नोएडा। संचार कंपनियों द्वारा फिक्स्ड चार्ज मॉडल अतार्किक, अनैतिक, मनमाना एवं इल्लीगल? आप सभी ने देखा होगा, आजकल मोबाईल डाटा चार्ज यूजर द्वारा वास्तविक प्रयोग युनिट पर न होकर स्कीमानुसार फिक्स्ड कर दिए गए हैं। इसका प्रभाव? जो गरीब, निर्बल , निस्सहाय तबके के ऊपर भारी पड़ रहा है। कंपनियां इस आड़ में उनसे वह फीस ले रही हैं जो सेवा उन्होंने दी ही नहीं।
उनकी यह पालिसी कमजोर तबके की कीमत पर सक्ष्म वह प्रोफेसनल तबके के हित में झुक जाती है।
*अर्थात, कंपनी अपने हित में एक गरीब को गरीब और अमीर को अमीर बना रही है।*
उदाहरणतः बूढ़े अभिभावक जो बच्चों से दूर अकेले रह रहे हैं, संपर्क के लिए फोन का प्रयोग महीने में मुश्किल से 2-4 बार ही करेंगे। दूसरी ओर प्रोफैशनल्स अनलिमिटेड काल्स के अंतर्गत हजारों कॉल करेंगे।
तो कंपनियां यह क्या खेल कर रही हैं और क्यों, कृपया विचार करें और इसके विरोध में कानूनी कार्रवाई करें।
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