किसान संघर्षों को सत्याग्रह सिखाने वाला योद्धा विजयसिंह 'पथिक'

दैनिक फ्यूचर लाइन टाईम्स सम्पादकीय 
विजयसिंह 'पथिक' भारतीय राजनीतिक परिदृश्य पर वह एकमात्र नेतृत्व है जिसने समाज के साथ मिलकर सफल सत्यागह की शैली ईजाद की। 'पथिक' जी का जन्म होली के दूसरे दिन दुल्हेंडी 27 फरवरी, 1884 को हुआ था। उनका मूल नाम भूपसिंह राठी था। उनके पिता और माता के परिवारों  की 1857 की क्रांति में सकिय भागीदारी थी। 'पथिक' इन्दौर में 1905 में प्रसिद्ध क्रांतिकारी देशभक्त शचीन्द्र सान्याल के सम्पर्क में आये। उन्होंने 'पथिक' जी को रासबिहारी बोस से मिलवाया। क्रांतिकारियों के इस समूह में 'पथिक' जी कई महत्वपूर्ण कार्यवाहियों का हिस्सा रहे। 1912 में जब अंग्रेजों ने दिल्ली को राजधानी बनाया तो क्रांतिकारियों ने उद्घाटन समारोह में वायसराय के जुलूस पर चांदनी चौक में बम फेंका। इस कार्यवाही में 'पथिक' जी शामिल थे। 1914 में रासबिहारी बोस और शचीन्द्र सान्याल ने सम्पूर्ण भारत में एक साथ सशस्त्र कांति के लिए 'अभिनव भारत समिति' नाम का संगठन बनाया। 'पथिक' जी को इस काम के लिए राजस्थान का जिम्मा सौंपा गया। अजमेर से प्रमुख समाचार पत्रों का सम्पादन और प्रकाशन प्रारम्भ किया। बिजौलिया का प्रसिद्ध किसान आन्दोलन, बेगू किसान आन्दोलन, सिरोही का भील आन्दोलन, बरार किसान आन्दोलन ये सब बडे किसान आन्दोलन 'पथिक' जी के नेतृत्व में खड़े हुए। राजस्थान के स्वतंत्रता आन्दोलन का विस्तार कर राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर तक ले गये। उस दौर के बड़े नेता गांधी और तिलक थे उन तक राजस्थान के स्वतंत्रता संघर्ष की पूरी योजना और परिणामों को पहुँचाया। ऐनी हडसन के जरिये ब्रिटेन के हाउस ऑफ कॉमन्स में राजस्थान स्वतंत्रता संघर्ष की आवाज को उठाया। रियासतों के दमन और शोषण को समझाने वाली विशाल प्रदर्शनी अधिवेशन स्थलों पर आयोजित की। यह सब 'पथिक' जी की दूरदृष्टि और नेतृत्व शैली को समझने के लिए पर्याप्त है। 1920 में वर्धा में राजस्थान सेवा संघ की स्थापना की गई। इसके माध्यम से सत्याग्रह के प्रयोग शुरू किए। बाद में संघ की गतिविधियों का केन्द्र अजमेर बना। देशभक्त युवाओं को खोज-खोज कर आन्दोलन में शामिल किया गया। माणिक्य लाल वर्मा, राम नारायन चौधरी, हरिभाई किंकर, नैनूराम और मदनसिंह करौला जैसे देशभक्त और आजाद भारत के बड़े नेता 'पथिक' जी के राजस्थान सेवा संघ की ही देन थे। 1929 में 'पथिक' जी राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गये।
'पथिक' जी की कार्यशैली और नेतृत्व शैली दोनों अद्भुत रहे। दोनों के केन्द्र में सत्याग्रह की पद्धति निहित थी। उनके कार्यकम और प्रबंधन का अनूठापन  परिणाम देने वाला था, वह सत्याग्रह ही था। लगान के सम्बन्ध में, ठिकाने के अत्याचारों के सम्बन्ध में, किसानों की बहादुरी के सम्बन्ध में, गीत और भजन बनाकर उनके द्वारा किसानों में गांव-गांव आन्दोलन का प्रचार करना, सब कुछ सत्याग्रह को साक्षी मानकर ही किया गया था। 'पथिक' जी ने सम्मिलित हस्ताक्षरों से राज्य को किसानों के अभाव अभियोगों के लिए आवेदन देना बन्द करवा दिया। केवल पंचायत के सरपंच के नाम से ही लिखा-पढ़ी की जाने लगी। चेतावनी दी गई कि अब किसान अनुचित लागतें और बेगारें नहीं देंगे। पंचायत ने यह निश्चय किया है कि यदि ठिकाना इन्हें समाप्त नहीं करेगा तो पंचायत उन्हें अन्य टैक्स भी नहीँ देगी। राज्य ने अपने कर्मचारियों और ठिकाने के पक्ष में आदेश दिया कि सरपंच या पंचायत के नाम से किसी अर्जी या आवेदन पर कोई कार्यवाही न हो अर्थात राज्य ने पंचायत के अस्तित्व को मानने से इन्कार कर दिया। विजय सिंह 'पथिक' ने किसानों को समझाया कि कोई किसान व्यक्तिगत रूप से या सम्मिलित हस्ताक्षर करके आवेदन न दे। सभी किसानों की ओर से बोलने का अधिकार एकमात्र पंचायत को ही होगा। उनके इस आह्वान से सम्पूर्ण राजस्थान सत्याग्रह की गूंज से जाग्रत हो उठा। 'पथिक' जी के आह्वान पर बिजौलिया के किसानों ने युद्ध का चन्दा देने से इन्कार कर दिया। प्रेमचन्द भील भजन गा-गा कर किसानों को सत्याग्रह के लिए प्रेरित करते रहे। 'पथिक' जी ने गणेश शंकर विद्यार्थी को पत्र लिखा कि वे बिजौलिया में किसान सत्याग्रह चला रहे हैं उनके प्रसिद्ध पत्र प्रताप की सहायता की आन्दोलन को अत्यन्त आवश्यकता है। साथ ही बिजौलिया के किसानों की ओर से गणेशशंकर विद्यार्थी को राखी भेजी गई। पत्र मिलते ही गणेशशंकर विद्यार्थी का जवाब आया कि बिजौलिया आन्दोलन के लिए प्रताप के पृष्ठ सदैव खुले हैं। आप अपने सत्याग्रह पथ पर चलते रहिए। यह सत्याग्रह की शैली का ही प्रभाव था कि देखते ही देखते राजस्थान का स्वतंत्रता संघर्ष पूरे देश में पहचाना जाने लगा।
विजयसिंह 'पथिक' सत्याग्रह पथ पर अडिग रहे और आजादी के लिए जीवन पर्यन्त संघर्ष करते रहे। 29 मई, 1954 को जब उनका देहान्त हुआ तब भी 'पथिक' जी एक समरस, शान्तिपूर्ण और सुन्दर समाज के निर्माण में जुटे थे और एक नया अखबार आरंभ करने की योजना बना रहे थे। 'पथिक' जी जीवन भर सामंतवाद, जातिवाद, पूंजीवाद, सम्प्रदायवाद, धर्मांधता, सामाजिक कुप्रथाओं, शोषण, दमन और अन्याय के विरुद्ध संघर्ष करते रहे। 'पथिक' जी जहाँ देश, समाज और राष्ट्र के लिए बड़े सवालों को लेकर चिंतनशील थे, वही बेरोजगारी, पर्यावरण विनाश, स्वास्थ्य और स्वच्छता जैसे सामाजिक महत्व के मुद्दों पर अपने अखबारों के जरिए बराबर लिख रहे थे। इसीलिए देश का पहला और असली सत्याग्रही विजयसिंह 'पथिक' है। गांधी को भी यह स्वीकार करना पड़ा। गांधी ने स्वयं कहा बिजौलिया आन्दोलन पर अपने भाषण में "मै बिजौलिया वालों को क्या संदेश दूं? बिजौलिया के प्रतिनिधि तो मुझे संदेश देने आये है कि बापू, तूने जो सत्याग्रह छेड़ा, विफल रहा, हम लोग अपने आन्दोलन को सफल करके आये हैं।" सत्याग्रह की शक्ति ने स्वतंत्रता संघर्ष को सामाजिक महत्व के जनान्दोलन में बदलने का बड़ा काम किया। पूरे स्वतंत्रता संग्राम में सत्याग्रह एक शक्तिशाली हथियार की तरह उपयोग में आया। वास्तव में भारतीय स्वाधीनता संग्राम की कहानी सत्याग्रह की ही कहानी है। आज भी न इसका महत्व कम हुआ है और न ही इसकी प्रासंगिकता कम हुई है। जैसे-जैसे दुनिया में अन्याय, शोषण और अत्याचार बढ़ेगा वैसे-वैसे सत्याग्रह के लिए आग्रह और तीव्र होंगे। इस जादुई हथियार को समझने के लिए 'पथिक' साहित्य/शोधकार्य/इतिहास सामग्री/संस्मरण और उनके जीवनानुभवों तथा सामाजिक कार्यों को समझना आवश्यक है। उनके द्वारा प्रकाशित छः प्रमुख समाचार-पत्रों में राजस्थान केसरी, नवीन राजस्थान, तरुण राजस्थान, राजस्थान संदेश, नव-संदेश और ऊपरमाल को डंको है। 'पथिक' जी ने पत्रकारिता को सत्याग्रह का शस्त्र बनाया और समाज व राष्ट्र को संघर्ष करना सिखाया। एक सफल सत्याग्रह राष्ट्रीय चेतना में कैसे प्रस्फुटित होता है और समाज को बदलाव के लिए खड़ा करता है, यह 'पथिक' के प्रयोगों से ही सीखा जा सकता है।
वास्तव में, सामाजिक न्याय के योद्धा के रूप में एक समाज सुधारक, किसान नेता, पत्रकार, साहित्यकार और भविष्य दृष्टा के रूप में एक महान चिंतक की भूमिका में सक्रिय विजयसिंह 'पथिक' आधुनिक भारतीय राजनीतिक चिंतकों में एक ऐसा नाम है जो भारतीय चिंतन परम्परा की गहरी समझ के साथ भारतीय राजव्यवस्थाओं के उदय और विकास-क्रम की ऐतिहासिकता की मौलिक विवेचना करते हैं। आधुनिक भारत के निर्माण में भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन का एक बड़ा योगदान है और उस राष्ट्रीय आन्दोलन में अजस्र योगदान करने वाले विजयसिंह 'पथिक' रहे हैं। स्वतंत्रता के वास्तव में सामाजिक न्याय के योद्धा के रुप में एक समाज सुधारक, किसान नेता, पत्रकार, साहित्यकार और भविष्य  दृष्टा के रुप में एक महान चिंतक की भूमिका में सकिय विजयसिंह पथिक आधुनिक भारतीय राजनीतिक चिंतकों एक ऐसा नाम है जो भारतीय चिंतन परम्परा की गहरी समझ के साथ भारतीय राजव्यवस्थाओं के उदय और विकास कम की ऐतिहासिकता की मौलिक विवेचना करते हैं। आधुनिक भारत के निर्माण में भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन का एक बडा योगदान है और उस राश्ट्रीय आन्दोलन में अजस्र योगदान करने वाले विजयसिंह पथिक रहे है। स्वतंत्रता के संघर्ष का वह आन्दोलनात्मक पक्ष हो चाहे रचनात्मक पक्ष 'पथिक' जी की भूमिका बेजोड़ रही है। इस सबसे भी बढ़कर जो वैचारिक अवदान 'पथिक' जी का रहा वह भारतीय चिंतन परम्परा की अमूल्य थाती है। 'पथिक' जी की भारतीय राजनीति पर तीन बहुत ही प्रमुख पुस्तकें हैं। पहली 'भारत की राजनीतिक संस्कृति' और दूसरी 'भारतीय राजनीति के तत्व' तथा तीसरी 'चुनाव पद्धतियां और जनसत्ता'। इनमें भारत के सामाजिक-राजनीतिक इतिहास को समझते हुए भारत में राजव्यवस्थाओं के विकासक्रम को चिन्हित करने का महान प्रयास तो किया ही राष्ट्र निर्माण के शुरुआती दौर में ही राजनीतिक सुधारों को लेकर गंभीर चिंता जाहिर की। उनकी दूर-दृष्टि देश को लेकर एक सशक्त राष्ट्र बनाने की दिशा में सकारात्मक राष्ट्र-निर्माण की योजना की सूचक है। 'पथिक' जी का वैचारिक धरातल अत्यंत विस्तृत है। उन्होंने राजनीति, इतिहास, अर्थशास्त्र, धर्म, दर्शन के साथ-साथ समकालीन मुददों और समस्याओं पर निरन्तर लेखन और चिंतन किया। विजयसिंह 'पथिक' एक ऐसा विचार है जो इस देश की मूल भावनाओं में जन्मा है। मौलिक ढंग का चिंतन और देशज परम्परा का वाहक पथिक विचार है। पथिक-पथ के विचार में एक समावेशी दृष्टि है, जो सबको साथ लेकर चलने की क्षमता रखता है। पथिक जी के विषय में जैसे-जैसे अनुसंधान आगे बढ़ेगा उनके व्यक्तित्व की विशालता और विराटता उतनी ही हम सबके सामने आयेगी। वह एक असाधारण व्यक्तित्व है। जितना परत-दर-परत हम उन्हें समझने की कोशिश करते हैं, उतना ही पथिक जी विस्तार पाते जाते हैं। पथिक जी की इस विराटता और विशालता को समझना साधना का विषय है। उनके जीवन की एक-एक घटना प्रेरणाओं से ओत-प्रोत है। जो किसी भी समतावादी, न्यायप्रिय, शांतिपूर्ण और समरस समाज का सपना देखने वाले व्यक्ति को प्रेरित करती है, स्पंदित करती है। विजयसिंह 'पथिक' के सामाजिक-राजनीतिक चिंतन का प्रचार-विस्तार आज की महती जरूरत है। उनके सामाजिक-राजनीतिक विचारों को समझकर उन्हें अपने व्यवहार में लाकर हमारे राष्ट्र निर्माता पथिक-पथ का अनुसरण कर एक मजबूत भारत के निर्माण का सपना पूरा कर सकते हैं। पथिक तेरा जो प्रण है वहीं मेरा रण है।।

जह हिन्द जय भारत

e-mail - ranarakesh@gmail.com # लेखक समाजशास्त्री हैं!

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ