में अमेरिका में खतरनाक पोलियो वायरस की लहर आयी जिसने 50 हजार से अधिक बच्चों को उम्र भर के लिए शारीरिक तौर अपाहिज बना दिया। अपने मां-बाप के लाडले प्यारे उस समय 6 वर्ष के पॉल अलेक्जेंडर भी पोलियो वायरस की गंभीर चपेट में आए पोलियो वायरस ने उनके हाथ पैर ही नहीं गर्दन तक समुचित शरीर को लकवा ग्रस्त कर दिया।
नैसर्गिक तौर पर उनके लिए अब सांस लेना संभव नहीं था वह कुछ ही दिनों के मेहमान थे लेकिन एक चिकित्सक ने सूझबूझ का परिचय देते हुए मैकेनिकल ब्रीदिंग के लिए इजाद किए गए आयरन लन्ग नामक यंत्र को उनके फेफड़ों की प्रणाली को सपोर्ट करने के लिए जोड़ दिया, इस भाव के साथ शायद वह कुछ वर्ष जीवित रह सके।
उस दिन से लेकर 11 मार्च 2024 तक अपने जीवन की अंतिम सांस तक 78 वर्षीय पॉल उसी 300 किलो वजनी यांत्रिक प्रणाली के सहारे जीवित रहे धातु के इस सिलेंडर में उन्होंने अपना पूरा जीवन गुजार दिया। जीवित ही नही रहे पुरी जिंदादिली से उन्होंने अपना जीवन जिया। अपनी आत्मकथा भी लिखी, वकालत की डिग्री भी हासिल की खूबसूरत पेंटिंग भी करते थे।
हम और आप यह कल्पना भी नहीं कर सकते हाथ पैरों से सकुशल होते हुए भी किसी एक स्थान पर बैठकर एक ही मुद्रा में घंटो व्यतीत नहीं कर सकते लेकिन पोल ने अपना पूरा जीवन धातु के एक यंत्र में गुजार दिया,वह भी बगैर किसी से शिकवा शिकायत किये। इसी मशीन में खाना पीना सोना पढ़ना सब कुछ। ईश्वर को वह प्रतिदिन धन्यवाद देते थे जीवन के इस चुनौती पूर्ण विशिष्ट अनुभव के लिए।
पॉल अपने जैसे देश दुनिया के लाखों दिव्यांगों के लिए एक जीवंत प्रेरणा बनकर जिये। आयरन लन्ग में सर्वाधिक 70 वर्ष गुजरने का गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड भी उनके नाम रहा अमेरिका टैक्सास आदि में दिव्यांगों को लेकर तमाम सामाजिक सुरक्षा से जुड़े कानून बने ।
सभी इच्छाओं में प्राणइच्छा प्रबल होती है पॉल इसका उदाहरण है। कोई भी शारीरिक कठिनाई प्रतिकूलता तब तक प्रतिकूलता नहीं होती जब तक वह मानसिक रूप में ना बदल जाए पॉल का मन दिव्य था अपनी शारीरिक अक्षमता को उन्होंने अपने मन पर कभी हावी नहीं होने दिया। 78 वर्ष का लंबा सार्थक जीवन जिया।
कोई कोई सकुशल होते हुए भी ऐसा जीवन नहीं जी पाता।
लेखक आर्य सागर खारी
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