-->

महात्मा गांधी स्वाधीनता, सत्य एवं अहिंसा के प्रतीक रहे

महात्मा गांधी की पुण्यतिथि 30 जनवरी 2024 पर विशेष :-
“महात्मा गांधी स्वाधीनता, सत्य एवं अहिंसा के प्रतीक रहे”  भगवान बुद्ध के बाद विश्व में जिस महा मानव की सबसे अधिक प्रतिष्ठा और सम्मान की चर्चा हुई है वह नाम राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ही है, 2 अक्टूबर 1869 में पिता कर्मचंद मां पुतली बाई की संतान मोहन दास पर धर्मपारायण मां का प्रभाव पड़ा, उनका जन्म पोरबंदर में हुआ, उनके जीवन पर दो पुस्तकों का बहुत ही प्रभाव पड़ा, श्रवण कुमार की पितृ-भक्ति और सत्य हरिश्चंद का नाटक ने उनको कठिन परिस्थितियों में सत्य से डिगा न सके, मैट्रिक पास करने के बाद कानून की पढ़ाई करने लंदन गए, कुछ दिन तो वह लंदन में असहज महसूस कर पश्चिमी सभ्यता में अपने को ढालने की कोशिश की, लेकिन महापुरुषों के चरित्र के प्रभाव से वह सादा और सादगीपूर्ण जीवन ही सर्वश्रेष्ठ है, पढ़ाई में पूरा ध्यान लगाया, वह संकोची स्वभाव के थे, लेकिन चीजों को समझने और नैतिक आचरण से रहने की उनमें विलक्षण प्रतिभा थी, कानून की पढ़ाई करने के बाद आप स्वदेश लौट आये, और 1891 में मुंबई (बंबई) में वकालत शुरू की, और पोरबंदर के व्यवसायी अबदुला के मुकदमे की पैरवी के लिए 24 वर्ष की उम्र में दक्षिण अफ्रीका चले गए, वहाँ भी सत्ता द्वारा भारतीयों के प्रति अन्याय-अत्याचार का डटकर विरोध किया, उन्हे सम्मान जनक जीवन जीने का मार्ग प्रशस्त किया, जबकि शुरुवाती दिनों मे उनके साथ भी जुल्म, ज्यादती हुई लेकिन वह झुके नहीं, निरंतर लोगों के स्वाभिमान और सम्मान के लिए संघर्ष करते रहे, 1915 में गांधी जी स्वदेश लौट पूरे भारत का भ्रमण कर राजनैतिक, सामाजिक स्थिति का अध्ययन किया, लोगों में अंग्रेजी हुकूमत का इतना खौफ था कि पुलिस की लाल टोपी भी लोग देखकर अपने घरों में घुस जाते थे, गांधी ने उनमें भय और भ्रम को निकालने में सफलता प्राप्त की, तथा हजारों चंपारण के किसानों ने ब्रिटिश सरकार की किसानों की शोषण करने की प्रवृति के विरोध में स्टांप पेपर पर लिखकर चंपारण में नील की खेती के प्रत्यक्ष रूप से गवाह बने, 1914 के विश्वयुद्ध में भारतीयों के सहयोग से ब्रिटिश विजयी हुए थे तथा वादा किया था हम भारत को आजाद करेंगे, लेकिन उन्होने वादा खिलाफी की, महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन चलाया, जनता से आह्वान किया कि विदेशी सरकार से किसी तरह संबंध न रखते हुए विदेशी वस्त्रों और वस्तुओं का वहिष्कार करेंगे, जनता विदेशी सामान की होली जलाना अपना पुनीत कर्तव्य समझा, वकीलों ने वकालत, विद्यार्थियों ने विद्यालय का वहिष्कार किया, आंदोलन सफलता की चरम सीमा पर था, लेकिन चौरी-चौरा में हुई भयानक वीभत्स घटना के कारण उन्होने आंदोलन वापस ले लिया, उन्हे राजद्रोह में ब्रिटिश हुकूमत ने 6 साल की सजा सुना जेल भेज दिया, 1930 में गांधी जी ने नमक कानून को तोड़ने के लिए डांडी मार्च किया, देश में स्वतन्त्रता आंदोलन के प्रति जागृति आयी, जगह-जगह लोग नमक बना कानून का उलंघन किया, वहीं ब्रिटिश सरकार ने देश स्वतन्त्रता की मांग को दबाने के लिए “रौलट एक्ट” लागू कर दिया, गांधी जी अंग्रेजों के इस व्यवहार से आहत हुए, और पूरे देश में संघर्ष का बिगुल बजा दिया, तथा अंग्रेजों की नींद हराम कर दी, गोलमेज़ सम्मेलन में भी गांधी जी भारत की स्वतन्त्रता की हिमायत की, इसका परिणाम कांग्रेस पार्टी को मंत्रिमंडल में जगह मिली, द्वितीय विश्वयुद्ध में अग्रेजों ने भारतीयों और सेना का सहयोग चाहा, लेकिन महात्मा गांधी ने साफ इंकार कर दिया कि न हम एक पाई देंगे, न एक भाई देंगे, उन्होने कहा कि देश की आजादी उनका प्रथम लक्ष्य है, 8 अगस्त 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन की घोषणा कर दी, लोगों ने अपार कष्ट झेला, सारे नेताओं की गिरफ्तारी के बाद मोर्चा समाजवादी नवजवानों ने सँभाला और अंग्रेजी शासन की जड़ें हिला दी, विश्वयुद्ध में विजयी होने के बाद भी अंग्रेजों की हालत जर्जर और आर्थिक दृष्टि से काफी बदतर हो गयी थी, इसका परिणाम यह हुआ कि गिरफ्तार नेताओं को जेल से रिहा करना पड़ा, उधर सुभाष चंद बोस की आजाद हिन्द फौज सिंगापुर पूर्वी सीमा पर अंग्रेजों की सेना का वीरता और साहस के साथ मुक़ाबला कर रही थी, भारी धन-जन की हानि के कारण तथा भारतीयों में देश की स्वतन्त्रता के लिए गांधी जी के नेतृत्व में चलाये गये आंदोलन के कारण राजनैतिक जागृति पैदा हो गयी थी, इसका परिणाम यह हुआ कि 15 अगस्त 1947 को ब्रिटिश शासन की गुलामी से देशवासी मुक्त हुए, लेकिन अंग्रेजों ने चालाकी और कुटिलता की चाल चल भारत विभाजन करवाया, जिससे खून-खराबा और जन-धन की हानि हुई, महात्मा गांधी जी ने आमरण अनशन कर खून-खराबा रोकने में विजय प्राप्त किया, लेकिन दुखद परिणाम यह हुआ कि एक सिरफिरा अहंकारी, वर्चस्ववादी, सामंती प्रवृति वाले ने उन्हे तीन गोली मार कर काल-कलवित कर दिया, हे राम की आवाज के साथ उन्होने अंतिम सांस ली, गांधी जी की लोकप्रियता का इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि विश्व के सभी देश उनके सम्मान में झंडे झुका दिये, पंडित जवाहर लाल नेहरू ने कहा कि “जिंदगी की ज्योति बुझ गयी, हमें चारों ओर अंधेरा ही अंधेरा नजर आ रहा है” | 
        गांधी जी जाति, धर्म, भाषा, बोली या देश की विविधता में एकता के प्रबल पक्षधर थे, देशवासी सभी को अपना भाई समझ उनसे सद्भाव, भाईचारा, समता, समानता, सहयोग से मिलकर रहें, एक दूसरे से लड़-झगड़ कर हानि न पहुंचायेँ, गलफहमी को मिलकर आपसी सहयोग और समर्पण की भावना से दूर करें, भय, डर, नफरत, अहंकार से रहित प्रेम और ज्ञान का प्रकाश निरंतर फैलाएँ, सत्य, अहिंसा, सादगी, मितव्यता ही उनका मूलमंत्र था, महिलाओं को समान अधिकार दिलाने और सभी धर्मों का सम्मान करना परम कर्तव्य समझते थे, समाज के अंतिम व्यक्ति के जीवन में प्रकाश की किरण फैले, उस व्यवस्था के पक्षधर रहे, गांधी जी ने अनेकों रचनात्मक कार्य जैसे दलितों, उपेक्षितों, प्रताड़ितों के जीवन में नया सबेरा आये, छुवाछूत के निवारण, हिन्दू-मुस्लिम एकता, महिलाओं के जीवन में शिक्षा, ज्ञान द्वारा उत्थान तथा स्वदेशी और स्वावलंबन के प्रचार-प्रसार में जीवन लगाया, वैष्णव जन तो तैने कहिये, जो पीर पराई जाणे” जो दूसरों के दुख-दर्द को समझता है और निदान करने के लिए तैयार रहता है, वही मानव श्रेष्ठ है, हम उनकी पुण्यतिथि 30 जनवरी पर उन्हे स्मरण कर उनके विचार से प्रेरणा ले चलने का प्रयत्न करेंगे, अमेरिकी पत्रकार लुई फिसर को अद्धृत करना आवश्यक है, उन्होने कहा है कि “महात्मा गांधी 21 सदी के सबसे बड़े इंसान है”, उनका मानना था कि “भारत अपने मूल स्वरूप मे कर्मभूमि है, भोगभूमि नहीं”, लेकिन आज हमारे पथ-प्रदर्शकों के आचरण में उपरोक्त कथन का उल्टा ही परिलक्षित हो रहा है|
                                                              लेखक : राम दुलार यादव शिक्षाविद समाजवादी विचारक

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ