मैं प्यासा पंछी हूँ।
नदी का किनारा तलाशता हूँ।।
भूखे पेट ,नंगे बदन ,बच्चे हैं मेरे।
उनके लिए एक घौंसला,तलाशता हूँ।।
छोड़ आया हूँ अपनी पुरानी बस्ती को,
इस अजनबी बस्ती में, कोई अपना तलाशता हूँ
जब छोड़कर चला गांव अपना,आंसू बहाते हुए।
कौन रोया मेरे लिए,उसको तलाशता हूँ।।
जिंदगी के भवँर में न जाने क्या होगा अभी,
ये सोचकर अँधेरे में,रोशनी तलाशता हूँ।।
कौन देगा साथ मेरा,इस बुरे हाल में,
बुरे वक्त से गुजरने का ,हुनर तलाशता हूँ।।
स्वार्थी हो गया है ये सारा जहां,"बाबरा"
दर्द सहने का तरीका तलाशता हूँ।।
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