ग्रेटर नोएडा। कोरोना महामारी के समय घोर लापरवाही बरतने वाली शारदा विश्वविध्यालय के छात्रों ने नया अविष्कार से समंदर के नजदीक बने मकान की नींव अब पानी के रिसाव से कमजोर नहीं होगी। मकानों की मजबूती का यह अनोखा आविष्कार गौतमबुद्ध नगर स्थित शारदा विश्वविद्यालय के फैकल्टी मेंबर के सामूहिक प्रयास से संभव हुआ है।
ग्रेटर नोएडा। डॉ अजीत कुमार
डायरेक्टर जन संपर्क ने बताया कि शारदा विश्वविद्यालय के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के निशांत कुमार, सुनील सहारन और एफसान फारूख ने एक ऐसा कंक्रीट बनाया है जो कंक्रीट की स्ट्रेंथ को चालीस प्रतिशत तक बढ़ा देता है। इसमें सीमेंट, बालू, बजरी, पत्थर और पानी के साथ पॉलीप्रोपिलीन फाइबर का मिश्रण किया गया है। यह फाइबर रुई के रेशे जैसा होता है। भारत सरकार की ओर से इसे पेटेंट भी करा लिया लिया गया है। प्रोजेक्ट से जुड़े निशांत कुमार ने बताया कि इसे अंतिम रूप देने में करीब एक साल लगे। 2018 में ऐसे भारत सरकार से पेटेंट कराने के लिए आवेदन किया गया। तीन साल बाद हाल ही में इसे भारत सरकार की ओर से पेटेंट करा लिया गया। विभागाध्यक्ष डॉ गौरव सैनी ने इस टीम का मार्गदर्शन किया |
डायरेक्टर जन संपर्क ने बताया कि शारदा विश्वविद्यालय के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के निशांत कुमार, सुनील सहारन और एफसान फारूख ने एक ऐसा कंक्रीट बनाया है जो कंक्रीट की स्ट्रेंथ को चालीस प्रतिशत तक बढ़ा देता है। इसमें सीमेंट, बालू, बजरी, पत्थर और पानी के साथ पॉलीप्रोपिलीन फाइबर का मिश्रण किया गया है। यह फाइबर रुई के रेशे जैसा होता है। भारत सरकार की ओर से इसे पेटेंट भी करा लिया लिया गया है। प्रोजेक्ट से जुड़े निशांत कुमार ने बताया कि इसे अंतिम रूप देने में करीब एक साल लगे। 2018 में ऐसे भारत सरकार से पेटेंट कराने के लिए आवेदन किया गया। तीन साल बाद हाल ही में इसे भारत सरकार की ओर से पेटेंट करा लिया गया। विभागाध्यक्ष डॉ गौरव सैनी ने इस टीम का मार्गदर्शन किया |
निशांत कुमार ने बताया कि समंदर के पानी में नमक होने के कारण किनारों पर बने मकानों की कंक्रीट जल्दी खराब हो जाती है। पॉलीप्रोपिलीन फाइबर के प्रयोग से कंक्रीट की स्ट्रेंथ और मजबूती चालीस प्रतिशत बढ़ जाएगी। इसके अलावा कंक्रीट की रोड बनाने, सीवेज पाइप और वेस्ट वाटर की पाइप के निर्माण में भी इसका प्रयोग हो सकेगा। निशांत ने बताया कि जनसंख्या बढ़ने के साथ ही आवास की कमी होने लगी है। समंदर के नजदीक भी बस्तियां बसाने का खाका तैयार हो रहा है। वहां बनने वाले मकानों की मजबूती को बनाये रखना सबसे बड़ी चुनौती है। इन बिंदुओं को ध्यान में रखकर काम शुरू किया गया। शुरुआती छह महीने में कोई परिणाम नहीं आया,लेकिन अंत मे जो परिणाम आया वो बेहद कारगर रहा।
शारदा विश्वविधालय के इंजीनियरिंग कॉलेज के इस उपलब्धि के लिए चांसलर पी के गुप्ता ने स्कूल ऑफ़ इंजीनियरिंग के डीन डॉ परमानन्द को बधाई देते हुए कहा की हमारे फैकल्टी तथा छात्रों ने मिलकर जो कार्य किया है उसके लिए पूरा सिविल इंजीनियरिंग विभाग बधाई का पात्र है तथा भविष्य में भी शारदा विश्वविधालय रिसर्च पर और अधिक फोकस करने का आह्वाहन किया | प्रतियोगिता के इस दौर में बिना रिसर्च के आप तरक्की नहीं कर सकते| आज शारदा विश्वविधालय का अग्रणी स्थान छात्रों एवं शिक्षकों के शोध के प्रति रुझान के कारण है |
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