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गौतम बुद्ध यूनिवर्सिटी में आपदा प्रबंधन की क्षेत्रीय कार्यशाला को प्रो संतोष कुमार ने किया सम्बोधित।

कर्मवीर आर्य संवाददाता दैनिक फ्यूचर लाइन टाईम्स गौतम बुद्ध नगर।
ग्रेटर नोएडा। गौतम बुद्ध यूनिवर्सिटी में आपदा प्रबंधन की क्षेत्रीय कार्यशाला के प्रथम दिन प्रतिभागियों को प्रो संतोष कुमार ने सम्बोधित किया। उन्होंने अपने व्याख्यान में निम्न बातों पर प्रकाश डाला जॉनिस प्रकार हैं कि प्राकृतिक आपदाएँ प्रकृति में अत्यधिक घटनाओं के कारण होती हैं जिसके लिए समाज तैयार नहीं है। आपदाओं ने न केवल प्रभावित समुदायों और देशों के जीवन के सामान्य पाठ्यक्रम को बाधित किया है। आपदाएँ अनिश्चित होती हैं - प्रति भूकंप। यह कम आवृत्ति और उच्च प्रभाव वाली आपदा है। जैसा कि हम तुर्की और सीरियाई भूकंप देख रहे हैं और हमने अतीत में भी देखा है- चमोली और उत्तरकाशी, महाराष्ट्र में लातूर भूकंप, गुजरात, सिक्किम भूकंप और अतीत में ऐसा और भी हो सकता है जो हमारी तैयारियों को चुनौती देता हो और यह भी कि हम कितने लचीले हैं?

जलवायु परिवर्तन के कारण आपदा की घटनाओं में विशेष रूप से वृद्धि हो रही है - बाढ़, चक्रवात, गर्म लहरें, आंधी, चक्रवाती तूफान आदि। जो नई जटिलताएँ, चुनौतियाँ और आश्चर्य पैदा कर रहे हैं।हमें नई रणनीतियां बनाने की जरूरत है और माननीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के आपदा जोखिम में कमी के दस सूत्रीय एजेंडे के कार्यान्वयन के लिए क्षमता को भी मजबूत करने की जरूरत है।
सरकार राज्य सरकारों और अन्य हितधारकों के साथ नवोन्मेषी राज्यों को लेने में सक्षम रही है, लेकिन जो जोखिम हमारे पास है, उसे देखते हुए यह पर्याप्त नहीं है।
6. आपदा के बाद राहत और प्रतिक्रिया पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय पूर्व आपदा जोखिम में कमी के लिए साझेदारी और संस्थानों की भागीदारी की आवश्यकता है।
शिक्षा क्षेत्र की भूमिका- जब सुरक्षा की संस्कृति विकसित करने और लचीला समाज बनाने की इच्छा हो तो विश्वविद्यालय और संस्थान बहुत महत्वपूर्ण हैं।
पीएम मोदी के 10 सूत्रीय एजेंडा - बिंदु में 6 बिंदु भारतीय विश्वविद्यालयों और संस्थानों के नेटवर्क के निर्माण के लिए समर्पित है। पाठ्यक्रम जो आपदा जोखिम न्यूनीकरण को एकीकृत करने के लिए डिज़ाइन किया गया है, उसे यूजीसी द्वारा अनुमोदित किया गया है। विश्वविद्यालयों के संकाय का क्षमता निर्माण सबसे बड़ी चुनौती है। इस दिशा में एनआईडीएम विभिन्न विश्वविद्यालयों के साथ मिलकर काम कर रहा है और उनके लिए प्रशिक्षण आयोजित कर रहा है। गौतमबुद्ध विश्वविद्यालय एक दीर्घकालिक रणनीति विकसित कर रहा है जो निश्चित रूप से उत्तर प्रदेश राज्य में कई अन्य विश्वविद्यालयों की मदद करेगी।
आपदा प्रबंधन एक बहु-विषयक क्षेत्र है और इसलिए आपदा के शून्य या न्यूनतम प्रभाव के लिए समाधान बहु-विषयक क्षेत्रों से ही निकलेगा जो विश्वविद्यालय प्रणालियों में गहराई से समाया हुआ है।
इसी क्रम में दूसरी वक्ता डॉ निर्मिता महरोत्रा ने अपने व्याख्यान में कहा कि सामाजिक पूँजी हमारी सबसे मूल्यवान सम्पत्ति हो सकती हे जो आपदा से संरक्षण करेगी। 
आपदा प्रबन्धन की चुनौतियों से निपटने के लिए रेज़िल्यन्सी बड़ाना ही एकमात्र विकल्प हे। जिस तरह कोविड का सामना करने के लिए हम भारतीयों ने योग और हर्बल दवाइयों से अपनी प्रतिरक्षा प्रणाली को मज़बूत बनाया उसी तरह नगर की संसाधन और इसकी प्रतिरक्षा प्रणाली को इस तरह विकसित करना हे जिस से कार्यकारी मज़बूती प्राप्त की जा सके। 
कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली के लक्षण को समझना और सुधारना अतिआवश्यक हे॥ अलग अलग समुदाय ऐतिहासिक समय से ऐसे कौन से  व्यावहारिक तरीक़े - खान पान के, रहन सहन के, इमारत निर्माण में, सामाजिक व्यवस्थाओ की तरह के नियम अपनाते थे जो कि प्रचलित जीवन शैली के आधार थे॥ यह एक ऐसी सामाजिक पूँजी (social capital) हे जो आपदा प्रतिरक्षा के विकास में योगदान दे सकती हे॥ 
आपदा प्रबंधन के सभी चरण को उल्लेखित करते हुए डॉ मेहरोत्रा ने सामाजिक पूँजी को सबसे महत्वपूर्ण सम्पति बताया।
सामाजिक पूंजी को जोड़ना विभिन्न श्रेणीबद्ध स्तरों पर लोगों के बीच संबंधों को दर्शाता है।
यह एक ऐसी सम्पति हे जो सकारात्मक ऊर्जा निष्पादित कर, आपदा प्रबंधन चक्र को तोड़ कर, नगर और नागरिकसमुदाय को सुरक्षित कर सकती हे।यह नेटवर्क का युग हे, डिजिटल माध्यम के नेटवर्क के समान मानवीय संबंधो का आधार भी उतना मज़बूत होगा तभी विकास निरंतर और सतत रहेगा॥

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