मनोज तोमर ब्यूरो चीफ दैनिक फ्यूचर लाइन टाईम्स गौतम बुद्ध नगर। गुर्जर समाज की शान रहे कर्नल की आज है जयंती, देशभर में किए जा रहे हैं याद
Kirori Singh Bainsla Jayanti : गुर्जर समाज के आन बान और शान और गुर्जर आंदोलन के पुरोधा कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला की आज जन्म जयंती है। जयंती पर वह पूरे देश में याद किए जा रहे है
नोएडा।
कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला का जन्म और शिक्षा
कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला का जन्म राजस्थान के करौली जिले के मुंडिया गांव में 12 सितंबर 1939 के दिन हुआ था। शुरुआत की शिक्षा इन्होने अपने गाँव में ही की फिर आगे की पढाई भरतपुर और जयपुर के महाराजा कॉलेज में पूरी की। कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला का परिवार
कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला के पिता का नाम बच्चू सिंह बैसला है। इनकी पत्नी का नाम रेशम देवी गुर्जर था, जिनकी 1996 में मृत्यु हो गई थी। इनकी पत्नी 1994 में ग्राम पंचायत मुड़िया की सरपंच बनी थी। किरोड़ी सिंह बैंसला की शादी बचपन में ही हो गई थी। इनके 4 संतान है, जिसमें एक बेटी और 3 बेटे है। बेटी रेवेन्यु सर्विस में और दो बेटे सेना में हैं और एक बेटा प्राइवेट कंपनी में कार्यरत है।
कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला के करियर की शुरुआत
बचपन से ही किरोड़ी सिंह को पढ़ने लिखने का शौक था, इसलिए उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने शिक्षक के तौर पर काम किया। लेकिन पिता के भारतीय फौज में होने के कारण उनका रुझान फौज के प्रति कुछ ज्यादा ही था। इसलिए उन्होंने शिक्षक के नौकरी छोड़कर सेना में जाने का पक्का मन बन लिया और आखिर में भारतीय सेना में भर्ती हो गए।
सिपाही से कर्नल बनने तक का सफर
सेना में भर्ती होने के बाद उन्होंने भारत के दो बड़े युद्ध 1962 के भारत-चीन और 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में हिस्सा लिया। पाकिस्तान के साथ युद्ध के दौरान उन्हें युद्धबंदी बना लिए।
किरोड़ी सिंह बड़े जांबाज़ सिपाही थे। उन्होंने बड़ी बहादुरी के साथ सेना में काम किया, जिसके चलते उन्हें कर्नल के ओहदे से नवाजा गया। उनकी बहादुरी के कारण उन्हें साथी कमांडो और सीनियर्स उन्हें ‘जिब्राल्टर का चट्टान’ और ‘इंडियन रेम्बो’ के उपनाम से बुलाते थे।
कर्नल से गुर्जर समाज के नेता तक का सफर
सेना से रिटाटर होने के बाद किरोरी सिंह राजस्थान वापस आ गए। उन्होंने देखा की राजस्थान के ही मीणा समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया गया और सरकारी नौकरी में भी उन्हें स्थान दिया गया, लेकिन सरकार ने गुर्जर समाज के लिए कोई कदम नही उठाये। गुर्जर समाज के लोगों के लिए उन्होंने लड़ना शुरू किया। गुर्जर समाज के हक़ के लिए उन्होंने कई आंदोलन किये जैसे की रेल रोको आंदोलन, रेल की पटरी के बीच धरना करना।
किरोरी सिंह का नाम तब प्रसिध्ध हुआ जब उन्होंने 3 सितंबर 2006 के दिन अपने समर्थको के साथ करौली के हिण्डोन क़सबे में दिल्ली-मुंबई रेल मार्ग को पहली बार रोका और सरकार से गुर्जरों को ओबीसी कोटे के तहत 5 प्रतिशत आरक्षण की मांग की।
किरोरी सिंह का राजनीती के तरफ कदम
किरोरी सिंह भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर टोंक-सवाई माधोपुर लोकसभा से सीट से पहली बार चुनाव लड़े लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा। उसे बाद उन्होंने बीजेपी को छोड़ दी लेकिन वह साल 2019 में फिर से लोकसभा चुनाव दौरान बीजेपी में शामिल हो गए।
बचपन में उनकी अच्छी आदतों के चलते माता-पिता ने उन्हें करोड़ों में से एक नाम दिया – किरोड़ी। गुर्जर जाति के साथ-साथ वो चार अन्य छोटी जातियों के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण की मांग की थी। किरोड़ी सिंह सिर पर चटक रंग की पगड़ी और गवई धोती पहनते थे, 2008 में गुर्जर आरक्षण के कारण तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को अपनी सरकार गवानी पड़ी थी।
किरोड़ी सिंह दो बार कोविड-19 पॉजिटिव हो चुके थे। कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला का 82 वर्ष की उम्र में 31 मार्च 2022 को निधन हो गया था।
कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला कौन थे?
कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला गुर्जर समाज के नेता थे, जिन्होंने सरकार से गुर्जरों को ओबीसी कोटे के तहत 5 प्रतिशत आरक्षण की मांग की थी और उसके लिए गुर्जर आरक्षण आन्दोलन भी चलाये थे। कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला के कितने संतान है? कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला के चार सन्तान है, जिस में दो बेटियां और दो बेटे है।
कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला एक ऐसे नेता थे, जिसकी वजह से सरकार की धड़कने बढ़ जाती थी। देश की बेटियों को शिक्षा देने के लिए वो हमेशा सबको आग्रह करते रहते थे। अपनी अंतिम सांस तक उन्होंने गुर्जर आरक्षण के लिये संघर्ष किया।
कर्नल करोड़ी सिंह बैंसला को श्रद्धांजलि की अर्पित
गुर्जर समाज के आन बान और शान और गुर्जर आंदोलन के पुरोधा कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला की आज जन्म जयंती है। जयंती पर वह पूरे देश में याद किए जा रहे हैं। गुर्जर समाज की ओर से कार्यक्रमों का आयोजन कर गुर्जर सिंह बैंसला को श्रद्धांजलि अर्पित की जा रही है। मंगलवार की सुबह से ही सोशल मीडिया पर उन्हें पुष्पांजलि अर्पित की जा रही है तथा यूजर्स उनके द्वारा समाजहित में किए गए कार्यों को याद कर रहे हैं।
सोशल मीडिया पर दी जा रही श्रद्धांजलि
एक्स (ट्विटर) समेत तमाम सोशल मीडिया साइट पर कर्नल बैंसला को श्रद्धांजलि अर्पित की जा रही है। गुर्जर वारियर्स एक्स एकाउंट पर हजारों यूजर्स ‘गुर्जर समाज चेतना दिवस’ लिखकर श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं। एक यूजर्स रविंद्र भाटी गुर्जर लिखते हैं कि, ”कर्नल तेरी नेक कमाई तूने सोती कोम जगाई , कर्नल साहब का ये सपना हम पुरा करेंगे कश्मीर से कन्याकुमारी तक समाज को एक सूत्र में पिरोकर समाज की एकता की मिशाल कायम करेंगे आपके अधूरे सपने को ,और जो मशाल आपने जगाई है उससे बुझने नही देंगे आपके दिखाए रास्ते पर चलेंगे”
कौन थे कर्नल किरौरी सिंह बैंसला ?
12 सितंबर 1940 को राजस्थान के करोली जिले के गांव मुंडिया में बच्चू सिंह के घर जन्मे कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला सेना में कर्नल थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही हुई, जिसके बाद उन्होंने भरतपुर और जयपुर के महाराजा कॉलेज में पढ़ाई की। वे बचपन से ही काफी कुशाग्र थे इसलिए माता-पिता ने उन्हें करोड़ों में से एक नाम दिया किरोड़ी। वे जाति से बैंसला हैं यानि गुर्जर। बचपन में काफी कम उम्र में ही उनकी शादी हो गई थी। बैंसला के तीन पुत्र और एक पुत्री है। बड़े पुत्र दौलत सिंह सेना में कर्नल पद से सेवानिवृत हो गए। दूसरे पुत्र जय सिंह मेजर जनरल तीसरे पुत्र विजय बैंसला सामाजिक संगठनों से जुड़े हुए हैं। उनकी पुत्री सुनीता राजस्व सेवा की अधिकारी है। उनकी पत्नी का निधन हो चुका है। गुर्जर समुदाय से आने वाले किरोडी सिंह ने अपने कैरियर की शुरुआत शिक्षक के तौर पर ही थी लेकिन पिता के फौज में होने के कारण उनका रुझान फौज की तरफ थी। उन्होंने भी सेना में जाने का मन बना लिया। वह सेना में सिपाही के रूप में भर्ती हो गए।
कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला का सैन्य सफर
कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला ने 1962 के भारत-चीन और 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में भी अपनी बहादुरी का जौहर दिखाया। वे राजपूताना राइफल्स में थे और पाकिस्तान के युद्धबंदी भी रहे। उनके सीनियर्स उन्हें ‘जिब्राल्टर का चट्टान’ कहते थे और साथी कमांडो ‘इंडियन रेम्बो’ कहा करते थे। उनकी बहादुरी और कुशाग्रता का ही नतीजा था कि वे सेना में एक मामूली सिपाही से तरक्की पाते हुए कर्नल के रैंक तक पहुंचे और फिर रिटायर हुए।
गुर्जर आंदोलन के पुरोधा थे कर्नल
देश की सेवा के बाद कर्नल किरोडी सिंह बैंसला ने अपने जीवन में दूसरी बड़ी लड़ाई गुर्जर समाज के लिए लड़ी। सार्वजनिक जीवन में आने के बाद उन्होंने गुर्जर आरक्षण समिति की अगुवाई की। कर्नल बैंसला ने 2004 से गुर्जर समाज को अलग से आरक्षण दिए जाने की मांग करते हुए आरक्षण आंदोलन की कमान अपने हाथ में ली थी। आरक्षण के लिए वह समाज के लोगों के साथ कई दिनों तक ट्रेन की पटरी और सड़क पर बैठे रहे। उनके आंदोलन के बाद राजस्थान की तत्कालीन वसुंधरा राजे की सरकार ने कमेटी बनाई, जिसने गुर्जरों की हालत पर रिपोर्ट तैयार की। लंबे चले आरक्षण आंदोलन के बाद गुर्जर सहित पांच जातियों को अन्य पिछड़ा वर्ग के साथ पहले स्पेशल बैक वर्ड क्लास और फिर मोस्ट बैक वर्ड क्लास (एमबीसी) में अलग से आरक्षण मिला।
इसके बाद वह गुर्जरों को सरकारी नौकरी में आरक्षण देने के लिए रेल और सड़क मार्ग जाम करने लगे। आरक्षण के लिए उनका आंदोलन इतना तेज़ चला कि अदालत को बीच में हस्तक्षेप करना पड़ा। 2008 में गुर्जर आरक्षण के दौरान हुई पुलिस फायरिंग में 70 लोगों की जान चली गई थी। आरक्षण के लिए गुर्जर समाज के लोग कई माह तक रेलवे ट्रेक और हाईवे जाम करके बैठे रहे थे।देशसेवा के बाद बैंसला ने गुर्जर समुदाय के हक के लिए लंबी लड़ाई लड़ी थी और वो राजस्थान के गुर्जरों के लिए अलग से एमबीसी यानी अन्य पिछड़ा वर्ग के तहत गुर्जरों को सरकारी नौकरियों में 5 फीसदी आरक्षण दिलाने में कामयाब भी रहे थे। वो गुर्जर आरक्षण के पुरोधा कहलाते थे।
किरोड़ी सिंह बैंसला और राजनीति
गुर्जर आंदोलन के बाद बैंसला ने राजनीति में प्रवेश किया। साल 2019 में बैंसला और उनके बेटे भाजपा में शामिल हुए थे। बैंसला भाजपा के टिकट पर टोंक- सवाई माधोपुर लोकसभा से सीट से चुनाव लड़े लेकिन वो कांग्रेस के नमोनारायण मीणा से चुनाव हार गए थे।
0 टिप्पणियाँ