हिमाचल। समाजसेवी संजय कुमार ने बताया कि डॉ जयकिशन शर्मा का जन्म कट्टर पौराणिक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। आपके परिवार के लोग पीढ़ियों से कर्मकांडी ब्राह्मण थे। भयंकर जातिवादी और रूढ़िवादी थे। आपके परिवार के कुछ लोग बैंगलोर में ईसाई बन गए तो बहुत धक्का लगा। आपको शंकाएं हुई कि वो ईसाई क्यों बनें? हमारे धर्म में ऐसी क्या कमी रह गई थी जो वे ईसाई बन गए। आपने विभिन्न विद्वानों से संवाद किया पर आपको कोई संतुष्ट कर वाला उत्तर नहीं मिला। आपने किसी की सलाह पर सत्यार्थ प्रकाश का स्वाध्याय किया तो आपके आपकी शंका का समाधान मिल गया। आप पौराणिक मान्यताओं को छोड़कर आर्य समाजी बन गए। अपनी शिक्षक की नौकरी करते हुए आपने हिमाचल में वेद प्रचार आरंभ कर दिया। अपने कुछ रिश्तेदारों की शुद्धि करवाई। अब आपने हिमाचल में बढ़ रहे ईसाइयों और मुसलमानों के कार्यों से हिंदुओं को सचेत करने का बीड़ा उठाया है। सबसे प्रथम आपने अपने संपर्क में आए संस्कृत के विद्वानों में कार्य प्रारंभ किया है। स्वर्गीय क्षीतिश वेदालंकार जी के सुपुत्र शील आदित्य जी एवम आर्य प्रचारक डॉ विवेक आर्य के सहयोग से आपने वैदिक साहित्य का उनमें भूमिका बनाकर स्वाध्याय हेतु वितरण करना आरंभ किया है।
स्वामी दयानंद कृत सत्यार्थ प्रकाश, ऋग्वेदादी भाष्य भूमिका, स्वामी श्रद्धानंद कृत हिंदू संगठन , डॉ विवेक आर्य कृत वेदों को जानें, मनुस्मृति को जानें, मैंने ईसाई मत क्यों छोड़ा पुस्तकों को उपहार रूप में स्वाध्यायशील विद्वानों को भेंट देकर इस कार्य को प्रारंभ किया गया है। भविष्य में भी साहित्य के रूप में सहयोग प्राप्त होने पर प्रथम चरण में हिमाचल के बुद्धिजीवी वर्ग में प्रचार करने की योजना है। द्वितीय चरण में सामान्य जनों को सम्मिलित किया जाएगा।
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