मनोज तोमर ब्यूरो चीफ दैनिक फ्यूचर लाइन टाईम्स गौतम बुद्ध नगर।
चुनाव बाद जनप्रतिनिधियों को आरोपों के कटघरे में खड़ा करने वाले मतदाता की चुप्पी समझ से परे।
अगर आरोप राजनीति से प्रेरित नहीं तो प्रत्याशियों के समक्ष मतदाता खुलकर प्रस्तुत करें अपनी मांगों का एजेंडा।
दादरी। वरिष्ठ समाजसेवी कर्मवीर नागर पूर्व प्रमुख ने चुनाव में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि 2024 का चुनावी बिगुल बज चुका है। केवल तारीखों की घोषणा शेष है। चुनावी मैदान में उतरने वाले प्रत्याशी घर-घर पहुंचकर लोगों के बीच नजर आने लगे हैं। लेकिन आमतौर पर देखने को मिल रहा है कि जो लोग चुनाव के बाद जनप्रतिनिधियों और नेताओं पर तरह-तरह के आरोपों की तोहमत मंढते नजर आते हैं लेकिन अब आरोप प्रत्यारोप की राजनीति करने वाले मतदाताओं और जनता के द्वारा अपनी समस्याओं का खुलकर इजहार न करना इस बात को दर्शाता नजर आ रहा है कि चुनाव बाद 5 साल तक जनप्रतिनिधियों को आरोप प्रत्यारोपों के कटघरे में खड़ा करना कहीं किसी राजनीतिक से प्रेरित तो नहीं। अगर जनप्रतिनिधि द्वारा विकास न करने अथवा क्षेत्रीय समस्याओं के समाधान न करने के आरोपों में कहीं सच्चाई है तो चुनावी समर में उतरे प्रत्याशियों के समक्ष मतदाताओं को अपनी बात खुलकर जरूर रखनी चाहिए। असल में यही तो असली लोकतंत्र है। लोकतंत्र में मतदाता के लिए यही तो वह मौका होता है जब कोई नेता मतदाता के द्वार जाकर बेश कीमती वोट मांगता नजर आता है। हालांकि तो कारण जो भी हो लोकतंत्र का चौथा स्तंभ भी जनता के अहम् मुद्दों को उठाने से कतरा रहा है लेकिन उससे भी ज्यादा विडंबना का विषय तो यह है कि देश की आम जनता चुनाव के बाद पूरे 5 वर्ष तमाम राजनीतिक विषयों और जनहित के मुद्दों पर गली, कूचों और नुक्कड़ों आदि पर आपसी चर्चा और बहस करता नजर आता है लेकिन वह भी चुनाव के वक्त अपनी उन समस्याओं और मांगों को प्रत्याशियों के समक्ष अपने पराए और भलाई बुराई के चक्कर में नहीं उठाता नहीं नजर आ रहा है जिनका समाधान न होने की वजह से पूरे 5 वर्ष जनप्रतिनिधियों को नाकामी के कटघरे में खड़ा करता नजर आता है। हर क्षेत्र में कुछ छुटपुट घटनाओं के अतिरिक्त अधिकतर तो यही नजर आता है कि हम उन सब प्रत्याशियों का भी हृदय से अभिनंदन करते नजर आते हैं जिन पर राजनीतिक बहस में कई बार तोहमत मंढते नजर आते हैं। अगर जनप्रतिनिधियों पर आपके आरोप प्रत्यारोप किसी राजनीति से प्रेरित नहीं है तो इस चुनावी समर में अपनी क्षेत्रीय समस्याओं का एजेंडा प्रत्याशियों के समक्ष खुलकर प्रस्तुत करें उनसे आश्वासन लें ताकि चुनाव बाद वादा खिलाफी करने पर उनको चुनावी वादे याद दिला कर मुद्दों के निस्तारण के लिए मजबूर किया जा सके।
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