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भगवान शिव के व्यक्तित्व से सीखें लाइफ मैनेजमेंट के सिद्धांतः सद्गुरूनाथ जी महाराज ।




मनोज तोमर दैनिक फ्यूचर लाइन टाईम्स ब्यूरो चीफ गौतमबुद्धनगर  
नोएडा, राष्ट्र की समृद्धि, शांति एवं विकास के लिए नोएडा सेक्टर 110 स्थित राम लीला मैदान, महर्षि नगर में आयोजित श्री शिव महापुराण कथा के पांचवें दिन परम पूज्य सद्गुरूनाथ जी महाराज जी भक्तों को कथा सुनाते हुए कहा कि हमारे धर्म शास्त्रों में जहाँ सभी देवी-देवताओं को वस्त्र-आभूषणों से सुसज्जित बताया गया है वहीं भगवान शंकर को सिर्फ मृग चर्म (हिरण की खाल) लपेटे और भस्मी (राख) लगाए बताया गया है।मीडिया प्रभारी ए के लाल ने बताया की इस पावन अवसर पर ज्योतिष पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी श्री वासुदेवानंद सरस्वती जी महाराज की गरिमामयी उपस्थिति में श्री शिव महापुराण कथा सुनाते हुए सद्गुरूनाथ जी महाराज जी ने कहा कि भस्मी (राख) शिव जी का प्रमुख वस्त्र भी है, क्योंकि शिव जी का पूरा शरीर ही भस्म से ढका रहता है। शिव का भस्मी (राख) लगाने के पीछे कुछ वैज्ञानिक तथा आध्यात्मिक कारण भी हैं। भस्मी (राख) की एक विशेषता होती है कि यह शरीर के रोम छिद्रों को बंद कर देती है। इसका मुख्य गुण है कि इसको शरीर पर लगाने से गर्मी में गर्मी और सर्दी में सर्दी नहीं लगती। भस्मी (राख) त्वचा संबंधी रोगों में भी दवा का काम करती है। भस्मी (राख) धारण करने वाले शिव यह संदेश भी देते हैं कि परिस्थितियों के अनुसार अपने आपको ढालना मनुष्य का सबसे बड़ा गुण है। आगे उन्होंने कहा कि एक बार की बात है भगवान शिव हिमालय पर्वत पर एक सभा कर रहे थे, जिसमें सभी देवता, ऋषि-मुनि और ज्ञानीजन उपस्थित थे। तभी उस सभा में माता पार्वती आईं और उन्होंने अपने मनोरंजन के लिए खुद के दोनों हाथों को भगवान शिव की दोनों आंखों पर रख दिये। जैसे ही माता पार्वती ने भगवान शिव की आंखों को ढका, सृष्टि में अंधेरा हो गया।  ऐसा लगा मानो सूर्य देव की कोई अहमियत ही नहीं है। इसके बाद धरती पर मौजूद सभी प्राणियों में खलबली मच गई। संसार की ये हालत देख कर भगवान शिव व्याकुल हो उठे और उसी समय उन्होंने अपने अपने माथे पर एक ज्योतिपुंज प्रकट किया, जो भगवान शिव की तीसरी आंख बन कर सामने आई। बाद में माता पार्वती के पूछने पर भगवान शिव ने उन्हें बताया कि अगर वो ऐसा नहीं करते तो संसार का नाश हो जाता, क्योंकि उनकी आंखें ही जगत की पालनहार हैं। ऐसे पालनहाल है भगवान शिव।भगवान शिव का एक नाम भालचंद्र भी प्रसिद्ध है। भालचंद्र का अर्थ है मस्तक पर चंद्रमा धारण करने वाला। चंद्रमा का स्वभाव शीतल होता है। चंद्रमा की किरणें भी शीतलता प्रदान करती हैं। लाइफ मैनेजमेंट के दृष्टिकोण से देखा जाए तो भगवान शिव कहते हैं कि जीवन में कितनी भी बड़ी समस्या क्यों न आ जाए, दिमाग हमेशा शांत ही रखना चाहिए। यदि दिमाग शांत रहेगा तो बड़ी से बड़ी समस्या का हल भी निकल आएगा। ज्योतिष शास्त्र में चंद्रमा को मन का कारक ग्रह माना गया है। त्रिशूल भगवान शिव का प्रमुख अस्त्र है। यदि त्रिशूल का प्रतीक चित्र देखें तो उसमें तीन नुकीले सिरे दिखते हैं। यूं तो यह अस्त्र संहार का प्रतीक है पर वास्तव में यह बहुत ही गूढ़ बात बताता है।संसार में तीन तरह की प्रवृत्तियां होती हैं- सत, रज और तम। सत मतलब सात्विक, रज मतलब सांसारिक और तम मतलब तामसी अर्थात निशाचरी प्रवृति। हर मनुष्य में ये तीनों प्रवृत्तियां पाई जाती हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि इनकी मात्रा में अंतर होता है। देवों के देव महादेव के त्रिशूल की चर्चा करते हुए कहा कि त्रिशूल के तीन नुकीले सिरे इन तीनों प्रवृत्तियों का प्रतिनिधित्व करते हैं। त्रिशूल के माध्यम से भगवान शिव यह संदेश देते हैं कि इन गुणों पर हमारा पूर्ण नियंत्रण हो। यह त्रिशूल तभी उठाया जाए जब कोई मुश्किल आए। तभी इन तीन गुणों का आवश्यकतानुसार उपयोग हो।श्री शिव महापुराण कथा के पावन अवसर पर श्री अजय प्रकाश श्रीवास्तव, अध्यक्ष, महर्षि महेश योगी संस्थान और कुलाधिपति, महर्षि यूनिवर्सिटी ऑफ इन्फार्मेशन टेक्नालोजी, श्री राहुल भारद्वाज, उपाध्यक्ष, महर्षि महेश योगी संस्थान और श्री शिव महापुराण कथा कार्यक्रम के संयोजक रामेन्द्र सचान और गिरीश अग्निहोत्री, श्री शिव  पुराणमहा कथा के मुख्य यजमान श्री एस. पी. गर्ग उपस्थित थे। महर्षि संस्थान के राजीव अरोरा, अरुण मिश्र, वेद प्रकाश शर्मा और विपिन जी सहित हजारों कथा का रसपान कर रहे थे।

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