-->

पत्रकारिता और राष्ट्र निर्माण एक दूसरे के पूरक हैं - डॉ. महेन्द्र नाथ पाण्डेयं



मनोज तोमर ब्यूरो चीफ दैनिक फ्यूचर लाइन टाईम्स गौतम बुद्ध नगर
आजादी के बाद दूसरा सबसे बड़ा जन आंदोलन अयोध्या आंदोलन था। इसमें पत्रकारों की बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका थी - डॉ. महेन्द्र नाथ पाण्डेय

ग्रेटर नोएडा, 11 जनवरी: भारत चिंतन - मनन का देश है। पहले शास्त्रार्थ होते थे,अब सेमिनार होते हैं। पत्रकारिता और राष्ट्र निर्माण एक दूसरे के पूरक हैं। पुराना ब्रह्मावर्त और अखंड भारत ही आज के सार्क का मूल है। । हम एक हैं। सार्क देश हमारे न केवल पड़ोसी हैं, बल्कि सगे संबंधी और आत्मीय हैं। वसुधैव कुटुंबकम् की ही अभिव्यक्ति है सार्क जर्नलिस्ट फोरम।सरकार को सचेत करना भी राष्ट्र निर्माण का भाग है। ये विचार भारत सरकार के कैबिनेट मंत्री डॉ. महेन्द्र नाथ पाण्डेय ने गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय, ग्रेटर नोएडा में सार्क जर्नलिस्ट फोरम के सहयोग से 'राष्ट्र निर्माण में पत्रकारिता की भूमिका' विषय पर आयोजित दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन समारोह में व्यक्त किए। उन्होंने कहा " आजादी के पूर्व हमारे देश के यशस्वी नेता पत्रकार भी थे।आजादी की लड़ाई के बाद देश कैसा हो, वे इसपर विचार कर रहे थे। महामना मालवीय जी ने बीएचयू बनाकर भविष्य के भारत के निर्माण का काम किया। मालवीय जी ने अभ्युदय और लीडर नाम से पत्र निकाले। भारत में लंबे समय तक कांग्रेस शासन के बाद जो देश में सरकार बदली उसमें पत्रकारों का बड़ा योगदान था।भ्रष्टाचार के विरुद्ध जो आंदोलन चले उनमें भी पत्रकारों की बड़ी भूमिका थी। पत्रकारों ने आपातकाल का विरोध किया। आजादी के बाद का दूसरा सबसे बड़ा जन आंदोलन अयोध्या आंदोलन था। इसमें भी पत्रकारों की बड़ी भूमिका थी।"गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय के मानविकी एवं समाज विज्ञान संकाय के अधिष्ठाता प्रोफेसर बंदना पांडे ने अपने स्वागत भाषण में कहा कि पत्रकारिता होती है जन हित के लिए। बेजुबान को जुबान देती है पत्रकारिता। जो कष्ट में हैं, उनके प्रश्नों को उठाती है । राष्ट्र के विचार और कम्युनिकेशन के बारे में उन्होंने कहा, " भारत सनातन राष्ट्र है। वेदों में राष्ट्र की धारणा और संवाद का विमर्श प्रचुर रूप में है। संचार और संवाद की भारतीय धारणा बहुत व्यापक है। ब्रह्मांड में जो कुछ भी क्रियाशील तत्व हैं, उन सब में संचार व्याप्त है।"सार्क जर्नलिस्ट फोरम के अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री राजू लामा ने कहा कि लुंबिनी में जन्मे गौतम बुद्ध के नाम पर विश्वविद्यालय नेपाल में नहीं है। नेपाल में गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय, ग्रेटर नोएडा की शाखा बननी चाहिए। भारत नेपाल का संबंध केवल आज का और राजकीय स्तर का नहीं है। राम का, महाभारत काल का और गौतम बुद्ध का संबंध है। सार्क को कभी भारत विरोध नहीं करना चाहिए। न करता है। सार्क देशों के संबंधों में शांति के अलावा कोई विकल्प नहीं है। सार्क देशों में प्रेस स्वतंत्रता के लिए भारत को प्रयास करना चाहिए। अफगानिस्तान में महिला पत्रकार बुर्का पहन कर समाचार पढ़ती हैं। यह बहुत दुखद स्थिति है, इसका विरोध होना चाहिए। संगोष्ठी के मुख्य संरक्षक और गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर रवीन्द्र कुमार सिन्हा ने कहा कि यह आयोजन 2023 की पहली संगोष्ठी है। इस वर्ष के कार्यक्रमों की श्रृंखला का आरंभ माननीय भारी उद्योग मंत्री, भारत सरकार , डॉ. महेन्द्र नाथ पाण्डेय की गरिमामयी उपस्थिति से हो रहा है ।सार्क के प्रतिनिधियों के मन में भारत और विश्विद्यालय के प्रति जो प्रेम है वह व्यक्त हुआ है। हम सभी प्रतिभागियों और गणमान्य अतिथियों के आभारी हैं। सार्क जर्नलिस्ट फोरम कोऑर्डिनेटर इंडिया चैप्टर, प्रोफेसर स्मिता मिश्रा ने कहा कि सार्क देशों के भीतर एक ही वायु तंतु मौजूद है। हम आत्मीय संबंध का अनुभव करते हैं। स्त्री शक्ति के प्रश्नों को उठाते हुए उन्होंने कहा कि जब महिलाएं पत्रकारिता में अपने काम की शुरुआत करती हैं तो बहुत से लोग उन्हें कमजोर मानकर यह सोचते हैं कि कार्यस्थल की चुनौतियों को सफलतापूर्वक निभाने में वे चूक जाएंगी। ऐसा मेरे साथ भी हुआ। लेकिन यह हमारे समाज की भ्रांत धारणा है जो पूजनीय मानी गई स्त्री शक्ति पर कमजोरी आरोपित करती है । इस दृष्टिकोण को बदलने की जरूरत है और हर एक व्यक्ति को चाहे वह महिला या पुरुष हो, अपनी प्रतिभा के बल पर समाज जीवन में योगदान दे पाने के लिए पूरा अवसर मिलना चाहिए।
जन संचार विभाग, जीबूयू के अध्यक्ष डॉ.ओम प्रकाश ने संगोष्ठी की रिपोर्ट प्रस्तुत की।सार्क देशों से आए अकादमिक जगत और पत्रकारिता क्षेत्र के सभी अतिथियों, प्रतिनिधियों, जनसंचार विभाग के फैकल्टी और शोध अध्येताओं को स्मृति चिह्न देकर सम्मानित करते हुए दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन किया गया। जीबीयू के बारे में: 2002 के उत्तर प्रदेश अधिनियम (9) द्वारा स्थापित गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय ने अगस्त 2008 में ग्रेटर नोएडा में अपने 511 एकड़ के हरे-भरे परिसर में अपना पहला शैक्षणिक सत्र शुरू किया। विश्वविद्यालय न्यू ओखला औद्योगिक विकास प्राधिकरण(नोएडा) और ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण (जीएनआईडीए) द्वारा पूरी तरह से वित्त पोषित है। विश्वविद्यालय यूजीसी अधिनियम के तहत मान्यता प्राप्त है और भारतीय विश्वविद्यालयों के संघ का सदस्य है।विश्वविद्यालय संचालित शैक्षणिक कार्यक्रमों को भारत के विश्वविद्यालय अनुदान आयोग और विभिन्न अन्य सांविधिक निकायों, परिषदों द्वारा मान्यता प्राप्त है।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ