बुढ़ाना तिरंगा सेवा समीति ट्रस्ट की ओर से भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम (1857 ई.) में दिनांक 14 सितम्बर 1857 ई. को शामली से बुढ़ाना तहसील पर कब्जा करने के लिए जा रही ले. केलर के नेतृत्य में अंग्रेजी सेना का नवाब खैराती खाँ परासौली व मीर खाँ जौला के नेतृव्य में क्रांतिकारियों ने जौला के जंगल में अंग्रेजी सेना का रास्ता रोक लिया तथा जौला में ही भीषण युद्ध हुआ जिसमें 200 क्रांतिकारी जौला में शहीद हुए। दिनांक 14 सितम्बर 2022 को 200 शहीद क्रांतिकारियों की याद में यह शहीद स्मारक स्थापित किया गया सैनिकों को निरन्तर जनता के शौर्य और देशभक्ति का स्मरण कराती फिर क्या था, अंग्रेज अधिकारियों के चेहरे पीले पड़ गए उनकी आंखों में मृत्यु की परछाइयां तैरने लगीं। भयभीत और आशंकित अंग्रेज अधिकारी तत्काल कोठी की पिछली दीवार से सटे नौकरों के क्वार्टरों में चले गए जहां जेल गारद पहले से ही उपस्थित थी। क्रान्तिकारी सैनिकों को घोड़ों की जीन कसते देख कर गौस मुहम्मद खान के नेतृत्व में जेल गारद समस्त अंग्रेज अधिकारियों को अपने घेरे ले में लेकर एक अपेक्षाकृत छोटे तथा आवागमन रहित रास्ते से तहसील की ओर ले चली। रास्ते में ही जेल दारोगा बटरफील्ड को याद आया कि चलने की शीघ्रता में कपड़े आदि कुछ आवश्यक सामान बंगले पर है रह गया है। वह अपनी पत्नी को साथ लेकर बंगले पर लौटा और सामान लेकर जा ही रहा था कि मार्ग में ही क्रान्तिकारियों के हाथ पड़ गया जिन्होंने उसे गोली मार कर तलवारों से काट दिया। मगर क्रान्तिकारी सैनिकों ने अपने महान देश की सभ्यता, संस्कृति और परम्पराओं का पालन करते हुए उसकी पत्नी को हाथ तक नहीं लगाया। इस घटना से क्रान्तिकारियों की चारित्रिक दृढ़ता का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। उधर दूसरी ओर घायल ले. स्मिथ को कहार डोली में डालकर तहसील की ओर लिए चले जा रहे थे कि उसे भी क्रान्तिकारियों ने डोली में से खींचकर यमपुर की राह दिखा दी। दोनों अंग्रेज अधिकारियों के क्षत-विक्षत शवों को बटरफील्ड का साला कैली और डेलबी का भाई रात के अंधेरे में उठाकर किसी प्रकार अपने बंगले में ले आए जहां उन्हें दो दिन तक कफन-दफन नसीब न हो सका। फिर दोनों को उन्होंने अस्थायी रूप से अपने बंगले के अहाते में दफन कर दिया जहां से क्रान्ति का दमन हो जाने के उपरान्त उन्हें सेना के कब्रिस्तान में ले जाकर विधिवत् रूप से दफन किया गया, जहां उनकी कब्रें आज तक विद्यमान हैं।मुजफ्फरनगर की क्रान्ति की घटनाओं का एक प्रमुख विशेषता यह भी है कि यहां के क्रान्तिकारी सैनिक जिला मुख्यालय पर क्रान्ति की मशाल जलाकर अपने ही जिले के क्रान्ति के केन्द्र शामली की ओर रवाना हुए जबकि इसके विपरीत मेरठ के क्रान्तिकारी सैनिकों ने सीधे दिल्ली की राह पकड़ी थी। इस घटना के भी इस बात की प्रामाणिकता में कोई सन्देह नहीं रह जाता कि पंचायत के निर्णयों के अनुपालन में शामली ही क्रान्ति का केन्द्र बनाया गया था और आगामी घटनाएं भी इस तथ्य को पुष्ट करती हैं।
नवाब खैराती खां और बुढ़ाना मोर्चा-जिस समय एडवर्ड्स ने जिला प्रशासन का कार्य अपने हाथ में लिया उस समय जिला अस्त-व्यस्त सी दशा में था। सरकारी काम स्थगित, राजस्व वसूली का कोई प्रयास नहीं, सभी दुकानें बन्द, सारा व्यापार ठप और पुलिस मात्र अपनी उपस्थिति अंकित करने और वेतन पाने के प्रयास में रत। ऐसी विचित्र दशा में एडवर्ड्स ने राजस्व वसूली को अपनी प्राथमिकता बनाया और समूचे सरकारी अमले को सख्ती के साथ राजस्व वसूली के निर्देश देने
के साथ-साथ डोंडी पिटवा दी कि जो भी व्यक्ति क्रान्तिकारी गतिविधियों में संलिप्त पाया जायेगा या क्रान्ति का प्रचार करता पाया जावेगा, उसे फोरन ही फांसी पर लटका दिया जायेगा। परिणामस्वरूप जिले में एडवर्डस का आतंक व्याप्त हो गया। इस आतंक का अनुमान इस तथ्य से सहज ही लगाया जा सकता है कि उस उथल-पुथल के काल में जुलाई के प्रारम्भ से अगस्त के अन्त तक जिले के वेतन सहित समस्त प्रशासनिक व्यय की पूर्ति करने के उपरान्त राजस्व से बचे हुए 2,70,535 रुपये मेरठ खजाने में जमा कर दिए गए थे।
जिला मेरठ के बड़ौत परगने से सटा हुआ मुजफ्फरनगर का बुढ़ाना और कांधला के मध्य का क्षेत्र बड़ौत के सुप्रसिद्ध क्रान्तिकारी शाह क्रान्तिकारी गतिविधियों का बड़ा केन्द्र में सुर मिलता हुआ बनता जा रहा था। इसी क्षेत्र में नवाब खैराती खां का गांव परासौली और शाही गांव जौला भी स्थित है। क्षेत्र के बड़े तथा प्रभावशाली जमींदार नवाब खैराती खां के आत्मीय सम्बन्ध मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर से स्थापित हो चुके थे।उस समय तक जिले में हिन्डन के पश्चिमी किनारे के शिकारपुर, बघरा और चरथावल परगनों के अधिकांश भाग, समूचा थानाभवन परगना और शामली परगने के समस्त जाट बाहुल्य गांव क्रान्तिकारी हो चुके थे। 12 सितम्बर को जिला मुख्यालय पर सूचना आयी कि झिंझाना में राजस्व वसूली हेतु गए कर्मचारियों को गांवों से खदेड़ दिया गया है और कांधला परगने में तो राजस्व कर्मचारियों पर आक्रमण भी हुआ तथा वे लुट-पिट कर कठिनाई से अपनी जान बचाकर निकल पाए हैं। नवाब खैराती खां को ही समस्त क्रांन्तिकारी गतिविधियों का सूत्रधार मानकर एडवर्ड्स ने बुढ़ाना पर आक्रमण करने का निर्णय लिया और ले. केलर के नेतृत्व में सेना ने 13-14 सितम्बर की रात्रि में लगभग 2 बजे अभियान प्रारम्भ कर दिया। ब्रिटिश सेना के अभियान की सूचना जौला में तैनात खैराती खा के दस्ते को भी मिल गई। तत्काल सामने के ही गांव लोई के कुवर साहब सन्देश भेजकर उनसे भी सहायता ली गई और दोनों की सम्मिलित सेना ने जौला के पास पहुंचते ही ले. भीषण आक्रमण कर दिया। भयंकर लड़ाई लगभग 200 क्रान्तिकारियों के बलिदान के उपरान्त ही ब्रिटिश सेना जौला पर अधिकार कर पायी। ले. केलर ने जौला में रुकना उचित न समझकर तत्काल सेना को बुढ़ाना की ओर बढ़ा दिया। उधर जौला में मिली हार की सूचना बुढ़ाना भी पहुंच चुकी थी। इसलिये वहां उपस्थित लगभग 150 क्रान्तिकारी तत्काल किला छोड़कर भूमिगत हो गए और केलर की सेना ने 14 सितम्बर की संध्या में लगभग 4.30 बजे खाली पड़े किले को अपने अधिकार में ले लिया।जिसमें भाकियू सुप्रीमो राकेश टिकैत हरेंद्र मलिक विधायक राजपाल बाल्यान विधायक अतुल प्रधान इक़रा हसन कुंवर दानिश इमरान मसूद प्रमोद त्यागी बाबा मुन्ना जोला मोमिन जोला हाफिज वसीम राणा जब्बार जोला पूर्व विधायक राव वारिस हाफिज शेरदिन राणा अहतशम सिद्दीकी तौसीफ राही नोमान मुर्तजा महबूब जोला पप्पन राठी आदि लोग मोजूद रहे
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