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गेहूं की नई प्रजाति के बारे में जानकारी दी,किसानों को कम लागत में बेहतर उपज मिले।




यदि वैज्ञानिक तरीके इसे इसकी बुआई और देखरेख हो तो इससे किसानों को काफी लाभ होगा। एच एस गौड़

फ्यूचर लाईन टाईम्स शफ़ी मोहम्मद सैफी ग्रेटर नोएडा।
ग्रेटर नोएडा।आजकल खेती करना आसान नहीं है। मौसम की मार, खाद व बीज और विषम हालात के अलावा किसानों को खेती से संबंधित तमाम समस्यायों से जूझना पड़ता है। इसको देखते हुए शारदा विश्वविद्यालय और जिला कृषि विभाग की ओर से सेमिनार का आयोजन किया गया। इसमें आसापास से सैकडों किसानों ने भाग लिया। इस दौरान उन्हें शारदा विवि परिसर में की गई गेहूं की बुवाई से तैयार बीज के बारे में बताया गया। 
शारदा विश्वविद्यालय के कृषि विज्ञान कॉलेज के प्रमुख और प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. एच. एस. गौड ने बताया कि करनाल स्थित भारतीय गेहूं और जौ अनुसंधान संथान के प्रमुख डॉ. जेपी सिंह ने दो नए किस्म के गेहूं डीबीडब्ल्यू 187 और 222 का आविष्कार किया है। इन दोनों किस्मों को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान से मान्यता मिल चुका है। यह दोनों किस्में 25 अक्टूबर से 15 नवंबर के बीच बोई जा सकती है। इसमें पानी की खपत कम होगी। इसके साथ 60 से 80 कुंतल प्रति हेक्टेयर उप्ताद मिलेगा। इसमें कीडे कम लगते हैं। कोविड की महामारी को देखते हुए इसे इस तरह से विकसित किया गया है कि यह शरीर में प्रतिरोधक क्षमता का विकास करता है। उन्होंने कहा कि शारदा विवि कैंपस में एग्रीक्चर के शिक्षकों और छात्रों ने वैज्ञानिक तरीके से इसकी खेती की और भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के पूसा केंद्र में प्रोसेसिंग की। उन्होंने कहा कि यदि वैज्ञानिक तरीके इसे इसकी बुआई और देखरेख हो तो इससे किसानों को काफी लाभ होगा। इस मौके पर शारदा विवि के कुलपति प्रो. सिबाराम खारा ने कहा कि हमलोग सामाजिक जिम्मेदारियों को समझते हुए पहले खुद प्रयोग करते हैं फिर परिणाम बेहतर निकलने पर आसपास के गांवों में किसानों से डिटेल साझा करते हैं। यह दोनों प्रजातियां बेहतर किस्म की हैं। उन्होंने बताया कि यह किस्में उच्च तापमान रोधी होने के साथण्साथ कम खादए पानी में अधिक उपज देती है। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि भारतीय गेहूं और जौ अनुसंधान संथान के प्रमुख डॉ. जेपी सिंह ने कहा कि शारदा विवि में जो प्रयोग किया है वह काबिलेतारीफ है। किसान यहां आकर खेती का गुर सीख सकते हैं। यह दोनों प्रजातियों में पानी भी कम लगता है। गोरखपुर और जयपुर में तो टायल के दौरान 90 कुंतल प्रति हेक्टेयर फसल का उत्पादन हुआ है। उन्होंने किसानों के सवालों के जवाब भी दिए। तुगलपुर से आए किसान धीरज सिंह और हलदौना के मनोज भाटी ने बुआई से लेकर कटाई तक के बारे में पूरी जानकारी हासिल की। उन्होंने कहा कि हमलोग अपने रिश्तेदारी में भी इसकी बुआई करने को प्रेरित करेंगे।

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