भाई-दूज पर्व का विश्लेषण।

दैनिक फ्यूचर लाइन टाईम्स विशेष संवाददाता‌।
भ्रातृ द्वितीया (भाई दूज) कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाने वाला हिन्दू धर्म का पर्व है जिसे यम द्वितीया भी कहते हैं। यह दीपावली के दो दिन बाद आने वाला ऐसा पर्व है, जो भाई के प्रति बहन के स्नेह को अभिव्यक्त करता है एवं बहनें अपने भाई की खुशहाली के लिए कामना करती हैं।
पौराणिक कथा : सूर्य की संज्ञा से दो संतानें थीं एक पुत्र यमराज और दूसरी पुत्री यमुना। संज्ञा सूर्य का तेज सहन न कर पाने के कारण अपनी छायामूर्ति का निर्माण कर उसे ही अपने पुत्र-पुत्री को सौंपकर वहाँ से चली गई। छाया को यम और यमुना से किसी प्रकार का लगाव न था, लेकिन यम और यमुना में बहुत प्रेम था।
यमराज अपनी बहन यमुना से बहुत प्यार करते थे, लेकिन ज्यादा काम होने के कारण अपनी बहन से मिलने नहीं जा पाते। एक दिन यम अपनी बहन की नाराजगी को दूर करने के लिए मिलने चले गए। यमुना अपने भाई को देख खुश हो गईं। भाई के लिए खाना बनाया और आदर सत्कार किया।
बहन का प्यार देखकर यमराज इतने खुश हुए कि उन्होंने यमुना को खूब सारे भेंट दिए। यम जब बहन से मिलने के बाद विदा लेने लगे तो बहन यमुना से कोई भी अपनी इच्छा का वरदान मांगने के लिए कहा। यमुना ने उनके इस आग्रह को सुन कहा कि अगर आप मुझे वर देना ही चाहते हैं तो यही वर दीजिए कि आज के दिन हर साल आप मेरे यहाँ आयेगें और मेरा आतिथ्य स्वीकार करेंगे। कहा जाता है इसी के बाद हर साल भाईदूज का त्यौहार मनाया जाता है।
प्रचलित कथा का विश्लेषणः इस कथा में अलंकार का प्रयोग हुआ है जिसके अर्थ का लोगों ने अज्ञानता के कारण अनर्थ कर दिया। कोई कुछ भी लिख दे लेकिन हम असलियत बिना जाने विश्वास करने के आदी हो गए है। ये कथा किस समय की है इसका किसी को कुछ नहीं मालूम, लेकिन किसी लेखक ने लिख दिया और स्वीकार कर लिया। जब इस कथा को देखो-
१. सूर्यदेव की पत्नी छाया की कोख से यमराज तथा यमुना का जन्म हुआ - इसका मतलब क्या हुआ- सूर्य का प्रकाश और छाया दो विपरीत शब्द हैं। 
२. यमुना अपने भाई यमराज से स्नेहवश निवेदन करती थी कि वे उसके घर आकर भोजन करें- यमुना एक नदी है जो पूरे भारत में नहीं सिर्फ कुछ हिस्से में बहती है, यमुना जड़ है, जो कभी सूख जाती है, कभी गन्दी हो जाती है और जिसमें कभी बाढ़ आ जाती है। 
३. यमुना का भाई यमराज- यमराज की कल्पना एक ऐसे आदमी से की गयी है जो पुरुष है और भैंसा पर सवार दिखाया है, तो कैसे संभव है कि एक बहती हुई नदी का भाई एक पुरुष हो, ये भी एक कल्पना है जिसका कोई अर्थ भी नहीं निकाल सकते हैं।   
४. यमुना द्वारा कराये गए भोजन और स्वागत-सत्कार से प्रसन्न होकर यमराज ने बहन से वर मांगने को कहा - इसका मतलब ये निकला कि भाई यमराज चटोरा है, और उसने पहले कभी अपने परिवार में स्वादिष्ट भोजन नहीं किया था और उसको अपनी बहन द्वारा अच्छे स्वागत की उम्मीद भी नहीं थी इसलिए वो खुश हुआ । ये कैसा देवता है जो स्वागत का भूखा है, अच्छे पकवान का  भूखा है, अति व्यस्त है और वरदान देने की क्षमता भी रखता है क्योंकि उसकी बहन कमजोर है वह कोई वरदान नहीं दे सकती ।
इस कथाकार ने ये नहीं बताया कि यमराज के जीजा का नाम क्या था? और पकवान में क्या क्या खिलाया? कितने दिन तक स्वागत किया ? स्वागत कैसे-कैसे किया जिससे भाई खुश हो गया ? अतः ये एक मनगढंत कहानी है।  
सत्यता क्या है ?
भाई-दूज एक सामाजिक पर्व है जो कि गोवर्धन के अगले दिन मनाया जाता है जिसमें अधिकांश तौर पर  बहन भाई के घर जाती है।
इस पर्व का विश्लेषण करने के लिए पहले पर्व के नाम पर ध्यान देना चाहिए - भाई-दूज यानि बहन-भाई द्विज (दोनों) का पर्व  है।
ऽ इसमें पर्व पर इन दोनों को ही मुख्य प्रधानता दी गयी है। इसलिए ऐसी दृष्टि से इस पर्व का अवलोकन करते हैं।
ऽ पर्व मनाने के समय पर ध्यान दें कि ये पर्व गौ वर्धन पर्व के ठीक दूसरे दिन आता है। 
ऽ बहन भाई के घर जाती है और भाई विदा के रूप में बहन को उपहार देता है।
ऽ परिवार की महिलायें गौ शाला के पास भूमि पर बैठकर एक कथा करती ह (जो की आजकल घर के अंदर या बाहर प्रतीक के रूप में बनाया जाता है और उसके चारांे ओर गौवर्धन के पर्व पर एकत्रित होकर घूम- घूम कर परिक्रमा करते हैं)। 
ऽ इस कथा में परिवार में हुई गौ की वृद्धि, गौ उत्पादन में वृद्धि पर चर्चा की परम्परा थी। जिसको  आजकल किसी अन्य काल्पनिक कथा का रूप दे दिया है।
ऽ बहन द्वारा भाई को टीका करना -इसका मतलब उसको गौवर्धन पर बधाई देना और मंगल कामना करना है।
ऽ भाई द्वारा बहिन को उपहार स्वरूप गौ या अन्य धन देकर विदा करने की परम्परा रही है।   
ऽ इस तरह भाई दूज बहिन- भाई के बीच गोवर्धन की खुशियाँ बाँटने का पर्व है।
पर्व विधि: 
1. इस पर्व को बहन भाई के मिलन दिवस के रूप में समझंे। बहनें भाई के घर उसके परिवार से मिलने जायें और परिवार की सम्रद्वि आदि विषयों पर भाभी से व्यक्तिगत चर्चा करें और एक दूसरे की उन्नति के लिए विचार विमर्श करे।  
२. भाई बहन को अपनी क्षमता के अनुसार राशि आदि देकर विदा करें।
३. इस पर्व को श्रावणी उपक्रम भी कहा है और इस दिन पुराने यज्ञोपवीत को बदल कर नए यज्ञोपवीत धारण करें। 
४. परिवार के सभी सदस्य ऋग्वेद में उल्लेखित संगठन सूक्त के मंत्रौं का जाप एवं चर्चा करें। 
५. जिन परिवारों में सायंकाल के समय यज्ञ नहीं होता है, वे भी सायंकाल का यज्ञ करें।
लेखक डॉ.डी.के गर्ग

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