गौतमबुद्धनगर।मैंने यानी कि अभिषेक सक्सैना पुत्र श्री राजकुमार सक्सैना निवासी न्यू आर के पुरम, अलीगढ़ उत्तर प्रदेश ने दिसंबर 2022 से लेकर जनवरी 2023 तक उग्र स्वभाव को अपनी शक्ति बनाकर बहुत से असमान्य एवं समझ से परे लगने वाले कार्य किए। जिनके परिणाम स्वरूप थाना सासनी गेट, अलीगढ़ के पुलिस प्रशासन ने मुझे मेरे घर से धारा 151, 107, 116 के तहत गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तारी वाले दिन ही बिना जेल जाए जमानत मिलने की दशा में भी मैंने स्वेच्छा से जेल जाना स्वीकार किया। क्यूंकि मुझे जेल जाकर वो सभी अनुभव लेने थे जो कि बलिदानी भगत सिंह जैसे माँ भारती के वीर सपूतों ने अंग्रेजों की गुलामी के शासनकाल से भारतवर्ष को स्वतंत्र कराने के लिए जेल जाकर किए था। दिनाँक 01, 02 और 03 फरवरी 2023 को 03 दिन तक एक ही कपड़ों में बिना नहाए धोए, तुलसी माला धारण करने वाला, प्याज और लहसुन तक ना खाने वाला मैं यानि अभिषेक सक्सैना जिसे सब कृष्णभक्त कहते थे खाली जेब अलीगढ़ जेल में रहा। मेरे परिवार ने और विशेषकर मेरे पिता श्री राजकुमार सक्सैना ने मेरे केस से संबंधित प्रशासनिक अधिकारियों आदि से मिन्नतें करके बमुश्किल मुझे 04 फरवरी 2023 को नगर मजिस्ट्रेट, अलीगढ़ से जमानत दिलवाकर जेल से रिहाई दिलवायी। 03 दिन अलीगढ़ जेल में रहने के बाद मेरे जीवन में सबकुछ परिवर्तित हो गया था। कौन मेरा अपना है और कौन पराया है एवं भविष्य में मुझे अपने और अपने परिवार के हित में क्या क्या निर्णय लेने हैं ये सब मुझे अब समझ आ चुका था। जेल से बाहर आने के बाद मैंने सबसे मिलना जुलना लगभग बंद ही कर दिया था क्यूंकि मेरे परिवार को लगता था कि मुझ पर किसी भूत प्रेत का साया है और मैं पुनः कोई उग्रता पूर्ण कार्य करके उन्हें किसी बड़ी मुसीबत में डाल सकता हूँ। परंतु वास्तविकता यह है कि मैं हमारे भारतवर्ष के युग पुरूषों एवं महापुरुषों के बारे में पढ़कर उनसे अद्भूत प्रेरणा ले चुका हूँ और एक समाज सुधारक के रूप में भारतवर्ष को विश्वगुरु के रूप में पुनः स्थापित करने के लिए अपना योगदान देने के पथ पर चल पड़ा हूँ। मेरे जीवन के उद्देश्य सामान्य लोगों से भिन्न हैं इसलिए सामान्य लोगों को मेरे विचार एवं मेरे सभी कार्य समझ आयें ऐसा सम्भव नहीं है। क्यूंकि एक कहावत तो आपने सुनी ही होगी कि हीरे की परख केवल एक जौहरी को ही होती है ना कि किसी सुनार या लोहार को। मेरी आर्थिक स्थिति इतने लंबे समय में बहुत ही दयनीय हो चुकी थी लेकिन फिर भी मैंने हमारी संस्था "सनातन प्रतिभा फाउंडेशन" में निःशुल्क श्रीमद्भगवद्गीता वितरण के लिए आने वाले दान को छुआ तक नहीं क्यूंकि वो धन मेरे निजी खर्चों के लिए नहीं बल्कि श्रीमद्भगवद्गीता के ज्ञान को सभी सनातनियों तक पहुंचाने के लिए पुण्यात्माओं द्वारा दिया जाता है। स्वाभिमानी होने के कारण इतने दुःखद समय में भी मैंने हार स्वीकार नहीं की और 7 महीने तक शांत रहकर मैंने निरंतर आत्ममंथन किया, चिंतन किया। साथ ही श्रीमद्भगवद्गीता के दिव्य ज्ञान को मैंने अपने जीवन में सदैव के लिए उतार लिया और आज एक आदर्श जीवन जीने की ओर चल पड़ा हूँ। मुझे अकल्पनीय परिश्रम करता देखकर जो लोग मुझसे प्रेम करते हैं वो आज बहुत प्रसन्न हैं और चाहते हैं कि मैं निरंतर ऐसे ही उत्कृष्ट कार्य करता रहूं। मेरे लिए हास्यास्पद है परंतु समाज सुधारक की भूमिका में मेरे वर्तमान स्वरूप को देखकर सामान्यजन आज एक बार पुनः अचंभित नजर आते हैं।
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