अवैध अतिक्रमण तोड़ता बुलडोजर
नोएडा। बस्ता शहर उजड़ते आशियाने व गांव, जिला गौतम बुद्ध नगर में तीन प्राधिकरण कार्यरत है। प्राधिकरणों के द्वारा गरीबों के आशियानों को उजाड़ा जा रहा है! न्यू ओखला इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट अथॉरिटी अर्थात नोएडा, जिसकी स्थापना 17 अप्रैल 1976 को हुई थी, आज उत्तर प्रदेश की आर्थिक राजधानी है और इसे प्रदेश की शोविंडो भी कहा जाता है। जिला गोतम बुद्ध नगर की स्थापना 9 जून 1997 को बुलन्दशहर एवं गाजियाबाद जिलों के कुछ ग्रामीण व अर्द्धशहरी क्षेत्रों को काटकर की गयी थी। आज इसमें नोएडा व ग्रेटर नोएडा जैसे व्यावसायिक उप महानगर शामिल हो चुके है। प्राधिकरणों में आम आदमी का आशियाना बसाना छमता से बाहर हो गया है। जिस का फायदा कालोनाइजरों द्वारा उठाया जा रहा है। सस्ती जमीन का लालच देकर प्रोपर्टी डीलर आम जन को गुमराह कर देते हैं और आम जन अपनी गाढ़ी कमाई को एक अपना सपना साकार आशियाना नोएडा गोतम बुद्ध नगर में हो जिंदगी भर की महन्त मजदूरी की गाड़ी कमाई को पूरी ही उस अवेध प्रोपर्टी में झोंक देता है। आम आदमी का सपना ही उसकी परेशानी बन जाता है। वहीं दूसरी तरफ प्राधिकरणों की वजह से गौतम बुद्ध नगर जिले को विकास के पंख लगे हैं वहीं पर ग्रामीण क्षेत्र में विनाश के भी पंख लगे। अगर अधिसूचित क्षेत्र में कच्ची अवेध कॉलोनियां कटी हैं तो उनकी जिम्मेदारी प्राधिकरण के अधिकारी एवं कर्मचारियों की होनी चाहिए क्योंकि उन्हीं की लापरवाही से इन अवैध कॉलोनियों का विस्तार हुआ है अगर आमजन अधिसूचित क्षेत्र में प्लॉट लेता है तो उसका आशियाना उजाड़ा जाता है उसका दोषी वह स्वयं नहीं प्राधिकरणों के अधिकारी एवं कर्मचारी भी दोषी है। प्राधिकरण के द्वारा आज अनेक अवैध स्थानों पर बुलडोजर चलाया जा रहा है क्या कभी यह भी सोचा है अगर प्राधिकरण निम्न आय लोगों के लिए अधिक से अधिक प्लॉट उपलब्ध कराए होते तो यह है स्थिति पैदा ना होती उदाहरण के तौर पर ग्रेटर नोएडा वेस्ट को बसाया गया जिसमें लगभग 80% जमीन बिल्डरों को उपलब्ध कराई गई बाकी बची जमीन पर दो-तीन सेक्टर रिहाईशी बना दिये गये। आम आदमी के लिए दो तीन सेक्टरों में मात्र 100- 200 छोटे फ्लैटों की योजना लाकर प्राधिकरण ने इतिश्री कर ली। सेक्टर में रहने का अधिकार एक अमीर को है उतना ही अधिकार एक गरीब को भी है इस अधिकार को कोई सरकार नहीं छीन सकती। बुलडोजर द्वारा तोड़ने की कार्रवाई में ऐसा प्रतीत होता है कि प्राधिकरण के अधिकारी लापरवाही करें और भुकते आमजन। प्राधीकरण की घोर लापरवाही, प्राधिकरण स्वयं को एक बड़ा डीलर समझता है जो आमजन को नजरअंदाज कर रहा है जो भविष्य में उचित नहीं है जिसका खामियाजा निश्चित रूप से प्राधिकरणों को भुगतना पड़ेगा। प्राधिकरण के द्वारा गांवों में दोयम दर्जे का व्यवहार गांव व ग्राम वासियों से किया जाता है सफाई एवं विकास के नाम पर नाम मात्र को खानापूर्ति की जाती है। पिछली बार गांव की जमीन के स्वामित्व को लेकर अनेकों आंदोलन चलें अगर सेक्टर की प्रॉपर्टी 120 मीटर प्लाट की कीमत पचास लाख हो सकती है तो उसी से सटे हुए गांव में प्लॉट की कीमत पांच लाख क्यों है? यह सोचने का विषय है क्योंकि प्राधिकरण की घोर लापरवाही से आज प्राधिकरणों के छेत्र में आने वाले गांव की स्थिति दयनीय बनी हुई है सुविधाओं के नाम पर नाम मात्र की खानापूर्ति की जाती हैं। अगर गांव को संरक्षित व सुरक्षित नहीं किया गया तो निश्चित रूप से शहर भी आबाद नहीं होंगे क्योंकि देश भारत लगभग लाख गांवों में बसता है और अगर जल्द से जल्द प्राधिकरणों के द्वारा सस्ती दरों पर आवासीय प्लॉट व फ्लैट की योजना नहीं लाई जाती हैं तो अवैध अतिक्रमण का विस्तार और होगा जिसका खामियाजा प्राधिकरण के अधिकारी एवं कर्मचारियों को नही भुगतना पड़ेगा बल्कि आमजन एवं गरीब को ही भुगतना पड़ेगा।
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