जलस्तर में प्रतिवर्ष हो रही है भारी गिरावट,
निकट भविष्य में जल संकट के आसार,भूगर्भ जल दोहन के मामले में संबंधित अधिकारी ने बांध रखी है आंखों पर पट्टी। लाचारी में लोग एनजीटी का दरवाजा खटखटाने के लिए हो रहे हैं मजबूर।
ग्रेटर नोएडा वेस्ट। वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता एवं पूर्व ब्लाक प्रमुख कर्मवीर नागर ने बताया कि ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण द्वारा आवंटित ग्रुप हाउसिंग सोसाइटीज के भूखंडों पर बिल्डर्स द्वारा बनाई जा रही गगनचुंबी इमारतों के लिए ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण द्वारा आज तक जलापूर्ति की कोई व्यवस्था नहीं की गई है जबकि नियमानुसार इन ग्रुप हाउसिंग सोसाइटीज में जलापूर्ति की जिम्मेदारी ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण की है। ग्रेटर नोएडा वेस्ट विकासखंड बिसरख क्षेत्र में बसा हुआ है जोकि डार्क जोन घोषित होने की वजह से इस क्षेत्र में भूगर्भ जल दोहन पूर्णतया अवैध घोषित है। लेकिन जल दोहन पर लगी रोक के बावजूद ग्रेटर नोएडा वेस्ट में स्थित तकरीबन 63 ग्रुप हाउसिंग प्रोजेक्ट्स में बोरवैल से जल दोहन किया जा रहा है। डार्क जोन घोषित एरिया में दिन रात हो रहे जल दोहन से इस क्षेत्र में प्रतिवर्ष जल स्तर में भारी गिरावट आ रही है और अगर वैध रूप से किया जा रहा यह भी गर्भ जल दोहन नहीं रोका गया तो निकट भविष्य में इस एरिया में स्थित गांवों में जल संकट की स्थिति पैदा होने वाली है। वह दिन दूर नहीं कि जब यहां के वाशिंदे जल संकट से गुजरने वाले क्षेत्रों की तरह पानी के लिए लंबी-लंबी कतारों में खड़े नजर आएंगे। लेकिन इस सबके बावजूद जिले में तैनात भूगर्भ जल अधिकारी न जानए आंखों पर पट्टी क्यों बांधे हुए हैं ? खुलेआम हो रहे जल दोहन की जानकारी होते हुए भी भूगर्भ जल अधिकारी ने जल दोहन करने वालों के विरुद्ध कोई ठोस कार्रवाई नहीं की है। इसीलिए जल संकट के खतरे को भांप कर अवैध रूप से किए जा रहे भूगर्भ जल दोहन के विरुद्ध कार्रवाई कराने हेतु जागरूक लोगों को माननीय एनजीटी शरण में जाना पड़ा है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार ग्राम सुनपुरा निवासी प्रदीप डालमिया और प्रसून पंत द्वारा दायर याचिका का माननीय एनजीटी द्वारा संज्ञान लेते हुए भूगर्भ जल दोहन करने वाले बिल्डर्स के विरुद्ध सख्त रुख अपनाते हुए 63 प्रोजेक्ट्स में बोरवेल से भूजल दोहन की जांच के आदेश दिए थे और अवैध रूप से जल दोहन कर रहे बिल्डर्स से प्रोजेक्ट की कुल कीमत की 0.5% धनराशि बतौर पर्यावरण क्षतिपूर्ति अंतरिम जुर्माने के रूप में जमा कराने का आदेश भी पारित किया था। पर्यावरण क्षतिपूर्ति के फाइनल कंपन्सेशन की गणना एक जॉइंट कमेटी द्वारा की जाएगी। माननीय एनजीटी के आदेश पर की गई जांच में 41 बिल्डरों के प्रोजेक्ट्स में बोरवैल से भूजल दोहन होना पाया गया था जिसमें मात्र 3 प्रोजेक्ट्स में बोरवैल की एनओसी दी गई थी अन्य 38 बिल्डर्स के प्रोजेक्ट्स अवैध रूप से जल दोहन करते हुए पाए गए थे। लेकिन प्राप्त जानकारी के अनुसार अवैध रूप से जल दोहन करने वाले 38 बिल्डर्स को नोटिस जारी करने के बाद भी बिल्डर्स माननीय एनजीटी द्वारा इंपोज जुर्माने की धनराशि भरने में आनाकानी कर रहे हैं। हालांकि भूगर्भ जल अधिनियम 2019 की धारा 39 जुर्माना लगाने और धारा 41 में एफ आई आर दर्ज कराने का प्रावधान है अब देखना यह है कि संबंधित अधिकारी इन बिल्डर्स के विरुद्ध जुर्माना भुगतान न करने पर एफ आई आर दर्ज कराते हैं या नहीं। क्योंकि एनजीटी के द्वारा पारित आदेश अनुसार इस संबंध में संपूर्ण रिपोर्ट 30 अप्रैल 2023 तक यूपीपीसीबी द्वारा कंप्लायंस देने के बाद 15 मई 2023 तक जिलाधिकारी संबंधित डाटा को कंपाइल करेंगे।
यहां विचारणीय विषय है कि पर्यावरण के प्रति जागरूक लोग तो निजी खर्चा करके माननीय न्यायालयों का दरवाजा खटखटाने के लिए मजबूर हो रहे हैं लेकिन स्थानीय जनप्रतिनिधियों का अभी तक इस गंभीर समस्या के प्रति कोई फोकस नजर नहीं आया है और संबंधित अधिकारियों ने भी अवैध रूप से हो रहे भूगर्भ जल दोहन की तरफ ध्यान देने से अपनी आंखों पर पट्टी बांध रखी है। अगर इस समस्या पर गम्भीरता से तत्काल ध्यान नहीं दिया गया तो वह दिन दूर नहीं जब इस क्षेत्र की जनता पानी के लिए कोई बड़ा जन आंदोलन करती नजर आएगी।
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