गाजियाबाद, सुभाष युवा मोर्चा के संस्थापक सतेन्द्र यादव ने दिनांक 3 जून 1947की शाम जब गाँधी को ये खबर मिली की कांग्रेस के नेता नेहरु पटेल और कृपलानी मुस्लिम लीग के जिन्ना लियाकत और नवाब निश्तर और सिखों के प्रतिनिधि सरदार बलदेव सिंह ने भारत के विभाजन को स्वीकार कर लिया है। इतिहासकार लेपियर्स और कोलिन्स ने लिखा है"गाँधी के व्यथित चेहरे पर उदासी के बादल छा गये उन्हे बताने वाले ने जैसे ही अपनी बात पुरी की गाँधी जी ने कहा ईश्वर उनकी रक्षा करे उन्हे सद्बुद्धी दे।" इस दिन भारत स्वतंत्रता अधिनियम हमारे नेताओं ने स्वीकार किया था जिसमे देश का विभाजन और रियासतों को स्वतंत्र रहने या भारत पाकिस्तान में मिलने की छूट दी गयी थी। इससे एक दिन पहले 2 जून को विभाजन के सबसे बड़े रणनीतिकार mauntbeten ने इन नेताओं के सामने ये प्रस्ताव रखा ।क्योंकि जिन्ना अब तक विभाजन के लिए बहुत जोर दे रहे थे 16 अगस्त 46 को उन्के सीधी कार्यवाही(direct action)के कारण नौओखाली मे 5000 हजार हिन्दू कत्ल कर दिये गये थे ।जिसके बाद बडे पैमाने पर दंगे हो रहे थे।2 सितंबर 46 को नेहरु के नेतृत्व में अन्तरिम सरकार बनी पहले लीग इसमे शामिल नहीं हुई बाद में शामिल होकर सरकार को अस्थिर करने की पुरी कोशिश की जिसके बारे में सरदार पटेल ने कहा था लगभग एक साल के प्रशासनीक अनुभव ने बता दिय़ा है कि हम विनाश की तरफ आगे बढ रहे हैं। पटेल नेहरु ने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया अनमने मन से सरदार बलदेव सिंह ने भी इसे स्वीकार कर लिया अब जिन्ना फँस गये जो अबतक ये कहते थे मैं ही मुसलिम लीग हूँ जो चाहूंगा लीग को मानना पडेगा कहने लगे मैं अकेला तो पार्टी नही हूँ। mautbeten ने आधी रात तक सबको अपनी सहमति देने को कहकर बैठक समापत कर दी, इसके बाद जिन्ना 2 और 3 जून की आधी रात वायसराय के पास पहुँचे और वही बात दोहराने लगे पार्टी से सहमती लेने में कई दिन लग जायेंगे। अब mauntbeten ने जिन्ना को धमकाया की mr जिन्ना मैं इस महनत को बर्बाद नही होने दूंगा अगर आप नही माने तो आप अपने पाकिस्तान से हमेशा के लिये हाथ धो बैठेंगे मैं आपके लिये कुछ नही कर पाऊँगा। बाद में वायसराय ने ये कहकर बैठक खत्म कर दी की कल मै बोलने की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले लूंगा आपकी तरफ विभाजन की सहमती के लिये देखूँगा आप बस सर हिला देना। इससे पहले वायसराय गान्धी जी को भी ये कहकर धमका चुका था, गाँधी आज कांग्रेस आपके नही मेरे साथ है, 3 जून को वैसा ही हुआ वायसराय ने बोलने की सारी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली और कहा कांग्रेस ने प्रस्ताव स्वीकार कर लिया है सिखों ने कुछ शन्काओं के साथ बात मान ली है।मैं उनकी शंकाओ का समाधान कर दूंगा ये कहकर उसने जिन्ना की तरफ देखा यहाँ उसे कुछ पता नही था जिन्ना क्या कर बैठे ।इतिहासकार ने लिखा है सदियों से भी लम्बे उस एक क्षण mauntbeten जिन्ना के भावहीन निरीह चेहरे को घुरता रहा बहुत आना कानी करके जिन्ना ने मुश्किल से आधा इन्च ठोडी हिलाकर विभाजन को स्वीकार कर लिया। इसके बाद शाम को all india radio से इसकी घोषणा कर दी गयी।नेहरु ने बडे दुखी मन से अपनी बात रखी।गांधी जी की तारिफ की ।जिन्ना की जीत कितनी नकली थी ये इससे पता चलता है कि वो उस अन्ग्रेजी भाषा में बोले जिसे उन्के समर्थक समझते भी नही थे।वायसराय ने भी अपनी बात रखी।
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