गौतमबुद्धनगर।एमिटी इंस्टीटयूट ऑफ एनवायरमेंटल सांइसेस द्वारा डीएसटी एसईआरबी के कार्यशाला ट्रेनिंग प्रोग्राम के अंर्तगत ‘‘जल गुणवत्ता निगरानी, नमूना विश्लेषण और गुणवत्ता आश्वासन के उपकरण और तकनीक’’ पर 5 दिवसीय व्यावहारिक प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जिसमें देश के विभिन्न संस्थानों ने 25 शोधार्थी और छात्र हिस्सा ले रहे है। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम का शुभारंभ भारत सरकार के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के कंट्रोल ऑफ पॉल्युशन के निदेशक श्री संदीप, राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिक ‘एफ’ डा हिमंाशु शेखर मंडल, एमिटी विश्वविद्यालय की वाइस चंासलर डा बलविंदर शुक्ला, एमिटी लॉ स्कूल के चेयरमैन डा डी के बद्योपाध्याय और एमिटी इंस्टीटयूट ऑफ एनवायरमेंटल सांइसेस की सहायक निदेशक डा रेनू धुप्पर द्वारा किया गया।
प्रशिक्षण कार्यक्रम का शुभारंभ भारत सरकार के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के कंट्रोल ऑफ पॉल्युशन के निदेशक श्री संदीप ने कहा कि यह प्रशिक्षण कार्यक्रम आपको केवल जल गुणवत्ता के क्षेत्र में ही नही बल्कि आप जिस क्षेत्र में भी शोध कर रहे है सभी में सहायक होगा। गुणवत्ता के आश्वासन के महत्व को समझें इसलिए सर्वप्रथम आपको यह स्पष्ट होना चाहिए आपका उददेश्य क्या है और आप सैंपल क्यो जमा कर रहे है। आपको माध्यमों और तकनीकी की जानकारी भी होना चाहिए। डा संदीप ने सैंपलों को जमा करने और उनके लैब में पहंुचाने के यातायात के बारे में बताया कि जब भी आप सैंपल इकठ्ठा करते है तो आपको पूरी योजना बना करनी चाहिए क्योकी इन सबका असर आपके अंतिम परिणाम पर आयेगा। जल, स्थिरता का मूल है इसलिए जल के मामले में मात्रा ,तुलना में गुणवत्ता भी महत्वपूर्ण है। उन्होनें कहा कि कोरपोरेट क्षेत्र, निती निर्माता, सरकार, प्रशासन सभी को वैज्ञानिक सलाह की आवश्यकता है। उन्होनें प्रतिभागीयों से कहा कि इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में अधिक से अधिक व्यवहारिक व प्रयोगिक ज्ञान प्राप्त करें। राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिक ‘एफ’ डा हिमंाशु शेखर मंडल ने कहा कि जल की गुणवत्ता एक बहुत बड़ी चुनौती है और इस प्रकार के व्यवहारिक प्रशिक्षण से आपकों वास्तविक जीवन में कार्य करने का मौका प्राप्त हो रहा है। तकनीक का उपयोग ना केवल जल की गुणवत्ता को जांचने की करना है बल्कि गुणवत्ता को सुधारने के लिए शोध करना चाहिए। डाटा को समझ कर मॉडल निर्माण करें। वर्तमान में जल की उपलब्धता और गुणवत्ता एक वैश्विक चुनौती है इसलिए आपकों जल की पीएच वैल्यु को समझना होगा। मानवीय गतिविधियों से होने वाले प्रदूषण को रोकना होगा।
एमिटी विश्वविद्यालय की वाइस चंासलर डा बलविंदर शुक्ला ने कहा कि एक स्थिर जीवन के लिए जल महत्वपूर्ण स्त्रोत है और बिना जल के किसी भी जीवन की कल्पना नही की जा सकती है। औद्योगिकरण, बढ़ती जनसंख्या में जल स्त्रोतो का संतुलन बनाये रखना एक बड़ी चुनौती है। गिर रहे जल स्तर में जल की गुणवत्ता एवं उलब्धता को बचाये रखना आवश्यक है। हमें जल का पुर्नउपयोग, रेन वाटर हार्वेस्टिंग का बढ़ावा देते हुए बाढ़ में आये पानी का संचय करना चाहिए। इस प्रकार के प्रशिक्षण कार्यक्रम जल गुणवत्ता के सभी क्षेत्रों पर चर्चा करेगें और व्यवहारिक प्रशिक्षण कार्यक्रम के जरीए आपके ज्ञान एवं कौशल को विकसित किया जायेगा।
एमिटी लॉ स्कूल के चेयरमैन डा डी के बद्योपाध्याय ने कहा कि यह प्रशिक्षण कार्यक्रम आप सभी प्रतिभागियों के लिए बेहतरीन अवसर है इसलिए प्रयोगिक अनुभव प्राप्त करने के साथ विशेषज्ञों से शंकाओं का निवारण भी कर लें। ऐसा अनुमानित है कि आने वाला तृतीय विश्व युद्ध जल के लिए होगा इसलिए अपने ज्ञान व कौशल का उपयोग कर जल की उपलब्धता और गुणवत्ता सभी समस्याओं का निवारण करें।
एमिटी इंस्टीटयूट ऑफ एनवायरमेंटल सांइसेस की सहायक निदेशक डा रेनू धुप्पर ने जानकारी देते हुए कहा कि इस पंाच दिवसीय कार्यक्रम में कुल 82 शोधार्थीयों और छात्रो ने आवेदन किया था जिसमें 25 का चयन किया गया। इसमें गांधीनगर के इंस्टीटयूट ऑफ एडवंास रिसर्च गांधीनगर, ग्राफिक एरा विश्वविद्यालय देहरादून, आईपी विश्वविद्यालय दिल्ली, सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ हरियाणा, गुरूकुल कांगडी विश्वविद्यालय हरिद्वार आदि से छात्रों ने हिस्सा लिया है जिन्हे प्रयोगिक प्रशिक्षण व विशेषज्ञों द्वारा जानकारी प्रदान की जायेगी।
इस प्रशिक्षण कार्यक्रम के प्रथम दिन तकनीकी सत्र में वॉटर क्वालिटी पैरामीटर और उसके महत्व, जल गुणवत्ता विश्लेषण, की तकनीक, जल नमूनाकरण तकनीक को प्रदर्शन किया गया और व्यावहारिक अभ्यास करवाया गया।
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