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यज्ञीय संस्कृति के प्रचार पुनर्स्थापना की दृष्टि से सार्थकता की ओर अग्रसर दुजाना का दुर्लभ शारद यज्ञ

मनोज तोमर ब्यूरो चीफ दैनिक फ्यूचर लाइन टाईम्स गौतमबुद्धनगर।
दादरी। जिला गौतमबुद्धनगर के वरिष्ठ आर्य समाजी आर्य सागर खारी ने बताया कि अखिल भारतीय राजार्य सभा के संरक्षण में व आर्य समाज दुजाना के तत्वाधान में आयोजित 9 दिवसीय शारद दुर्लभ यज्ञ  दर सत्र भव्यतर  हो रहा है। दिन प्रतिदिन बाल युवा वृद्ध महिला पुरुष की सहभागिता इस यज्ञ में बढ़ती जा रही है। उल्लेखनीय होगा शरद ऋतु में नवरात्रि में आयोजित किया जा रहे इस यज्ञ में लगभग 9 फुट व्यास की गोलाकार शंकवाकार यज्ञ वेदी तैयार की गई है। पूर्वाभिमुख यज्ञमान का आसान तैयार किया गया है। यज्ञ के प्रत्येक सत्र के लिए आचार्य पुरोहित वेदपाठी यज्ञमान नियत है। अनुष्ठान के सातवें दिन आज रात्रिकालीन   कालीन सत्र में कार्यक्रम प्रभारी एवं फ्यूचर लाईन टाइम्स दैनिक अखबार के संपादक एडवोकेट ओमवीर आर्य और धर्मपत्नी श्रीमती उर्मिला आर्या यज्ञमान रही। यज्ञ के आचार्य सत्यव्रत जी रहे। कार्यक्रम का संचालन आर्य प्रतिनिधि सभा गौतम बुद्ध नगर की यशस्वी अध्यक्ष महेंद्र आर्य ने किया।  कुलदीप विद्यार्थी जी बिजनौर  का भजन उपदेश हुआ। कुलदीप विद्यार्थी विगत तीन दिवसों से  ओजस्वी भजन उपदेश कर रहे हैं उनके भजन उपदेश  का विषय परिवारों में होता सामाजिक विघटन है। कुलदीप विद्यार्थी जी ने अपने मधुर भजन उपदेश से समा  बांध दिया है । दुजाना ग्राम के नवयुवक विशेष तौर पर उनके भजन उपदेश से प्रभावित हैं। उन्होंने कुलदीप विद्यार्थी जी का कार्यक्रम के उपरांत एक संगीतमय प्रस्तुति के लिए कार्यक्रम निर्धारित किया है।शारद दुर्लभ यज्ञ के अनुष्ठान के आयोजन का  एकमात्र  उद्देश्य  इस ऋतु में  रोगों के प्रकोप से मानव ही नहीं जीव मात्र  हो बचाने का एक दिव्य संकल्प है। यज्ञ की रामबाण रोग नाशक पर्यावरण पुष्टिकारक थेरेपी आध्यात्मिक कर्मकांड कैसे घर-घर तक प्रचारित हो स्थापित हो यह भी यह इसका उद्देश्य है। महर्षि दयानंद की ग्रंथों  को हम पढ़ते हैं तो महर्षि दयानंद का आग्रह यज्ञों के प्रचार को लेकर भी था। वैदिक काल की तरह महर्षि दयानंद चाहते थे भारत के  घर-घर गांव-गांव अधिक से अधिक होम  अग्निहोत्र होने चाहिए। महर्षि दयानंद की वेदों के निष्कर्ष के आधार पर यह मान्यता थी अग्निहोत्र यज्ञ आदि  से केवल वायु जल ही शुद्ध नही होता है साथ ही साथ मनुष्य को आरोग्यता की प्राप्ति होती है। साथ ही वेदों  मंत्रो   के यज्ञों में विनियोग से वेदों की रक्षा भी होती है ईश्वर की उपासना भी होती है। यज्ञ कर्ता पर ईश्वर प्रसन्न होता है ।पांच महायज्ञ  ग्रंथ में ऋषि ने अग्निहोत्र के मंत्रो  का ईश्वर परक ही अर्थ किया है। महर्षि दयानंद कहते थे यज्ञ से सुगंधित शुद्ध की गई वायु से आरोग्यता  बल बुद्धि वीर्य बढ़ता है।
इन्हीं उत्तम उत्तम यज्ञ के परियोजन लाभो को जानकर शारद  दुर्लभ यज्ञ अनुष्ठान किया जा रहा है अधिक से अधिक इस यज्ञ अनुष्ठान में यज्ञमान,  होता बनकर,तन मन धन से सहयोगी के रूप में सहभागी होकर अपने मानव जीवन को धन्य बनाएं। यजुर्वेद के भाष्य में ऋषि दयानंद अनेक मंत्रो  का अर्थ करते हुए कहते हैं जो यज्ञ को त्याग  देता है ईश्वर उस मनुष्य को त्याग देता है। ईश्वर की कृपा का पात्र बनने के लिए हमें बड़े-बड़े यज्ञ   करने व कराने चाहिए। ऐसे दुर्लभ अनुष्ठान में सहयोगी बनना चाहिए। वैदिक संस्कृति के आदर्श मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम, योगेश्वर श्री कृष्ण आदि हमारे महापुरूषों ने संकट काल में भी यज्ञ जप दान आदि उत्तम कर्मों को नहीं छोड़ा   वह सभी यज्ञ करते ,कराते थे।

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