ग्रेटर नोएडा । गेशे दोरजी दामडुल, निदेशक तिब्बत हाउस, ने अपने व्याख्यान में कहा। इस व्याख्यान का आयोजन आंतरिक गुणवत्ता आश्वासन प्रकोष्ठ, जीबीयू एवं अन्तरराष्ट्रीय बौध परिषद, नई दिल्ली के समन्वय से “बौध वार्ता श्रंखला” बुद्ध टॉक सिरीज़ के तहत किया। गेशे दोरजी दामडुल इस वार्ता श्रंखला के पहले वक्ता हैं।
गेशे दोरजी दामडुल युवाओं में आज की परिवेश में नैतिक मूल्यों एवं नैतिकता विषय पर चर्चा करेंगे| बुद्ध की शिक्षा विषेशकर बौध दर्शन किस प्रकार इस लक्ष्य प्राप्ति के लिए उपयोगी होगा।
उनके व्याख्यान में निम्न महत्वपूर्ण बिंदुओं पर चर्चा होगी जैसे क्या भविष्य में दुनिया उज्ज्वल, सामंजस्यपूर्ण और शांतिपूर्ण होगी, या इसके बजाय अराजक और संघर्षों से भरी होगी, यह पूरी तरह से इस बात पर निर्भर करता है कि आज की युवा पीढ़ी कैसे आकार लेती है।
गेशे ला ने अपने व्यक्तव्य की शुरुआत बिग बेंग के सिद्धांत का उदाहरण देते हुआ किया कि किस प्रकार पृथ्वी की उत्पट्टी हुई और फिर जिव जंतु के बाद मानव जीवन ने अपना मूर्तरूप लिया। 15 बिल्यन वर्षों में कैसे मानव जीवन ने विकाश किया और इस विकाश में कैसे समय समय पर नैतिक मूल्यों और नैतिकता को हमलोगों ने आत्मसात् किया और कैसे एक महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। इस संबंध में, नैतिक मूल्यों और नैतिकता को प्रदान करना और युवाओं के दिमाग को स्वस्थ दिशा में निर्देशित करना महत्वपूर्ण है।
साथ ही, नैतिक मूल्यों और नैतिकता को किसी पर थोपा नहीं जा सकता, युवाओं की तो बात ही छोड़िए। बुद्धिमान लोगों का दृष्टिकोण अल्बर्ट आइंस्टीन के समान है, जिसमें उन्होंने स्पष्ट रूप से संकेत दिया था कि आत्म-केंद्रितता द्वारा निर्मित एक ऑप्टिकल भ्रम के कारण आज दुनिया अराजकता में है। उन्होंने कहा कि केवल अपनी करुणा के दायरे का विस्तार करके ही हम अपने स्वार्थ की कैद से खुद को मुक्त कर सकते हैं।
आइंस्टीन जिस करुणामय मानसिकता की ओर इशारा कर रहे हैं, वह नैतिक मूल्यों और नैतिकता का मूल ताना-बाना है, जिसे तर्कसंगत आधार पर पढ़ाया और चर्चा की जानी चाहिए। इस धर्मनिरपेक्ष, तार्किक और आलोचनात्मक सोच वाले शैक्षणिक तरीके से, युवाओं में उनके जीवन में नैतिक मूल्यों और नैतिकता की प्रासंगिकता के प्रति विश्वास पैदा करना, समकालीन दुनिया में सबसे महत्वपूर्ण है।
बौद्ध मनोविज्ञान अत्यंत समृद्ध है। समझने की मुख्य बात यह है कि यह संज्ञानात्मक विचार प्रक्रिया है जो स्नेह और करुणा की भावात्मक मानसिकता को जन्म देने के लिए हमारा मार्गदर्शन करती है। इस संदर्भ में, बौद्ध मनोविज्ञान मानवता और वातावरण में एक करुणामय मानसिकता पैदा करने के लिए हमारी संज्ञानात्मक विचार प्रक्रिया में परिवर्तन लाने के लिए इक्यावन मानसिक कार्यों के विवरण के साथ, मन के नक्शे के ज्ञान की एक समृद्ध सरणी प्रदान करता है।
कार्यक्रम की शुरुआत प्रो भगवती प्रकाश शर्मा ने वेबिनार की विषय वस्तु पर चर्चा की जिसके अंतर्गत उन्होंने ने कहा की किस प्रकार आज के परिवेश में युवकों में नैतिक मूल्यों एवं नैतिकता में कमी आयी है।* साथ ही उन्होंने ने इस बात पर ज़ोर दिया की युवकों में नैतिक मूल्यों को जागृत करने में शिक्षक एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। गेशे ला के बाद शक्ति सिन्हा जो कि अंतरराष्ट्रीय बौध परिषद के डिरेक्टर जेनरल हैं उन्होंने गेशे ला के व्याख्यान पे टिप्पणी करते हुए कहा कि आज की *वेबिनार की विषय वस्तु बहुत प्रासंगिक है और अगर हम में इसी तरह नैतिक मूल्यों और नैतिकता में कमी आती रही तो दुनिया ज़रूर ख़त्म हो जाएगी। चूँकि युवा ही हमारा भविष्य है और उन्हें संवारना और सही राह पे लाने के लिए उनमें नैतिक मूल्यों एवं नैतिकता की शिक्षा देनी ही होगी। जो बुद्ध की शिक्षाओं के माध्यम से हो सकती है। कार्यक्रम को मूर्त रूप देने का कार्य डॉ अमित अवस्थी एवं डॉ अरविंद कुमार सिंह ने विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो भगवती प्रकाश शर्मा के दिशा निर्देश में किया गया था। प्रो संजय शर्मा ने स्वागत भाषण दिया। डॉ प्रदीप तोमर ने ज़ूम प्लैट्फ़ॉर्म का संचालन कुशलतापूर्वक की और साथ ही कार्यक्रम का संचालन डॉ शक्ति साही ने किया। कार्यक्रम के दौरान 300 से अधिक उपस्थिति रही।
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