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राष्ट्रीय उर्दू भाषा विकास परिषद द्वारा फैज़ गार्डन बुढ़ाना में कोर्स का किया गया वितरण



राशिद मलिक दैनिक फ्यूचर लाइन टाईम्स मुजफ्फरनगर 
 मुजफ्फरनगर बुढ़ाना राष्ट्रीय उर्दू भाषा विकास परिषद नई दिल्ली के द्वारा फैज़ गार्डन बुढ़ाना मुजफ्फरनगर उत्तर प्रदेश में संचालित  एक वर्षी उर्दू भाषा स्टडी सेंटर में पढ़ने वाले छात्र एव छात्राओं को कौंसिल की जानिब से मंजुरशुदा कोर्स सेंटर के मैनेजर मो शाहिद असलम एवं संस्था के अध्यक्ष वसीम अहमद के द्वारा 80 छात्र छात्राओं को कोर्स वितरित किया गया एवं कोर्स के बारे में जानकारी से अवगत कराया गया
ऐतिहासिक परिपेक्ष में देखें तो उर्दू का जन्म बारहवीं शताब्दी के बाद मुसलमानों के आने से हुआ। यह भाषा उत्तर-पश्चिम के क्षेत्रीय अपभ्रंशों से संपर्क स्थापित करने के लिए उभर कर सामने आई। इस भाषा के पहले बड़े जन कवि, महान फ़ारसी कवि अमीर ख़ुसरो (1253-1325) हैं। जिन के बारे में यह कहा जाता है कि उन्होने इस भाषा में दोहे, पहेलियां और कहमुकरनियाँ कहीं। उस समय इस भाषा को हिन्दवी कहा जाता था। मध्यकालीन युग में इस मिली जुली भाषा को कई नामों से जाना गया जैसे हिन्दवी, ज़बान-ए-हिन्द, हिन्दी, ज़बान-ए-देहली, रेख़ता, गुजरी, दक्कनी, ज़बान-ए- उर्दू-ए-मुअल्ला, ज़बान-ए-उर्दू और उर्दू। इस बात के सबूत मिलते हैं कि ग्यारहवीं शताब्दी के अंत में इसका नाम ‘हिन्दुस्तानी’ प्रचलन में था जो बाद में उर्दू बन गया। शब्दकोश के अनुसार ‘उर्दू’ (तुर्की भाषा का एक शब्द है) का अर्थ छावनी या शाही पड़ाव है। यह शब्द दिल्ली शहर के लिए भी प्रयोग किया गया जो सदियों तक मुग़ल साम्राज्य की राजधानी रही। इस के बावजूद उर्दू के बड़े लेखक उन्नीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ तक अपनी भाषा/बोली को हिन्दी या हिन्दवी कहते रहे।
 "ना जाने लोग कहते हैं किसको सुरूर-ए-क़ल्ब
आया नहीं ये लफ्ज़ तो हिन्दी जबाँ के बीच"!
इस मौके पर जनाब हुसैन अहमद कासमी जनाब मेहफूजउर्रहमान , रिजवानुल हक़, आदि उपस्थित रहे।

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