गौतमबुद्धनगर।कार्यशाला में पद्मश्री डा० दिनेश सिंह जम्मू एण्ड काश्मीर हायर एजुकेशन कॉउंसिल के “वॉइस चॉसलर” मुख्य अतिथि के रूप में पहुँचे। सरस्वती वन्दना और दीप प्रज्वलन के साथ कार्यक्रम की शुरुआत की गयी। मुख्य अतिथि डा० दिनेश सिंह ने अपने अभिभाषण में कहा कि जीवन में ज्ञान अर्जित करने की कोई समय सीमा नहीं है। आपके अन्दर यदि लग्न है तो आप पूरे जीवन-भर हर-पल कुछ ना कुछ नया सीख सकते हैं, नयी खोज कर सकते हैं। आपको ये बीत सदैव ध्यान रखनी होगी कि आप पूरे जीवन पर्यन्त एक विद्यार्थी ही हैं। बसरते आपके अन्दर कुछ नया करने की प्रबल जिज्ञासा होनी चाहिए। मुख्य अतिथि ने दुनिया के महान वैज्ञानिक का उदाहरण देते हुए कहा कि महान वैज्ञानिक न्यूटन बहुत ही गरीब परिवार से थे परन्तु उनके अन्दर कुछ नया करने की जिज्ञासा बहुत ही प्रबल थी। इसलिए उन्होंने बहुत से नये से नये अविष्कार किये। वैज्ञानिक डा० सी० वी० रमण और वैज्ञानिक अल्बर्ट आंईस्टीन का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि उनके अन्दर किसी भी बात को जानने की प्रबल जिज्ञासा होने के साथ-साथ अपने हाथों से स्वयं काम करने की जो चाहत थी। वो अपने आप में बहुत ही अद्भुत थी। और उसी की बदौलत उन्होंने नये से नये 50 अविष्कार करके दुनिया में नये कीर्तिमानों की स्थापना की। इसलिए हमें उन महान वैज्ञानिकों के जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए और नये से नये कीर्तिमानों की स्थापना करके भारत को फिर से दुनिया का अग्रणी राष्ट्र बनाना चाहिए। इसके लिये चाहे हमें कितना भी परिश्रम और संघर्ष करना पडे। सम्मानित अतिथि डा० नारायण कर एसएलसीसी देहली विश्वविद्यालय ने अपनी अभिव्यक्ति में कहा कि विभिन्न शैक्षणिक विषयों का अध्ययन करना क्या केवल पश्चिमी लोगों का विशेषाधिकार है। वे ज्ञान सृजन और प्रसार के विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर रहे होंगे, लेकिन हमें यह भी याद रखना चाहिए कि ज्ञान सृजन का हमारा रिकॉर्ड, अनुसंधान का हमारा रिकॉर्ड विभिन्न विद्याएँ अधिक गौरवशाली हैं। भारतीयों द्वारा उत्पादित धातुकर्म अत्यंत सर्वोच्च स्तर का था। अब, इस पर ज़ोर क्यों नहीं दिया जाना चाहिए? अब इस बात पर बल दिया जा रहा है कि वर्तमान में भी हम ज्ञान सृजन के क्षेत्र में उत्कृष्टता की उन ऊंचाइयों को अवश्य छू सकते हैं। और इसलिए, हमारा पाठ्यक्रम संशोधित करने की आवश्यकता है। चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी के पूर्व वाइस चांसलर डा० एन० के० तनेजा ने कहा कि हम मानव जाति के कल्याण की तलाश के उद्देश्य से ज्ञान के अपने दोहरे उद्देश्यों को प्राप्त करने में सक्षम होंगे। इसमें कोई संदेह नहीं है, व्यावहारिक दुनिया में लागू होने वाला ठोस सैद्धांतिक ज्ञान बहुत महत्वपूर्ण है। लेकिन हमारे जीवन का सिद्धांत, सर्वे भवन्ति सुखिना, सर्वे शांतिरामाय, सर्वे भद्राणि पश्चंतु, मां काशी दुपभाग भवे, वसुधैव कुटुंबकम।आत्म सर्व भूतेषु. ये वे सिद्धांत हैं जो मानव जाति को एक साथ रखते हैं और उभरते हुए सबसे गंभीर संघर्षों को हल करने के लिए महत्वपूर्ण दिशानिर्देश प्रदान करते हैं।गलगोटियास विश्वविद्यालय के वॉइस चॉसलर डा० के० मल्लिखार्जुन बाबू ने गणित के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आज जितने भी तकनीकी नवाचार, आयाम हैं। हर चीज़ का आधार गणित है। अगर हम इस खास तथ्य को नजरअंदाज करेंगे तो शायद हम ज्यादा योगदान नहीं दे पाएंगे। भारतीय दिमाग क्या है, भारतीय दिमाग एक बहुत विश्लेषणात्मक, बहुत अनुकूली, बहुत संवेदनशील और बहुत चिंतनशील है। गलगोटियास विश्वविद्यालय के सीईओ डा० ध्रुव गलगोटिया ने कार्यक्रम की सफलता के लिये सभी को शुभकामनाएँ दी और विद्या भारती उच्च शिक्षा संस्थान का कार्यक्रम में अभूतपूर्व सहयोग के लिये आभार व्यक्त किया। इस कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के कुल सचिव नितिन गौड और छात्र कल्याण के डीन प्रो० ए० के० जैन ने मुख्य अतिथि और अन्य अतिथियों को स्मृति चिन्ह प्रदान करके उनका स्वागत किया।
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