राजेश पायलट ने 1971 के भारत-पाक युद्ध में भारतीय वायुसेना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। परंतु जन सेवा, समाज सेवा की भावना से प्रेरित होकर वायुसेना से इस्तीफा देकर राजनीति में प्रवेश किया था। 1980 में भरतपुर से सांसद चुने गये और 1984,1991,1996,1998 एवं 1999 दौसा से सांसद चुने गये।
20 साल तक अपनी मेहनत और ईमानदारी के बलबूते पर सांसद रहे। जब 1984 में राजीव गाँधी प्रधानमंत्री बने, तो उन्होंने उन्हें भूतल राज्यमंत्री बनाया। उत्तरपूर्व और कश्मीर दोनों राजेश पायलट के बहुत प्रिय विषय थे। कश्मीर में सामान्य स्थिति लाने के लिए उन्होंने अपनी तरफ़ से काफ़ी कोशिश की हाँलाकि वहाँ उन पर कई हमले भी हुए। राजेश पायलट को भारतीय राजनीति में अभी बहुत कुछ करना था, लेकिन मात्र 55 वर्ष की आयु में एक सड़क दुर्घटना में उनका असामयिक निधन हो गया, जिसे एक राजनीतिक साजिश भी कहा जाता है।साल 1979 में इन्होंने भारतीय वायुसेना से इस्तीफा दे दिया और समाज सेवा करनी शुरू कर दी। जब इस्तीफे के बाद सियासत की शुरुआत की बारी आई इन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी से मुलाकात कर बागपत सीट से चुनाव लड़ने की ख्वाहिश ज़ाहिर की। यह नाम सुनकर इंदिरा गाँधी चौंक गयी, क्योंकि यह सीट उस समय के प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की सीट थी जो एक जाट बहुल्य इलाका माना जाता था। तब इंदिरा गाँधी ने पायलट से पूछा के वो जाटों का इलाका है और तुम गुर्जर ‘डर नहीं लगता, वहां हिंसा हो सकती है, लाठियां भी चल सकती है। तब राजेश पायलट ने जवाब दिया – ‘मैडम, जब पाकिस्तान के बम और मिसाइल भी नहीं डरा पाए, तो अब क्या डरूंगा। इंदिरा गाँधी पायलट से प्रभावित होकर मुस्कुरा कर उन्हें विदा कर दिया। इसके बाद जब यूपी से चुनाव लड़ने वालों की अंतिम सूची में अपना नाम न पाकर निराश हो गए और अपने गांव लौटकर खेती करने लगे। उनको समझ आ गया था गुर्जरों का दबदबा और समाज की सेवा करने के लिए अभी उनको जो मौका और जगह चाहिए उसमें अभी समय लगेगा।फिर एक दिन किसी से सुचना मिली के इंदिरा गाँधी गांधी जी आप को टिकट देना चाहती थी, लेकिन उनको सबकी सुननी पड़ती है। किन्हीं कारणों से आप का टिकट नहीं हो पाया था, इसलिए वो चाहकर भी उन्हें टिकट नहीं दे पायी। जब इंदिरा गाँधी वहा से हैदराबाद के लिये निकल रही थी, तो पायलट अपनी पत्नी रमा के संग उनसे मिलने एयरपोट पहुंच गए। इंदिरा गाँधी सबसे मिलती हुई आखिर में उन तक पहुंचीं और नमस्कार करके उनकी तरफ मुस्कुरा दिया। फिर मिलते हैं कह कर अपने प्लेन की तरफ बढ़ चलीं। अगली ही सुबह उन्हें संजय गाँधी के दफ्तर से फ़ोन आया और राजेश पायलट को मिलने बुलाया और राजस्थान के भरतपुर जिले से चुनाव लड़ने के लिये बोला। वहीं से राजेश पायलट का राजनीति में सफर की शुरुआत हो चुकी थी। उन्होंने राजनीति का इतिहास बदल दिया। ज़मीन पर आम आदमी के बीच रहकर राजनीति में हलचल कर दी इतनी जल्दी सबके चहेते बनकर। उसके बाद राजेश पायलट ने 1984 में राजस्थान के दौसा जिले से सांसद का चुनाव जीता। राजीव गाँधी देश के प्रधानमंत्री बने। राजीव ने राजेश पायलट को भूतल राज्यमंत्री बनाया। इसके बाद राजेश पायलट साल 1991, 1996, 1998 एवं 1999 दौसा से सांसद चुने गये। सिर्फ 1989 में हारे और एक बड़े किसान नेता के रूप में उभरे और राजीव गांधी और नरसिम्हा राव की सरकार नाव में नामांकन दाखिल करने से पहले ही संजय गाँधी ने राजेश्वर प्रसाद बिधूरी को राजेश पायलट का नाम दिया। पायलट ने अपना नाम नोटेरी में जाकर राजेश्वर प्रसाद बिधूरी से बदलकर राजेश पायलट कर लिया। यहीं से पायलट नाम उनकी और उनके परिवार की पहचान बनी। सचिन पायलट के स्वर्गीय पिता राजेश पायलट ने कांग्रेस में रहते हुए एक बार कहा था कि पार्टी में जवाबदेही नहीं रही। पारदर्शिता नहीं रही और कुर्सी को सलाम किया जाने लगा। पार्टी को आईना दिखाने वाला राजेश पायलट का यह बयान सिर्फ एक उदाहरण भर था। ऐसे कई मौके आए जब उन्होंने पार्टी में रहते हुए पार्टी को सार्जवनिक तौर पर नसीहत दी। एक बार तो बात यहां तक पहुंच गई थी कि राजेश पायलट ने सीधे गांधी परिवार को भी चुनौती दे डाली, लेकिन राजनीति में एंट्री से लेकर अपनी अंतिम सांस तक वो कांग्रेस में ही रहे।
0 टिप्पणियाँ