ग्रेटर नोएडा। गौ संरक्षण ,संवर्धन,अनुसंधान के वैज्ञानिक आधार को छोड़कर आज के दिन गोबर को गोवर्धन पूजा के नाम पर पूजा जा रहा है दुर्भाग्य है कि जिस देश द्वारा दुनिया को प्रथम पशु चिकित्सक शालिहोत्र के रूप में दिया गया ,जब पश्चिमी दुनिया में मनुष्य की चिकित्सा नहीं होती थी उससे हजारों लाखों वर्ष पहले हमारे देश में पशु व उनके रोगों चिक्तिसा होती थी उन पर अनुसंधान होता था...... पशुओं के लिए अलग से पशु आयुर्वेद पर आधारित पशु चिकित्सा प्रणाली व्यापक रूप से प्रचलित थी| पांच पांडवों में से एक माद्री के पुत्र सहदेव vetnary biogenties अनुवांशिकी विद्या के विशेषज्ञ ,उत्तम विद्वान थे| युद्ध में काम आने वाले उत्तम घोड़ों की नस्ल उन्होंने तैयार की थी, राजा विराट के यहां अज्ञातवास में राजा विराट की दुर्बल बीमार गायों को कुरुवंश की गायों के समान है हष्ट पुष्ट दूध देने वाली बना दिया था ।ऐतिहासिक ग्रन्थ महाभारत के विराट पर्व में इसका व्यापक उल्लेख है। पशु नस्ल सुधार पर उल्लेखनीय कार्य उन्होंने किया था। हमारे पूर्वज कितने महा पराक्रमी ज्ञानी थे।
परमात्मा ने इस भारत भूमि में जैव विविधता के मामले में विशेष कृपा की है देशी गोवंश की जितनी विविधता इस भूमि पर मिलती है उतनी विश्व में कहीं देखने को नहीं मिलती।
देश में 100 से अधिक सर्वाधिक दूध देने वाली गाय की नस्ल थी जिनमें साहीवाल, थारपारकर ,लाल सिंधी, कांकरेज, राठी, गंगातीरी आदि नस्ल थी । जो आज घटकर 1 दर्जन से कम रह गई है। यह चिंता जनक है ऋषि मुनियों के देश में जिसमें गोभिल नाम के ऋषि भी हुए हैं जिन्होंने गोभिल ग्रह्य सूत्र रचा है ।प्रत्येक ग्रहस्थ को गोपालन की विधियो का निर्देश दिया है आखिर गोवंश की वृद्धि कैसे हो ऐसे सूत्र उन्होंने रचे गौशाला का प्रबंध कैसे हो यह सूत्र रूप से उन्होंने निर्देशित किया है। अथर्ववेद के नवम कांड का चौथा सुक्त तो गोवंश की उन्नति कृषि में उसके उपयोग से ही संबंधित है। इस सुक्त के चौथे मंत्र में बैल के विषय में कहा गया है।
' पिता वत्सानाम् पतिरघ्न्याम' उसे उत्तम बछड़े बछड़ियो का पिता और गो का पति बतलाते हुए आज्यं बिभर्ति घृतमस्य रेत घी दूध के घड़े भरने वाला कहा गया है। इतना ही नहीं यह सुक्त यह भी निर्देशित करता है जब किसी घर में ग्राम या नगर में उत्तम बछड़ा उत्पन्न हो जाए तो उसे ग्रामीण नगर की उत्तम गौ से उत्तम संतान उत्पन्न करने के लिए सांड के रूप में राष्ट्र के निमित्त दान कर देना चाहिए। आज हमारी उपेक्षा से गौ माता सड़कों पर धक्के खा रही है नर गौ वंश बेहाल है वाहनों की टक्कर से चोटिल हो जाता है हम गोबर को पूज कर अपनी भावी पीढ़ी को क्या संदेश दे रहे हैं?
आज गोवर्धन पूजा के पर्व के दिन वैदिक भारत में सघन पशु चिकित्सा शिविर आयोजित किया जाते थे। हमारे महर्षि पशु चिकित्सक अपने शोध कार्यों को जनता को समर्पित करते थे। आज उनकी आत्मा रो रही होगी गोबर पूजा को देख कर. हमने तो अफ़्रीकी आदिवासियों को भी पछाड़ दिया। कितना गोबर घुस गया है हम ऋषियों के वंशजो के दिमाग में जो हम गोबर को पूज रहे हैं,गाय पालन के स्थान पर।
इतना ही नहीं योगीराज सुदर्शन चक्रधारी श्री कृष्ण से गोबर पूजा को जोड़ दिया. जो महाभारत काल के सबसे बड़े गोपालक, गौ रक्षक थे. गोवर्धन पूजा का सच्चा अर्थ यही है कि गोवंश का संरक्षण संवर्धन करें जिससे गोवंश की वृद्धि होती है अर्थात उत्तम नस्ल के सांड का भी घर- घर गांव गांव में पालन हो। हम बुद्धिहीन पूज रहे हैं गोबर को गोबर का अलग उपयोग प्रयोग है उसे उसी रूप में प्रयोग में लावे लेकिन इस वैदिक पर्व को उसके सच्चे स्वरूप में मनाए तब जाकर हमारी यह पूजा सार्थक हो हो पाएगी एक देशी गोवंश की गौमाता के लालन-पालन का जिम्मा ले| प्रथम तो घर में ही गोपालन को प्राथमिकता देनी चाहिए घर में यदि स्थानाभाव हो व्यवस्था नहीं बन सके तो किसी निकट गौशाला में एक गौ या नर पशु के पूरे साल के चारे दाने पानी का खर्चा उठाना चाहिए वर्ष भर का दान देकर।
लेखक आर्य सागर खारी ✍
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