मनोज तोमर दैनिक फ्यूचर लाइन टाईम्स ब्यूरो चीफ गौतमबुद्धनगर
गौतमबुद्धनगर।ग्रेटर नोएडा: दादरी एनटीपीसी से प्रभावित किसानों ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने खून से लिखकर पत्र भेजा है। किसानों को कहना है कि गौतमबुद्ध नगर के जनप्रतिनिधि, ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण, जिला प्रशासन और अफसरों से वो काफी प्रताड़ित हो चुके हैं। अपना दुख दर्द किसानों ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखकर साझा किया है। किसानों का कहना है, "वह रोजाना मर रहे हैं। इससे अच्छा उनको एक बार मौत दे दी जाए।" किसानों ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अलावा राहुल गांधी और अखिलेश यादव को भी खून से पत्र लिखा है। किसानों ने अपने खून से पीएम नरेंद्र मोदी को छुट्टी भेजी है। जिसमें अपना दुख-दर्द लिखा है। केवल पुरुष ही नहीं बल्कि काफी महिलाओं ने भी चिट्ठी लिखने के लिए अपना खून दिया है। किसानों की खून देने के लिए।"कोई किसानों की तरफ देखने वाला नहीं" भारतीय किसान परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुखबीर खलीफा का कहना है, "पिछले 11 महीना से किसानों का प्रदर्शन चल रहा है। दादरी में स्थित एनटीपीसी केंद्र के बाहर अपनी मांगों को लेकर किसान धरने पर बैठे हुए हैं। स्थानीय जनप्रतिनिधियों से लेकर लखनऊ तक मदद की गुहार लगाई जा चुकी है, लेकिन सब आंखों पर पट्टी बांधकर बैठे हुए हैं। कोई अफसर किसानों की तरफ देखने को तैयार तक नहीं है। जिला प्रशासन और ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण से काफी बार वार्तालाप करने का प्रयास किया गया, लेकिन किसानों का नाम सुनकर सब आंखें बंद कर लेते हैं। विधायक और संसद ने मदद करने का आश्वासन दिया था, लेकिन उसके बावजूद कोई एक्शन नहीं लिया गया, सब गायब है। हमारी समस्या पर समाधान करने के लिए कोई तैयार नहीं है। यह किसानों का शोषण नहीं है तो और क्या है? किसान रोजाना मर रहे हैं। इससे अच्छा होगा कि हमें मौत दे दी जाए।क्या है किसानों की मांग ग्रेटर नोएडा में दादरी के पास नेशनल थर्मल पावर कारपोरेशन का विद्युत उत्पादन केंद्र है। यह संयंत्र लगाने के लिए सरकार ने करीब 35 वर्ष पूर्व इलाके के 23 गांवों में भूमि का अधिग्रहण किया था। किसानों का कहना है कि उस वक्त भूमि अधिग्रहण की एवज में मिलने वाला मुआवजा समान नहीं था। मतलब, किसी गांव में कम और किसी गांव में ज्यादा मुआवजे का भुगतान किया गया। तभी से किसान समान मुआवजे की मांग कर रहे हैं। इसके अलावा एनटीपीसी में नौकरियां और इन गांवों के विकास की मांग भी किसान करते रहे हैं।
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